समुद्र में जीना, नाव पर रहना

मैं हूँ मार्टिना. मेरी नांव ही मेरा घर है. इसे हम करीना ऑफ डेवन कहते हैं. मेरे इस घर में मेरे पति और हमारे दो बच्चे रहते हैं. करीना भी मेरा परिवार है. इस तरह हम पांच अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं.

हमारी दुनिया में भरपूर रोमांच है, जीवन की बारीकियों की यदा कदा तहकीकात है और कभी-कभी मेरे पति जूलियन के दर्शन से जुड़े व्याख्यान को सुनने की ललक. जूलियन प्रकृति, संस्कृति तथा जीने की कला के महारथी हैं.

साल 2011 में जूलियन और मैंने अपनी नौकरी छोड़कर अपना कैंब्रिजशायर स्थित घर बेच दिया और अपने दोनों बच्चों के साथ निकल पड़े खुले आसमान और समुद्र में रहने. जो पैसे हमारे हाथ आए उससे अगले साल ही हमने अपनी नाव खरीदी जो आज हमारा घर है.

इन पांच सालों में जब से हम करीना ऑफ डेवन में रह रहे हैं, हमने इंग्लैंड, आयरलैंड, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को के चक्कर मार लिए हैं.

हमारे जीवन के किरदारों को और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.

मैं 43 साल की परी हूँ. मूलतः मैं आयरलैंड की रहने वाली हूँ. गत 20 सालों में मैंने जापान, कैनेडियन आर्कटिक और इंग्लैंड में काफी समय बिताया है. मुझे आप एक सामाजिक मानवविज्ञानी कह सकते हैं जबकि मेरी रूचि मानव भूगोल में भी उतनी ही है. मेरा खासा ध्यान समुद्र के बारे में ज्ञान अर्जित करने में लगता है और मेरी कोशिश होती है कि इंसान और समुद्री स्तनधारियों के बीच के रिश्तों पर तथ्य इकठ्ठा करती रहूँ. लेकिन, अचानक कोई पूछे तो मुझे खुद को एक लेखिका बताना अच्छा लगता है. मैं पर्यावरणीय मुद्दों, स्थिरता, बच्चों को कैसे बड़ा करें, उन्हें कैसी शिक्षा दें जैसे विषयों पर लिखती रहती हूँ. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि करीना ऑफ डेवन से पहले मुझे नौकायन का कोई अनुभव नहीं था.


ये उनका साहसिक कदम है या ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़, यह निर्णय लेना आसान होगा अगर आप उनकी ज़िन्दगी में झांक कर देख सकें. बिना किसी की परवाह किए मार्टिना अपने पति जूलियन और दो छोटी बेटियों के साथ गत पांच सालों से नाव पर रह रही हैं. नदी, खेत, पोखर झुमाती चल रही हैं, झुलाती चल रही हैं जैसे वे कोई हवा हों.

कवि केदारनाथ अग्रवाल ने शायद ऐसे ही मुसाफिरों के लिए लिखा है – न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ, हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ.

इनकी घुमक्कड़ी के बारे में जानकार जब एक महिला ने इन्हें लिखा कि वे और उनके पति अपने छह सप्ताह के बच्चे के साथ उनकी ही तरह की ज़िन्दगी जीना चाहते हैं तो मार्टिना का जवाब था, “सोचो मत, प्लान बनाओ, तारीख तय करो और निकल पड़ो. और जहां तक बच्चे की बात है तो वह हर अवस्था और परिस्थिति में खुद को ढाल लेने के लिए कुदरती तौर पर तैयार होते हैं.”

आश्चर्य नहीं कि मार्टिना को भरपूर समर्थन मिलता रहता है, जैसे हाल ही में उन्हें किसी ने लिख भेजा, “पानी में जी रही हो? वाह! तुम्हारे बच्चे कितने खुशनसीब हैं.” वहीं उनकी एक मित्र ने उनका उत्साहवर्धन करते हुए उन्हें शुभकामना संदेश में कहा, “तुम्हारे बच्चे दुनिया के उन कुछ भाग्यशालियों में से हैं जिनका पालन पोषण इस अनोखे अंदाज़ में हो रहा है.”

मार्टिना ने भारत बोलेगा को बताया कि वे और उनके पति शादी के बाद से ही इस तरह की रोमांचकारी ज़िन्दगी की चर्चा करते थे. हालांकि उन्होंने यह नहीं सोचा था कि यह सब कुछ इतनी जल्दी शुरू हो जाएगा, वह भी तब जब इनके बच्चे अभी जन्मे ही थे.

अप्रैल 2011 में जब आर्थिक मंदी का दौर अपने चरम पर था, इन्होंने अपनी नौकरियां छोड़कर कुछ नायब करने की ठानी. एक दिन अनायास मार्टिना के पति जूलियन ने कहा, “चलो, एक नाव खरीदते हैं.” फिर क्या था, इनकी यात्रा शुरू हो गई.

मार्टिना ने हामी भरी और अगले ही साल इन्हें अपनी नाव मिल गई जिसका नाम इन्होंने रखा करीना ऑफ डेवन. उससे पहले इन्होंने अपना घर बेच दिया. अब नाव ही इनका घर बन गया. 

परिवार के बाकी लोग, सगे संबंधियों को इनके निर्णय पर आश्चर्य तो हुआ लेकिन वे जानते थे कि मार्टिना और जूलियन जो ठान लेते हैं वह ज़रूर करते हैं. धीरे-धीरे सभी इनके पक्ष में हो लिए. शुरू में तो मार्टिना को थोड़ा लगा कि कहीं वह गैरजिम्मेदार तो नहीं हो रहीं खासकर अपनी नन्हीं बेटियों के प्रति. परंतु फिर उन्होंने अपने निर्णय पर अडिग रहने का फैसला कर लिया. तय हुआ कि कभी-कभी मार्टिना के माता-पिता और इनकी बहन नाव पर इनसे मिलने आया करेंगे.

मार्टिना कहती हैं, “मॉम डैड आज भी चिंतित हो जाते हैं. शायद, माता पिता का चिंतित होना स्वाभाविक हो. लेकिन, इसलिए तो वे हमारे मॉम डैड हैं.” उन्हें हमने बताया है कि अब दुनिया बदल गई है. लोगों की इच्छाएं बदल रही हैं, जीवन जीने के तरीके और शौक बदल रहे हैं.

देखा जाए तो दुनियाभर में यह ट्रेंड शुरू हो गया है कि लोग अपनी इच्छाएं सीमित कर जीवन जीने का अंदाज़ बदल रहे हैं, हर कोई पैसा-पैसा नहीं कर रहा व सुख और शांति के नए मायने गढ़े जा रहे हैं. रिटायर होने के बाद लोग अब खाली बैठना नहीं चाहते, यहां तक कि साठ बरस तक किसी और के लिए काम करना अब लोग उतना जरूरी नहीं समझते.

कम संख्या में ही मगर अब हर देश में ऐसे किस्से सुनने को मिल रहे हैं कि युवा अवस्था में ही नौकरी छोड़ कर लोगों द्वारा पहाड़ों, नदियों व जंगलों में जीवन बिताने की कोशिश होने लगी है. कुछ लोग तो काम से ब्रेक लेकर भी यह सब कर रहे हैं. मकसद है वह सब करना जिससे ख़ुशी मिले, शांति मिले. जो करते हुए अच्छा लगे.

यह बेहद आश्चर्यजनक है कि मार्टिना और जूलियन के दोनों बच्चे लिली और केटी नाव पर ही अपनी पढाई कर रहे हैं. मार्टिना कहती हैं, “हमने अपने बच्चों को होम एजुकेशन ही दिया है. कभी कभार जब हम किसी छोटे गांव के निकट अपनी नाव कुछ दिन के लिए स्थिर रखते हैं तो लिली और केटी सबसे नजदीकी स्कूल में भी कुछ दिन पढ़ाई कर लेती हैं.”

जूलियन भी मानते हैं कि अगर वे नाव पर नहीं रह रहे होते तब भी बच्चे घर से ही अपनी पढ़ाई करते. चूंकि जूलियन को स्पेनिश भाषा से प्यार है तो लिली और केटी कुछ दिन एक स्पेनिश स्कूल में भी गईं जब उनकी नाव स्पेन के एक गांव के पास रुकी थी.

इस परिवार को नाव पर रहते किसी मेडिकल इमरजेंसी जैसी नौबत का सामना भी नहीं करना पड़ता क्योंकि जूलियन खुद ही फर्स्ट एड के एक्सपर्ट हैं और उनके पास आवश्यकता की लगभग सभी दवा हमेशा रहती है. वैसे भी इनकी नाव ज्यादातर दिन किसी न किसी ज़मीनी जगह के 30 किलोमीटर क्षेत्र के भीतर ही रहती है ताकि इनके संबंधी या दोस्त इनसे जब चाहें मिल लें. ऐसे में जरूरत पड़ने पर कभी भी कुछ हासिल करने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता.

मार्टिना का परिवार ज्यादातर समय सुरक्षित जगहों पर ही अपनी नाव स्थिर रखता है. और समय-समय पर मौसम अनुकूल रहने पर वे घूमते रहते हैं. इसी क्रम में इन्होंने आयरलैंड, फ्रांस, स्पेन, मोरक्को की यात्राएं अपने नाव से ही कर ली हैं. इनकी इच्छा है कि करीना ऑफ डेवन से ये अटलांटिक पार करें और पनामा कनाल होते हुए पैसिफिक में प्रवेश करें. अपने फ्लोटिंग होम यानी तैरते हुए घर में इसकी तैयारी बखूबी चल भी रही है.   

यह पूछने पर कि इन पांच सालों में कभी उन्हें लगा हो कि कहीं वे किसी पागलपन का शिकार तो नहीं, मार्टिना कहती हैं ऐसा उन्हें तब लगता था जब वे अपार्टमेंट में रहते थे. अच्छी व इज्जतदार नौकरियों को स्वेच्छा से छोड़ने के बाद और कैंब्रिज के निकट के अपने घर बेचने के बाद वे ऐसे पचड़े में क्यों पड़ें भला. एक बार नाव में बस जाने के बाद उसे चलाते रहना ही उन्हें रास आता है.

जहां तक बात लोगो से संपर्क में रहने की है तो आज आधुनिक तकनीक से लैस क्या नहीं है. जहां कहीं भी इन्हें फ्री वाई-फाई मिल जाता है, ईमेल या इंटरनेट इस्तेमाल करना संभव हो जाता है. बातचीत करने के लिए सामान्य फोन इनके पास है ही. जब तक ये लंबे समय के लिए दूर समुद्र में नहीं चले गए हों, अपने दोस्तों और संबंधियों से इनका संपर्क बना रहता है. और अब तो  सैटलाइट फोन भी उपलब्ध हैं जिन्हें खरीदने का ये सोच रहे हैं.

कैसे चलता है खाना पीना

2012 से अब तक यह परिवार नाव पर तो है लेकिन इसे जरूरत की किसी चीज की कमी नहीं हुई है. सामान्यतः गर्मियों में ये घूमते रहते हैं और जाड़े में काम करते हैं जिससे कि इनकी खर्च करने लायक आमदनी होती रहे. मार्टिना अंग्रेज़ी पढ़ा लेती हैं या फिर ऑनलाइन काम ले लेती हैं. एक बार तो जहां इनकी नाव खड़ी थी उसके पास ही बार था जहां भी मार्टिना ने मेहनत करके पैसे कमाए. इनके पति जूलियन कहते हैं, “हमारी जरूरतें बहुत कम हैं, नाम मात्र. हम बहुत से छोटे नाव में रहते हैं जहां हमारी जरूरतें नहीं के बराबर हैं. रोज़मर्रा की चीज़ें हम रोजाना ही खरीदते हैं. जब लंबी दूरी के लिए निकालना होता है तो नाव को हम भर लेते हैं. वैसे भी जगह जगह कि नई चीजें खाना हमें पसंद हैं जिससे स्थानीय संस्कृति और स्वाद का भी पता चलता है.”

नाव है या घर

मार्टिना ने अपनी नाव को ऐसा अपनाया है कि अब वही उसके परिवार का घर है. मार्टिना बताती हैं कि करीना ऑफ डेवन तो वास्तव में परिवार का हिस्सा है, एक सदस्य की तरह. यह छोटा जरूर है लेकिन जरूरत के अनुसार एकदम सही है. मार्टिना के अनुसार, “यही हमारा घर है, हमारे घूमने फिरने का साधन है, हमारा ऑफिस है, हमारा स्कूल भी और हमारा सब कुछ. हमारी नाव 11 मीटर लंबी है और मेरे पति छह फीट से भी ज्यादा हैं और अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं. लेकिन हम सब इसमें फिट आते हैं.”

समुद्र में जीना, नाव पर रहना… ये कैसा जीवन है?

यह जीवन उम्दा है, गजब है. हमारे चारो ओर समुद्र, पानी ही पानी. इस परिस्थिति में आप हमेशा आउटडोर रहते हैं. आपकी सारी इन्द्रियां पूरा काम कर रही होती हैं. एक वाक्या बताती हूँ जो आपके सवाल का सही उत्तर होगा. एक बार हम लंबी यात्रा पर थे. लगातार तीन दिन कुछ डॉलफिन मछलियां हमारे साथ-साथ चल रहीं थीं, रात दिन. क्या आप उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं? एक शाम जब में किचन में कुछ बना रही थी तब मैंने देखा कि चार पांच डॉलफिन मेरे सामने मेरी आंखों की ऊंचाई तक उछल-उछल कर खेल रही थीं. मैंने कुकर से अपना ध्यान हटाया और शीशे से बाहर एकटक देखते हुए सोचा, कि क्या यह लम्हा कैंब्रिज के मेरे फ्लैट में देखने को मिलता? कितनी गृहणियां ऐसा नज़ारा देखते हुए खाना पकाती होंगी? क्या अद्भुत, खुशहाल अनुभव.

आपकी दिनचर्या कैसी होती है?

यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस दिशा में जा रहे हैं या आपकी नाव आजकल कहां स्थिर है. जब हम एक जगह से दूसरी जगह तक सिर्फ यूं ही जा रहे हैं तो हवा और लहरों पर काफी कुछ निर्भर करता है. हमें जल्दी उठाना पड़ सकता है ताकि हम गति के साथ अपने गंतव्य तक पहुंच जाएं. हम कभी देर से आगे बढ़ते हैं ताकि तेज हवा का सामना नहीं करना पड़े. मैं और मेरे पति चार-चार घंटे बारी-बारी से नाव की कमान संभालते हैं, खासकर रात में. जब हम लंगर डाले रहते हैं और किसी भी स्थान पर जाने की जल्दी नहीं होती तो हमारी दिनचर्या किसी और की तरह ही होती है – खाना पकाना, कपड़े धोना (अक्सर हाथ से), बच्चों को स्कूली शिक्षा देना आदि. जब बच्चे किसी स्कूल में जाते होते हैं तब हम फिर उस तरह से खुद को अनुकूल बनाते हैं.

आपकी नाव किन सुविधाओं से लैस है?

एकदम बढ़िया किचन, छोटा ही सही. फ्रिज है, ग्रिल व हॉब चूल्हा. दो छोटे-छोटे बाथरूम जिसमें से एक में शावर भी है. बच्चों के बेड के नीचे पानी की बड़ी टंकी है, एक छोटा सा स्टोर रूम है. हम सोलर पैनल का इस्तेमाल करते हैं तो जरूरत के अनुसार पूरी लाइट्स भी हमें मिलती है, अंदर के लिए भी और हेड लाइट के लिए भी. हमारे लैपटॉप, मोबाइल उसी से चार्ज होते हैं. दो हीटर भी है जिसमें से एक डीजल से चलता है.

कभी एशिया या भारत आने के बारे में आपने सोचा है?

हम सब यूरोपियन यूनियन के नागरिक हैं. वीजा की दिक्कत नहीं होने से अब तक हमें कोई परेशानी नहीं हुई है. भविष्य में हम दुनियाभर में अपनी नाव से घूमना चाहते हैं, भले ही हमें एक बड़ी नाव क्यों न लेनी पड़ी. चूंकि मैं जापान में रही हूँ, तो मेरी इच्छा है कि वहां भी नाव से जाऊं. जहां तक भारत की बात है तो मैं भारतीय साहित्य की शौकीन हूँ. कौन जाने पढ़ते-पढ़ते अपनी नाव से आपसे मिलने ही पहुंच जाऊं. फिलहाल, हमारी नाव का बीमा हो रखा है जो यूरोप तक ही सीमित है. इसके लिए भी हमें कुछ सोचना होगा.

समुद्र के प्राणियों से आपने क्या सीखा है?

सबसे पहले तो यह बता दूं कि वे उतनी आसानी से नहीं दिखते जितना कि आपके वाइल्डलाइफ चैनल आपको बताते होंगे. वैसे हमने कुछ बेहतरीन जीव जंतु देखे हैं. एक बार कुछ डॉलफिन मछलियों ने हमारे साथ साथ यात्रा कीं. वह अनुभव हमेशा के लिए एक बेहतरीन याद बन कर रह गया है. किचन से उन्हें पानी में उछलते हुए देखना मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़ गया. समुद्री पक्षियों को देखना, वेल तथा विभिन्न मछलियों को देख पाई हूँ. मेरे बच्चे तो डॉलफिन मछलियों को देख देखकर ही तैरना सीखे हैं. हां, समुद में प्लास्टिक देखना बुरा लगता है.

क्या ऐसा कभी लगता है कि समुद्र में आप बिलकुल अकेली हों.

समुद्र में दूर जाने पर तो नहीं लेकिन जाने से पहले की तैयारियों के समय कभी-कभी ऐसा अनुभव होता है. मैं जरूर सोचती हूँ कि हमारे साथ क्या बुरा हो सकता है. लेकिन एक बार जब हम निकल पड़ते हैं तो फिर क्या बात. एकदम सुहाना सफर होता है. मुझे खासकर रातें अच्छी लगती हैं हालांकि पूरी रात जागना मुश्किल होता है. लेकिन जब मैं नाव संभाल रही होती हूँ, और जूलियन तथा बच्चे सो रहे होते हैं तब भी लगता है कि मैं अकेली हूँ. हां, उस समय आकाश की ओर देखना, तारे… उफ़. काश आप वह अनुभव कर पाते. उस समय पता नहीं क्या-क्या दिमाग में चलने लगता है. बचपन की बातें भी याद आने लगती हैं. मुझे लिखने के लिए भी प्रेरणा मिलती है. जब मौसम खराब होता है तब मेरे पति नाव संभालते हैं चूंकि वे इस मामले में मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं. वे मुझसे ताकतवर भी हैं. वैसे बच्चे छोटे हैं तो हम मौसम का ख़ास ध्यान रखते हैं. मौसम जानकारियों पर हम नज़र बनाए रखते हैं. हमें जल्दी ही क्या है, हम एक दिन बाद भी तो कहीं जा सकते हैं. एक आध बार गहरे सागर में हमें धुंध के साथ साथ खूब तेज़ हवाओं ने घेरा है.

नाव पर कौन ज्यादा सोता है, आप या आपके पति?

नाव पर रहने का सबसे बड़ा फायदा है कि हम प्रकृति के काफी करीब रहते हैं. उसी तरह से हम अपने आप को ढाल लेते हैं. बाकी नावों जैसा हम अपनी नाव पर ज्यादा लाइट्स नहीं जलाते. जाड़े में भी ज्यादा गरम नहीं करते. सूरज के साथ उठना और उसके अस्त होते ही सोने की तैयारी करना हमारी लगभग ऐसी ही दिनचर्या है. बच्चे छोटे हैं तो सोना हमारी प्राथमिकताओं में नहीं है.

नाव पर क्या गेस्ट भी आते हैं?

बिलकुल. मेरे मॉम डैड और बहन तो आते ही हैं. दोस्त भी आते हैं और संबंधी भी. कई बार तो नाव पर रहने के शौकीन भी जानकारी लेने आते हैं. नाव छोटी है तो क्या हुआ, हमारा दिल बड़ा है.

और मनोरंजन के लिए?

हमारे आगे पीछे बाएं दाएं डॉलफिन हैं. और क्या चाहिए? बच्चे छोटे हैं तो ढेर सारे खिलौने भी हैं. हम सब खेलते रहते हैं. किताबे हैं और हम सब पढने के शौकीन हैं. कभी-कभी समुद्र और नाव पर जीवन बिताने वालों से हम टकरा जाते हैं तो कुछ किताबें अदल बदल भी लेते हैं. अपने लैपटॉप में हम डीवीडी भी देख लेते हैं. पॉडकास्ट सुनते रहते हैं. जूलियन क्रॉसवर्ड और सुडोकु के भी शौकीन हैं, और मेरे साथ वे स्क्रैबल की बाजी लगाते रहते हैं.

आप कहीं हमलोगों से अलग तो नहीं?

बिलकुल नहीं. हमें जीवन से क्या चाहिए? ख़ुशी, संतोष और यह समझना कि हम एक भरपूर जीवन जी रहे हैं. हमें अपना परिवार खुश रखना है, बच्चों को अच्छा इंसान बनाना है, उन्हें अच्छी शिक्षा देनी है. अगर हम अलग दिखते हैं तो सिर्फ इसलिए कि हमें समुद्र और यात्राएं पसंद हैं और किसी को पियानो बजाना या सामाजिक कार्यकर्ता बनना या फिर बिजनेसमैन बनना. मैं मूलतः आयरलैंड की रहने वाली हूँ मगर गत 24 सालों से वहां से अलग रह रही हूँ. मैं घुमक्कड़ हूँ. जहां आपका परिवार वहीं आपका घर. और मेरा परिवार तो मेरे पति और मेरे दोनों बच्चे हैं. हां, करीना भी हमारी परिवार सदस्य है. यह भी बेहद खूबसूरत है. करीना में वह सब कुछ है, वे सभी लोग हैं, जो मुझे चाहिए.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी