डाल-डाल इंजीनियर और पात-पात हों डॉक्टर

1988 में एक फिल्म आई – क़यामत से क़यामत तक (Qayamat Se Qayamat Tak). उसका एक गाना भारतीय मिडिल क्लास का एंथम बन गया – पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा काम करेगा.

एशियाई संस्कृति में यह आम बात है कि बच्चों के पैदा होने से पहले ही मां-बाप के अधूरे ख़्वाब और महत्वकांक्षाओं की विरासत बच्चों को सौंपने की प्लानिंग हो जाती है.

करियर के मामले में देखा जाए तो 20 वीं शताब्दी में विज्ञान व तकनीक (science and technology) ने नई उड़ान भरी. तब सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए सबसे सुलझा हुआ चुनाव करने के लिए युवा पीढ़ी के पास कुछ सीधे-सादे विकल्प थे.

भारत के युवाओं (Indian youth) ने या तो सामाजिक दबाव में या फिर ज़्यादा विकल्पों की जानकारी ना होने के कारण टकसाली रास्ते चुने. सरकारी नौकरियों में जाने और आईएएस अधिकारी (IAS) बनने के अलावा सबसे ज्यादा मांग में आ गए डॉक्टर और इंजीनियर (doctors and engineers).

धीरे-धीरे यह प्रथा लोगों के मन में इतनी गहरी छाप छोड़ गई कि अब उससे निकलना 21 वीं शताब्दी में तो मुश्किल ही लग रहा है.

संक्षेप में कहें तो सफलता के मायने हैं कि आपका बच्चा साइंस लेकर इंजीनियर या डॉक्टर बने – तभी आपकी जिंदगी सफल मानी जाएगी, तभी समाज में इज्जत होगी, तभी आपकी परंपरा, प्रतिष्ठा और विरासत बच पाएगी.

ऐसी सोच न सिर्फ युवा-वर्ग को बल्कि समाज की तरक्की को भी नकरात्मतक तरीके से प्रवाभित कर रही है.

यहां बच्चे का जन्म हुआ नहीं कि पहले से ही यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि उसे साइंस की पढ़ाई करनी है. कॉमर्स एवं आर्ट्स-ह्यूमैनिटीज के छात्रों को पैमाने में नीचे रखा जाता है. लगभग आठवीं कक्षा से ही मेडिकल या इंजीनियरिंग की कोचिंग शुरू हो जाती है.

न जाने कितने छात्र मन-बेमन इस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. कभी ताने, कभी तुलना और यहां तक की मार भी झेलते हैं.

स्कूल और कोचिंग का चक्कर, फिर नोट्स की मारा-मारी, परीक्षाओं के लिए कठिन तैयारियां, आसमान छूती कट-ऑफ लिस्ट और अंततः मनचाहे कॉलेज में दाखिला मिलने की जुगाड़ में बच्चा क्या करे ना करे.

यही लकीर है मानो, और आपको इसी का फ़कीर बनना पड़ेगा. इस गीता का तो यही सार है.

इधर, इंटरनेट और सूचना क्रांति ने विश्व को द्रुत गति से बदल दिया है. इस क्षेत्र में अपनी दखल रखने वाले कहते हैं कि यह तूफ़ान तो अब थमने वाला नहीं है.

हर पल एक नई टेक्नोलॉजी जन्म ले रही है. लाखों नए रोज़गार और कारोबार वैश्विक स्तर पर उभर रहे हैं. वहीं कई पुराने रोज़गार अपना वर्चस्व धीरे-धीरे खोने लगे हैं.

समय है भारत के मेहनतकश वर्ग को इस बदलाव का संज्ञान लेने का. रोज़गार के बाजार में इंजीनियर और डॉक्टर के अलावा लाखों नई संभावनाओं को आज़माने का.

मेडिकल एवं इंजीनियरिंग से थोड़ा हट कर सोचें तो विज्ञान के ही छात्रों के लिए आज विकल्पों की लाइन तैयार है. अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artificial intelligence), मशीन लर्निंग (machine learning), डेटा साइंस (data science), बिज़नेस एनालिटिक्स (business analytics), ब्लॉकचेन (blockchain), डेवलपर (developer), सॉफ्टवेयर डिज़ाइनर (software designer), टेक्निकल राइटर (technical content writer), एस्ट्रोफिजिक्स (astrophysics), फॉरेंसिक विज्ञान (forensic science), पैथोलॉजी (pathology), फुल स्टैक डेवलपर (full stack developer), आर्किटेक्चर (architecture), होटल मैनेजमेंट (hotel management), बायोटेक्नोलॉजी (biotechnology), एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट (agricultural scientist), माइक्रोबायोलॉजिस्ट (microbiologist) जैसे कई अन्य अवसर आपको बुला रहे हैं.

आप प्रतिभाशाली और हुनरमंद युवा के रूप में अपना स्वर्णिम भविष्य स्वयं खोजें, और उसके लिए अपने करियर का सही चुनाव करें. जरुरत है सिर्फ इंजीनियर और डॉक्टर बनने की ज़िद छोड़ एक नया रास्ता चुनने की.

आप उस आवाज़ को सुनें जो दुनिया की नहीं, बल्कि आपके दिल की है. उस रास्ते पर चलें जिसकी प्रेरणा हो रही हो. ज़रुरत पड़ने पर करियर काउंसलर से मिलें. अपना लक्ष्य एक स्पष्टता के साथ साधें.

डॉक्टर या इंजीनियर बनने में कोई बुराई नहीं है, बशर्ते डॉक्टर या इंजीनियर बनने की चाहत एवं जुनून हो. आपको आपके हक़ के मोती ज़रूर मिलेंगे.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी