फिल्म समीक्षा: दाग

आखिर कितनी मज़ेदार होगी वो फिल्म जिसमें आपको हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना, बेहद खूबसूरत शर्मीला टैगोर और अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं राखी गुलज़ार देखने को मिलें.

हम बात कर रहे हैं 1973 में आई यश राज फिल्म्स की पहली निर्मित फिल्म ‘दाग’ की, जिसका निर्देशन स्वयं यश चोपड़ा ने किया  था.

राजेश खन्ना, राखी गुलज़ार, शर्मीला टैगोर, प्रेम चोपड़ा द्वारा अभिनीत यह कहानी है सुनील कोहली की जिसकी शादी उसकी प्रेमिका सोनिया से हो जाती है.

daag A poem of love

शादी के बाद वह हनीमून बनाने शहर से बाहर जा ही रहे होते हैं कि ख़राब मौसम के कारण सुनील को अपने बॉस के फार्म हाउस पर रुकना पड़ता है, जहां उसकी मुलाकात बॉस के बेटे धीरज और उसके दोस्तों से होती है, जो शराब के नशे में धुत होते हैं.

एक समय सोनिया को अकेले पाकर धीरज उसके साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश करता है जिसका पता सुनील को लग जाता है. वह गुस्से में आकर धीरज को जान से मार देता है.

गुलशन नंदा द्वारा लिखित इस कहानी में मोड़ तब आता है जब उम्र कैद की सजा सुनने के बाद सुनील की जेल जाती गाड़ी खाई में गिर जाती है.

सोनिया अपने बेटे रिंकू के साथ नया जीवन शुरू करना चाहती है पर सुनील के कातिल होने के आरोप के कारण समाज में उसे अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता. ऐसे ही एक दिन, उसकी मुलाकात चांदनी से होती है, जो उसे अपने घर ले जाती है.

कहानी में अगला मोड़ तब आता है जब सोनिया को पता चलता है कि चांदनी का पति कोई और नहीं सुनील ही है, और वह अब भी जिन्दा है.

लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के अमर संगीत से पिरोए इस सिनेमा ने ‘अब चाहे मां रूठे या बाबा’, ‘मेरे दिल में आज क्या है’ जैसे सदाबहार गाने हिंदी सिनेमा को दिए हैं.

क्या सोनिया सुनील को माफ कर पाएगी? सुनील का सोनिया को न बताना क्या एक अवसरवादी सोच थी या कोई मजबूरी? यह सब जानने के लिए इस फिल्म को देखिएगा जरूर.


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