शुद्धि का मंत्र है संयम

किसी भी धर्म की स्थापना का मकसद उस धर्म के अनुयायी के जीवन में संयम एवं अनुशासन की स्थापना होता है. धर्म मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है और मनुष्य को ईश्वर से जुड़ने के लिए आवश्यक है अपने मन के विकारों को समाप्त कर मन का शुद्धिकरण करना और भावनाओं को स्वच्छ करना.

मन के शुद्धिकरण का मूल मंत्र है अपने मन में परोपकार, दया और क्षमा का भाव रखना और यह सब करते हुए अपने आप को संयम में रखना. प्रत्येक धर्म में इस शुद्धिकरण के अनेक उपाय सुझाए गए हैं जिनमें से एक उपाय है व्रत और उपवास. इसके विधिवत तरीके भी बताए गए हैं.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपने जीवन से जुड़ी एक कथा में उपवास के कई फायदे बताए हैं. उनमें से एक फायदा है कि उपवास से आप संयमित और दृढ संकल्पी होते हैं और इससे आपका शरीर भी शुद्ध एवं रोग मुक्त होता है.

उपवास के दौरान आप अपने आप को संयम में रखने का पूरा प्रयास करते हैं. व्यर्थ कोई बात नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, नहीं या कम खाते हैं, परोपकार की भावना रखते हैं, या यूं कहें कि अनुशासित रहते हैं. इस आत्मानुशासन का ही दूसरा नाम है संयम, जो आपके मन को शुद्ध कर आपको आत्मावलोकन का अवसर प्रदान करता है और आपकी दृष्टि आपकी आत्मा की ओर करता है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी