आदर्श जीवन के मंत्र

एक प्री-स्कूल के कार्यक्रम का हिस्सा बनी तो पता चला कि जीवन को अच्छे आदर्शों के साथ जीने के लिए किसी बहुत बड़ी योजना या तैयारी की आवश्यकता नहीं. बस कुछ अच्छी आदतों की आवश्यकता होती है जो हमें बचपन में बहुत ही बुनियादी तौर पर स्कूल में सिखाई जाती हैं.

उनमें से कुछ आदतें हैं कि स्वयं सफाई से रहना और अपने चारों और गंदगी नहीं करना, सभी के साथ मित्रवत व्यवहार करना, अपना फैलाया हुआ सामान खुद समेट कर रखना, हमेशा सीखने की कोशिश करना.  उनको सिखाई जाने वाली नैतिक शिक्षा की ये बहुत ही मामूली लेकिन महत्वपूर्ण बातें हैं.

इन बातों को कई बार आपने भी छोटे बच्चों से कहा होगा परंतु अपनी ओर दृष्टि करने पर पता चलेगा कि यह नैतिक स्कूली ज्ञान जो हम कई वर्षों पहले पीछे छोड़ आए हैं यही हमारे जीवन के आदर्शों की नींव का मूल मंत्र है जिसको अक्षरशः सार्थक कर हमारे संत माहात्म्य की श्रेणी पर पहुंच सके.

मैं बस इस नैतिक ज्ञान के एक वाक्य की यहां चर्चा करना चाहूंगी और वह है – स्वयं सफाई से रहना और अपने चारों और गंदगी नहीं करना. यह सफाई शरीर के साथ साथ मन को भी दर्शाती है. क्योंकि मन शरीर का ही सूक्ष्म रूप है और अगर हम अपना मन साफ रखेंगे और अपने चारों ओर अपने विचारों की गंदगी नहीं फैलाएंगे तो निश्चित तौर पर अपने चारों और के वातावरण को साफ और शुद्ध रखकर एक अच्छा जीवन जी पाएंगे.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी