विकास से प्रदूषण सर्वव्यापक

आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है – हमारी गतिविधियां धरती को और गर्म कर रही हैं.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मनुष्य ने प्रकृति का न सिर्फ दोहन किया है, बल्कि उसको नुकसान भी पहुंचाया है. इस कारण प्रकृति में बदलाव हो रहा है. आने वाले समय में पृथ्वी के तापमान में अस्वाभाविक बढ़त की सम्भावना है.

धरती के वातावरण पर आच्छादित ओजोन लेयर हानिकारक किरणों से हमें बचाती है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस लेयर का क्षय हो रहा है. इसके परिणामस्वरूप न केवल धरती का तापमान बढ़ेगा वरन अंतरिक्ष की हानिकारक किरणें हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं.

हाल के दिनों में यह विदित हुआ है कि विश्व की 70 प्रतिशत से अधिक मूंगे की चट्टानें नष्ट हो चुकी हैं, अंटार्कटिका को ढकने वाली बर्फ की चादर खंड-खंड हो कर पिघल रही है, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है एवं ध्रुवीय जीवों का अस्तित्व विनाश की कगार पर है.

आने वाले समय में कुछ छोटे देश तो डूब ही जाएंगे. इसके अलावा वातावरण में उपस्थित जल की मात्रा में परिवर्तन होने के कारण मौसम के विपरीत स्वरूप एक साथ दिखेंगे – तूफान, सूखा और बाढ़.

बर्फ प्रकाश की अच्छी परावर्तक होती है लेकिन जब पृथ्वी पर बर्फ ही नहीं रहेगी तो सूर्य से आने वाली उष्मा बहुत कम मात्रा में परावर्तित हो पाएगी तथा इससे और भी तापवृद्धि होगी.

प्रकृति के नियमों को तोड़ने के दुष्प्रभाव नाना रूपों में चेतावनी के रूप में हमारे सामने प्रकट हो रहे हैं. प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, कीट पतंगों का नाश, ज़मीन का रेगिस्थान में परिवर्तित होना, त्वचा कैंसर तथा अन्य रोगों में वृद्धि, जंगलों में आग लगना, एसिड वर्षा से स्वच्छ जल का प्रदूषित होना, फसलों का परागण करने वाले कीट, मधुमक्खियों, तितलियों एवं चिड़ियों का नष्ट होना आदि.

अतः आज सबसे बड़ी ज़रुरत जन चेतना विकसित करने की है. जब लोग अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक होंगे तब वे स्वयं ही संरक्षण के प्रति सचेष्ट रहेंगे.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी