फिल्म समीक्षा: बॉबी

जब राज कपूर ने अपनी मनपसंद फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई थी तो वह कर्ज़े में डूब गए थे. दशकों से हिंदी सिनेमा पर हुकूमत के बावजूद बंगले, गाड़ियां और यहां तक कि परिवार की महिलाओं के जेवरों से हाथ धोने की नौबत आ गई थी.

‘संगम’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी महत और संजीदा फिल्मों के बाद राज कपूर ने साल 1973 में पेश की फिल्म बॉबी. इस फिल्म के ज़रिये उन्होंने अपने बड़े बेटे ऋषि कपूर को मुख्य अभिनेता के रूप में लांच किया और साथ ही दर्शकों को परिचित कराया अभिनेत्री डिंपल कपाडिया से. 

डिंपल ने बॉबी फिल्म से बदला अभिनेत्रियों की परंपरागत छवि

बॉबी फिल्म किशोरावस्था के प्रेम प्रसंग पर आधारित थी. कहानी थी 18 साल के हिंदू और अमीर परिवार के बेटे राजा और उसके गरीब और कैथलिक संरक्षिका की 16 वर्षीय पोती बॉबी की.

यह फिल्म मुख्य तौर से विलियम शेक्सपियर की कहानी रोमियो जूलिएट पर आधारित थी. इस फिल्म ने ना ही केवल बॉक्स-ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़े, बल्कि दर्शकों और समीक्षकों को भी बेहद पसंद आई. बॉबी से प्रेरणा लेकर काफी फिल्म निर्माताओं ने अमीर गरीब और धर्म के इर्द गिर्द प्रेम कहानी पिरो कर फिल्में बनाई.  

फिल्म का निर्देशन और निर्माण राज कपूर ने किया था और कहानीकार थे ख्वाजा अहमद अब्बास. फिल्म में ऋषि कपूर और डिंपल कपाडिया का साथ दिया था दुर्गा खोटे, प्राण, प्रेमनाथ, फरीदा जलाल, अरुणा ईरानी और प्रेम चोपड़ा जैसे दिग्गज कलाकारों ने.

बॉबी का संगीत लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल ने दिया था जो आज भी बेहद लोकप्रिय है. फिल्म के कुछ गीत जैसे, ‘हम तुम एक कमरे में’, ‘झूठ बोले कौवा काटे’, ‘ना मांगो सोना चांदी’ और ‘मैं शायर तो नहीं’ हर किसी की जुबान पर रहते हैं.

इस फिल्म की बात करते हुए ऋषि कपूर ने एक बार हंसते हुए कहा था कि लोगों का मानना था कि राज कपूर ने यह फिल्म उन्हें लांच करने के लिए बनाई थी, परंतु सच तो यह है कि उन्होंने बॉबी खुद को कर्ज़ों से मुक्त करने के लिए बनाई. बॉबी फिल्म अत्यंत सरल और सहज थी, किंतु इसके बावजूद यह फिल्म इतिहास रचने में सक्षम रही.


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