मूर्खता, भय और लालच का मुकाबला कैसे करें?

अल्बर्ट आइंस्टीन साहेब का मशहूर कथन है – “तीन महान ताकतें दुनिया पर राज करती हैं: मूर्खता (stupidity), भय (fear) और लालच (greed).”

यह अवलोकन आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है. इन ताकतों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए, हमें एक विचारशील और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

तो क्या आप शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार हैं? आपके आस-पास कितने ही लोग हैं, जिन्हें शिक्षित करने की जरूरत है. उनके शिक्षित होने से उनका, आपका, और समाज – तीनों का ही भला होगा.

शिक्षा एक कम्पास के रूप में कार्य करती है, जो आपको अपडेट रखती है, तथा निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार बनाती है और आलोचनात्मक सोच के लिए मार्गदर्शन करती है.

हाल ही में स्पेन में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रोफेसर एमिलियो गोमेज़ ने अपने पेपर “एनाटॉमी ऑफ स्टुपिडिटी” में मूर्खता के जाल से बचने की कठिनाई पर ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा, “पहली बात जिस पर मैं जोर देना चाहूंगा वह यह है कि मूर्ख न बनना और मूर्खता के जाल में न फंसना कठिन है.”

उनकी यह बात निरंतर सीखने और जागरूकता के महत्व पर प्रकाश डालती है.

मूर्खता, भय और लालच का मुकाबला कैसे करें?

आइए विचार करें कि सरकारी नीतियां अक्सर किस प्रकार तैयार की जाती हैं और कार्यान्वित की जाती हैं.

लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण नीतियों का कुछ लोगों की कल्पनाओं पर आधारित होना, कभी-कभी बिना गहन चर्चा के, सामान्य होता जा रहा है. ताज़ा-ताज़ा चुनाव आयोग (election commission) का मामला ही देख लीजिए.

इसके विनाशकारी परिणाम के उदाहरण कुंभ 2025 (Kumbh 2025) के दौरान प्रयागराज (Prayagraj) में हुई भगदड़ (stampede) और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (New Delhi Raiway Station) पर हुई त्रासदी में देखे जा सकते हैं.

ये दुर्घटनाएं ख़राब निर्णय, अपर्याप्त योजना और नेतृत्व द्वारा पैदा किए गए प्रचार का परिणाम थीं.

प्रोफेसर मैट अल्वेसन और आंद्रे स्पाइसर के एक शोध – द स्टुपिडिटी पैराडॉक्स – को पढ़ते हुए मैंने पाया कि कैसे आधारहीन विचार आज सुरक्षा की झूठी भावना तो पैदा कर सकते हैं लेकिन भविष्य के लिए जाल बिछा सकते हैं.

चाहे चुनाव (election) हों या बजट (budget), कोई म्यूच्यूअल फंड (mutual fund) हो या बीमा (insurance) – हमें आलोचनात्मक सोच और संशयवाद की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही किसी व्यक्ति, कंपनी या राजनितिक पार्टी (political party) पर भरोसा करना चाहिए.

हमारे देश में अक्सर देखा गया है कि सीखने की उत्सुकता तो होती है, लेकिन फिर डर हावी हो जाता है. जीवन-यापन की बढ़ती लागत लोगों को दैनिक अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर करती है, जिससे बौद्धिक गतिविधियों के लिए बहुत कम जगह बचती है.

कई लोग अपने बचत खातों में न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं और अपर्याप्त धनराशि के लिए दंडित होते हैं. नौकरी की असुरक्षा का तनाव इस डर को और बढ़ा देता है.

स्मरण रहे कि भय और लालच अक्सर एक साथ मौजूद रहते हैं, जो लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं.

इसी बात का फायदा राजनीतिक पार्टियां और वित्तीय संस्थाएं और तमाम बड़ी कंपनियां उठाती हैं.

डर खतरे की प्रतिक्रिया है, जबकि लालच अवसर की प्रतिक्रिया है. दुनियाभर में तमाम रिसर्च के दौरान उच्च भय वाले संदेशों को कार्यों, इरादों और दृष्टिकोण को बदलने में प्रभावी दिखाया गया है.

इसके परिणामस्वरूप लोगों में या तो रक्षात्मक व्यवहार या फिर तीव्र आक्रामक व्यवहार देखा जाता है. लेखक ‘ताल गुर’ कहते हैं, “सत्ता में बैठे लोग जनता की राय में हेराफेरी करने और नियंत्रण बनाए रखने के लिए डर का फायदा उठा सकते हैं, जिससे संघर्ष और उत्पीड़न का चक्र जारी रहता है.”

निर्णय आप करें.


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