नया सीखने और ज्ञान बढ़ाने की कोई उम्र नहीं होती

सीखने (learning) और ज्ञान (knowledge) बढ़ाने के लिए ना उम्र (age) की कोई सीमा है, ना दूरी का कोई बंधन. कुछ चाहिए तो वह है लगन और धीरज.

हाल ही में मेरी मुलाकात 25 से 30 वर्ष की कुछ छात्राओं से हुई. जी हां, वे सभी 25 वर्ष से ज्यादा की हैं, और अब भी छात्रा ही हैं. और उनकी उम्र ही समस्या का कारण बनती जा रही थी.

घर से शादी का दबाव, शादी से पहले अपने पैरों पर खड़े होने की ज़िद और शादी के बारे में बिना सोचे ही स्वतंत्र रूप से ज़िन्दगी जीने की इच्छा के बीच संतुलन बनाती-बिगाड़ती ये सभी छात्राएं कहीं ना कहीं दबती जा रही थीं.

ऊपर से पढ़ाई का दबाव और कॉलेज से निकल कर मनचाही नौकरी न मिलने की व्यग्रता भी कम नहीं थी.

इनमें से अंगीरा ने ग्रेजुएशन के बाद कुछ साल नौकरी कर अपने मनचाहे क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने का निर्णय लिया. इस दौरान एवं इसके पश्चात कई छोटी-बड़ी कंपनियों के साथ जुड़ी भी रही, पर मन कहीं नहीं लग रहा था.

मुझसे मिलने पर अंगीरा बेचैन थी, कि वह आगे क्या करे. उसकी सबसे बड़ी समस्या थी कि वह काम करना चाहती है, बहुत सारा काम करना चाहती है, परंतु सही मार्गदर्शन एवं अवसर की कमी से कर नहीं पा रही.

कुछ दफ्तरों में शुरुआती दिनों में तो अच्छा काम मिला परंतु फिर उन्ही कार्यों में धीरे-धीरे रचनात्मकता फीकी पड़ने लगी, जैसे कि मानो कामों के ढेर से उसकी रूह ही छिन चुकी हो.

अंगीरा अपने हर काम पर साथियों के इनपुट्स भी मिस करने लगी, जो उसे कॉलेज में अक्सर मिलते रहते थे. अब ऐसी स्थति में क्या किया जाए, जब इंसान जी जान लगा कर काम करना चाहता है, उसके पास काम भी है, पर कहीं भी रचनात्मकता या व्यक्तिगत विकास नहीं.

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दूसरी छात्रा, नमिता, भी कुछ ऐसी ही उधेड़-बुन में थी. ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन, फिर पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा और अब अनेक ऑनलाइन कोर्स में व्यस्त नमिता तत्काल नौकरी नहीं चाहती, बल्कि और शिक्षा प्राप्त करना चाहती है.

नमिता के माता पिता दोनों ही सरकारी नौकरियों में अच्छे पदों पर अफसर हैं, और यह अब नमिता के लिए एक अभिशाप सा बनता जा रहा है. उम्र बढ़ती जा रही है, और साथ ही तनाव भी. कुछ कम हो रहा है तो वह है नमिता के माता-पिता का विश्वास. उन्हें उसकी अलग-अलग क्षेत्रों में रूचि रखना और पढ़ाई जारी रखना समझ नहीं आ रहा.

ऐसे में जब वह विश्वविद्यालय के छात्रों की उम्र को लेकर सवाल उठते देखती है, या ऐसे लेख पढ़ती है जिनमें करियर को महिलाओं के लिए मात्र एक शौक बताया जाता है, तो वह अपना आपा खोने लगती है. और जब माता-पिता उसकी तुलना अन्य लोगों से करते हैं व उसके सुखद एवं स्थिर जीवन की अभिलाषा में शादी के लिए रिश्ता ढूंढने लगते हैं, तो सोचिए उसे कितना मानसिक दबाव झेलना पड़ता होगा.

एन्ग्जाईटी (anxiety), डिप्रेशन (depression), एनोरेक्सिया नर्वोसा कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनके रोगी भारत में तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहे हैं. अपने बच्चे, मित्र या साथी के लिए जो सबसे खतरनाक चीज़ आप कर सकते हैं, उनमें से एक है उन्हें इन बीमारियों (disease) की ओर धकेलना.

हर व्यक्ति अलग है, उसकी ख्वाहिशें, उसकी उम्र, लिंग या जात से परे हैं. जिस दौर से अंगीरा और नमिता गुज़र रही हैं, ऐसे में कई मौकों पर पैर डगमगाना या घबराहट होना एक बार को जायज़ है, परंतु अपने एवं अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए भी उन्हें उनसे जुड़े हर व्यक्ति के सहयोग की ज़रुरत है.

सीधी सी बात यह है कि ज़रूरत है अपने सपनों को अहमियत देने की. जब तक आप कुछ ना कुछ सकारात्मक गतिविधियों में अपने आप को उलझाए रहेंगे, ज़िन्दगी उतनी ही सुलझती जाएगी.

कुछ नया सीखने और अपने ज्ञान को और बढ़ाने की कोई उम्र नहीं होती. कुछ चाहिए तो वह है लगन और धीरज. किसी काम को छोटा या बड़ा न समझें. काम करना चाहते हैं, और मौका मिल रहा है तो अवश्य उसका सदुपयोग करें. सफलता की सीढ़ी की लंबाई और उसकी मंजिल सबके लिए एक बराबर नहीं होती.


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