जीवन मे दुख का स्थान सर्वोपरि है. भारतीय परंपरा के कई महान दार्शनिकों ने दुख को जीवन के पर्यायवाची के रूप में ही समझा और समझाया और उस दुख से बाहर निकलने के अपने-अपने रास्ते ढूंढे और हम सब को सुझाए.
अपने जीवन में दुख का सबसे बड़ा कारण है सुख की आकांक्षा करना और सुख को स्थान देना क्योंकि सुख क्षणिक है. यह संसार पर निर्भर करता है (बाहरी वातावरण पर निर्भर करता है) और सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म कि हम कभी उससे तृप्त नहीं हो सकते.
उदाहरण के लिए ऐसे समझें कि – अभी वातावरण में अत्यधिक गर्मी है और हम उस गर्मी से बचने की आकांक्षा में पंखा चलाते हैं या वातानुकूलित स्थान पर अपने आप को रखते हैं. जब तक यह सुविधा होती है हम सुख से अपना काम करते हैं और किन्ही कारणों से हम इस सुविधा से वंचित रह जाते हैं तो इस सुख की आकांक्षा हमारा सबसे बड़ा दुख बन जाती है.
अब इसका समाधान क्या है? तो समाधान बिल्कुल सरल है. अपने भीतर के वातावरण को सशक्त करने का प्रयास करें जो आपको अपनी आकांक्षाएं नियंत्रित करने में सहायता करेगा और सुख से विपरीत आनंद की अनुभूति कराएगा.