फिल्म समीक्षा: ख़ूबसूरत

हम लोग हर जगह ख़ूबसूरती को ही ढूंढ़ते हैं, चाहे वो प्रकृति में हो या मनुष्य में. आमतौर पर सूरत-सीरत में ज्यादातर लोग ख़ूबसूरती का निर्णय सिर्फ बाहरी सुंदरता, सूरत से ही कर लेते हैं और भूल जाते हैं ख़ूबसूरती की असली परख सीरत से होती है.

1980 में प्रदर्शित हृषिकेश मुख़र्जी द्वारा निर्मित फिल्म ‘ख़ूबसूरत’ आपको ना केवल बाहरी एवं आंतरिक ख़ूबसूरती से रूबरू कराएगी बल्कि आपको सिखाएगी ज़िन्दगी जीने का वह सुंदर तरीका जिसकी कमी आजकल के व्यस्त सामाजिक परिवेश में बहुत ज़्यादा है.

डी.न.मुख़र्जी द्वारा लिखी ये कहानी है गुप्ता परिवार की जिसकी मुखिया निर्मला गुप्ता (दीना पाठक) हैं, जिन्होंने अपने नियमों और समयनिष्ठता से पूरे घर को बांधकर रखा है. निर्मिला गुप्ता के नियम उनके पति द्वारका प्रसाद गुप्ता (अशोक कुमार) के लिए भी उतने ही सख्त हैं जितने उनके बच्चों के लिए हैं.

कहानी में मज़ा तब आता है जब गुप्ता परिवार के दूसरे बेटे का विवाह राम दयाल की ज्येष्ठ बेटी अंजू से तय हो जाता है. दयाल परिवार के मुखिया राम दयाल हैं जिन्होंने अपनी दोनो बेटियों, अंजू और मंजू (रेखा गणेशन) का परिवेश बचपन से अकेले  किया है.

दयाल परिवार का परिवेश गुप्ता परिवार से बिलकुल अलग है. जहां गुप्ता परिवार में समय से खाना, धीमी आवाज़ में बोलना, धीरे से हंसना जीवन जीने का सही सलीका है वहीं दयाल परिवार में  बातें काफिये में की जाती हैं, और खुल के हंसा और बोला जाता है.

कहानी में मोड़ तब आता है जब मंजू छह महीने बाद अपनी बहन से मिलने उसके ससुराल जाती है, और गुप्ता परिवार को सिखाती है जीवन में निर्मल आनंद पाने का तरीका. जीवन जीने के इस सरल तरीके को सिखाते समय मंजू को गुप्ता परिवार के तीसरे बेटे इन्दर (राकेश रोशन) से प्रेम हो जाता है. जिस सहजता से हृषिकेश मुख़र्जी ने इन दोनों के प्रेम को दर्शाया है वह सराहनीय है.

गुलज़ार के संवादों से बंधी ये कहानी आपको भी सिखाएगी जीवन में निर्मल आनंद पाने का वो ही तरीका. रेखा, गुप्ता परिवार के सदस्यों के नियमों में छुपी उसकी ही खूबसूरती से आपको रूबरू कराएंगी जो आमतौर पर हर परिवार में होते हैं, चाहे वो शास्त्रीय नृत्य हो या ताश का खेल.

1980 की महिला प्रधान फिल्म ‘ख़ूबसूरत’ आपको परिचित कराएगी उस समय की दो पीढ़ी की सोंच से, जहां निर्मला गुप्ता जीवन में नियमों को बहुत महत्वपूर्ण मानती हैं तो वहीं मंजू जीवन को  निर्भीक होकर खुल के जीने को महत्वपूर्ण मानती है. मंजू (रेखा गणेशन), जितनी उत्सुकता से जीवन को जीती है उतनी ही दृढ़ता से समय पड़ने पर अपने कर्तव्य का पालन करती है.

खूबसूरत में जहां द्वारका प्रसाद गुप्ता (अशोक कुमार) का बचपना, जगन के सवाल आपका मन मोह लेगा वहीं आर.डी.बर्मन के द्वारा स्वरों पे पिरोये हुए गुलज़ार के गीतकाव्य आपको एक मधुरमय दुनिया में ले जाएंगे.

निर्मला गुप्ता क्या मंजू जैसी सोच वाली लड़की को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करेंगी? यह जानने के लिए ‘खूबसूरत’ जरूर देखें. इसे देखने के बाद आपको भी निर्मल आनंद प्राप्त होगा जो सिनेमा में किरदारों को हुआ.


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