संगत का असर

बचपन से हम यह कथन सुनते आ रहे हैं कि हमारे ऊपर हमारी संगत का असर होता है, और कथन यह भी है कि किसी भी मनुष्य के स्वभाव का पता उसकी संगत से लगाया जा सकता है.

रूमी के जीवन दर्शन से यह साफ़ है कि हम जो ढूंढते हैं हमें वही प्राप्त होता है. जर्मन दार्शनिक इम्मानुएल कांट ने अपनी किताब ‘अ क्रिटिक ऑफ जजमेंट’ में यह कहा है कि आपकी सहमती की पसंद आपकी रूचि से जुड़ी हुई है.

अतः आपकी जिस विषय में रूचि है आप उसी कार्य के लिए सहमत होते हैं और अपने भीतर के वातावरण को उस दिशा में अग्रसर होने के लिए तैयार करते हैं और उसके अनुसार अपने बाहर के वातावरण को निर्मित करना चाहते हैं.

इस प्रक्रिया में हम अपनी ही तरह की रूचि रखने वालों से प्रभावित होकर उनकी संगत करते हैं.

तो यह कहना कि हमारे ऊपर हमारी संगत का असर होता है, से ज्यादा उचित कथन है कि हम अपने भीतर के असर को प्रभावित करने वाली संगत ही बाहर ढूंढते हैं और जीवन भर उसका अनुसरण करते हैं.

अगर हमारी रूचि पढाई-लिखाई में है तो हमें किसी विद्वान की बात पसंद आएगी, संगीत में रूचि होने से संगीत शास्त्री की संगत होगी.

हमें हमेशा अपने मन की वस्तुस्थिति को टटोल कर अपने भीतर के वातावरण को शुद्ध करने का प्रयास करते रहना चाहिए जिससे हम अपने बाहर की संगत को दुरुस्त कर सकें.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी