मेरे बच्चे एक दूसरे को नापसंद करते हैं

अपने करीयर के पिछले दो दशकों में अभिभावकों से शायद जो शिकायत मैंने सबसे ज्यादा सुनी है, वह यह है कि उनके बच्चे आपस में झगड़ते बहुत हैं. और यह शिकायत सिर्फ छोटे-छोटे बच्चों तक ही सीमित नहीं होती. कुछ लोग तो इस एहसास के साथ सारी उम्र गुजार देते हैं कि वह अपने माता पिता की सबसे प्यारी संतान नहीं हैं.

यह मनोस्थिति ‘फ्रेंड्स’ एवं ‘मैन विद अ प्लैन’ जैसे कई सुप्रसिद्ध ड्रामा एवं ‘कपूर एंड सन्स’ जैसी फिल्मों में भी दर्शाई गई, जिनमें दर्शकों ने अपनी ज़िन्दगी की कहानियों का प्रतिविम्ब पाया. पर बात सिर्फ किसी सीरियल या किस्से कहानियों की नहीं है, क्योंकि वे तो खुद ही हमसे, हमारी जिन्दगी एवं समाज से प्रेरित होते हैं. बात है बच्चे के मन में पनपते हुए भावों की, जो अनगनित कारणों एवं ज़रियों से उत्पन्न होते रहते हैं.

साइको-एनालेटिक स्टडीज यानी मनोविज्ञान विश्लेषणात्मक अध्ययन एवं ह्यूमन बिहेवियर स्टडीज यानी मानव व्यवहार अध्ययन के कुछ सिद्धांत बच्चे के अपने ही भाई-बहन के प्रति उत्पन्न हुई हीन-भावना के कई कारणों को सामने रखते हैं. इनमें से कुछ कारणों पर तो हमारा बस चलना मुश्किल है, लेकिन अन्य बातों पर ध्यान दिया जा सकता है.

जब बच्चा छोटा होता है, तब माता पिता एवं संपूर्ण परिवार वाले उसपर खूब लाड़-प्यार बरसाते हैं. वह बच्चा उनके लिए बहुत ख़ास होता है, क्योंकि वह अपनी पीढी की पहली संतान होता है. धीरे-धीरे उसे भी उसी प्यार एवं ध्यान की आदत पड़ जाती है एवं उसके आस पास वाले सभी लोग उसकी ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण पात्र बन जाते हैं.

दूसरी संतान के आने पर अचानक ही यह प्यार और ध्यान दो संतानों में बट जाता है. किसी के हिस्से का प्यार कम नहीं होता, बढ़ता ही है, पर बट जाता है. बड़े बच्चे पर स्वयं ही एक ज़िम्मेदारी आ जाती है और उसे यह सिखाया जाने लगता है कि कैसे उसे समझदार बनके अपने छोटे भाई-बहन का ख्याल रखना है. फिर जरूरत के अनुसार छोटे बच्चे को समय, देखभाल व ध्यान भी ज्यादा मिलने लगता है, जो कि लाज़मी है. ऐसे समय में पहली संतान को थोड़ी निराशा हो सकती है, जिससे उसे बचाया जा सकता है.

इसी केस में परिस्थिति उल्टी भी हो सकती है, जहां बड़े होने पर छोटी संतान यह महसूस करने लगे कि उसे कम समझदार समझा जाता है क्योंकि उसके घर वालों ने पहली संतान के साथ ज्यादा समय बिताया है, और इसलिए वह उनके लिए ज्यादा ख़ास है.

इन दोनों ही परिस्थितियों में ख़ास ख्याल रखना ज़रूरी है कि दोनों संतानों को पूरा ध्यान मिले. बड़े बच्चे को प्यार से अपने छोटे भाई-बहन से मिलवाया जाए और उसके मन में पनपते हर सवाल का सही तरीके से जवाब दिया जाए. दोनों बच्चों के प्रति किसी भी तरह का भेद भाव ना हो जिससे उन्हें यह कभी महसूस न हो कि उनमें से कोई कम खास है.

इस सिलसिले में कई दफा यह जरूरी नहीं कि दोनों बच्चों के साथ बिलकुल एक जैसा व्यवहार किया जाए. यह पहचानने एवं समझने की जरूरत होती है कि सभी बच्चे अलग होते हैं और उनके व्यक्तिगत खासियतों के अनुसार ही उनके साथ डील करें.

यदि एक बच्चा ज्यादा सेंसिटिव है, तो उसे ज़रा सी डांट भी बहुत ज्यादा डरा सकती है. यदि एक बच्चा इन्ट्रोवर्ट और दूसरा एक्स्ट्रोवर्ट है, तो आपस में या किसी के सामने, किसी भी तरह से दोनों बच्चों की एक दूसरे से तुलना करना अकारण है. किसी एक को करेले पसंद हो तो दूसरे के मुंह में भी ज़बरदस्ती करेला ठूसने का कोई मतलब नहीं. एक बच्चे की जरूरत और दूसरे के शौक में अंतर समझें. हां, एक जैसा व्यवहार करना हो तो उन जगहों पर करें, जहां ज़रूरी है – उन्हें प्यार देने में.

कोई जवाब जल्दी या देर से याद कर पाने पर, इम्तेहान में अंक कम या ज्यादा आने पर, नौकरी पहले या बाद में लग जाने पर, कम या ज्यादा कमाने पर, आपके हिसाब से सुंदर लगने या ना लगने पर, शादी के लिए राज़ी होने या ना होने पर, ज़िन्दगी भर आपको अपनी संतान को अच्छा या बुरा महसूस कराने के अत्यधिक मौके मिलते हैं, और मिलते रहेंगे. उन्हें एहसास दिलाएं कि आप उन्हें समझते हैं, और उनपर विशवास करते हैं. तभी वह आपके ऊपर भी विश्वास कर पाएंगे.

यह निश्चित है कि जब बच्चे दूसरों (माता पिता, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, और ख़ास कर दूर के रिश्तेदारों) को अपने भाई बहनों के बीच भेद भाव करते नहीं पाते, तब बच्चों के मन में भी एक दूसरे के प्रति दुर्भावना के आने की संभावना कम होती है. इसी संदर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ध्यान रखा जाए कि आपकी कोई एक संतान दूसरी द्वारा डराई-धमकाई तो नहीं जा रही, जिसकी वजह से उनकी आपसी दूरियां बढ़ती जा रही हों. इन संकेतों को अनदेखा ना करें.

ऐसे में जो संतान पहले ही परेशान हो रही हो, उस पर अच्छे से बर्ताव करने का दबाव डाल कर आप उनकी कतई मदद नहीं कर रहे, बल्कि उनके बीच की दूरियों को और बढ़ावा दे रहे हैं.


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