सोशल मीडिया और मोबाइल ने कई रिश्ते बिगाड़े हैं. मगर इनके बिना ज़िन्दगी आसान भी तो नहीं. कभी जरूरत तो कभी एडिक्शन की तरह हम इन पर निर्भर हो गए हैं. हर बात शेयर करने में कितनी ख़ुशी मिलती है. साथ ही परिवार, दोस्त, सहयोगियों से हम जुड़े भी रहते हैं. लेकिन, ना जाने क्यों कभी-कभी सभी दूर-दूर से लगते हैं.
हाल ही में मैंने एक ब्रेक लिया. सोचा फोन और सोशल मीडिया से दूर रहूंगी. मैं इसमें कुछ हद तक कामयाब भी हुई. अफ़सोस यह रहा कि मेरे आसपास हर आदमी, औरत, बच्चा सिर्फ और सिर्फ फोन, कंप्यूटर, आई पैड पर था. मेरी बात सुनने का और अपनी सुनाने का किसी को समय ही नहीं था.
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इन हालातों में आदमी अकेलेपन का शिकार हो जाता है. अपने ही घर में बस वाई-फाई पर बिज़ी रहता है. छोटी-छोटी खुशियां कहीं पीछे छूट गई हैं, शायद. एक कप चाय भी अब फोन के बिना नहीं पी जाती. ट्रेजडी यह है कि पति-पत्नी, भाई-बहन, यार-दोस्त अगर साथ बैठे भी हों तो उनके बीच कोई बात नहीं होती.
रिसर्च बताते हैं कि अगर हम कुछ समय खाली रहें और अकेले रहें तो शायद अपने आपको कहीं ढूंढ पाएं. ज्यादा सोशलाइजिंग से कहीं रिश्तों में ठंडापन तो नहीं आ जाता…!
अकेले समय बिताने का फायदा यह है कि आप अपने सोचने की प्रक्रिया को ज्यादा रिफाइन करने में सक्षम होते हैं और इसका नतीजा होता है कि आप अपने बारे में कुछ बेहतर जानने लगते हैं. फिर जब आप अपने रिश्ते-नाते वालों से मिलते हैं तो ज्यादा गर्माहट महसूस होती है.
रिश्तों में तनाव की बड़ी वजह लंबे समय तक एक साथ रहना भी होता है. साथ रहते-रहते आप एक दूसरे को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं. फेसबुक अपडेट और चेक-इन ज्यादा ज़रूरी हो जाता है और हाथ में हाथ डालकर नेचर वाक या प्रकृति का आनंद लेना पीछे रह जाता है.
अगर आप कुछ दिन अकेले रहते हैं तो तनाव का स्तर कम होता है और रिलेशनशिप से जुड़े स्ट्रेस भी कम होते है. अपने को डीस्ट्रेस करें और भीड़-भाड़ से दूर जंगलों में सैर पर चल पड़ें. जो आनंद पैदल घने जंगलों में चलने में है वो किसी मोबाइल गेम या सोशल मीडिया अपडेट में नहीं है. फौरेस्ट वॉक से आपका कंसंट्रेशन लेवल बढ़ता है और ताज़ी हवा से आपको तंदरुस्ती मिलती है.