एक स्कूल कार्यक्रम का प्रारंभ छोटी बच्चियों के स्वागत नृत्य (welcome musical dance) से होना था. वे बच्चियां (girl child) इतनी छोटी थीं कि उनको कतारबद्ध करने के लिए उनकी शिक्षिका को प्रयास करना पड़ा.
वे खड़ी हुईं, नृत्य प्रारंभ हुआ. सब मंत्रमुग्ध होकर उनके हाव भाव देखने लगे.
उसी दौरान एक स्टेप करते समय बच्चियों को गोला बनाकर घूमना था. यह करते हुए उनमें से एक छोटी सी बच्ची गिर गई.
चूंकि मैं आगे बैठी हुई थी तो मुझे उस बच्ची के भाव समझने का मौका मिला.
समय के दसवें भाग में उसने मुझे देखा, जब मैंने उसे उठने का महज इशारा किया. वह उठ खड़ी हुई और पुनः नृत्य करने लगी. बाकी बच्चियां क्रमबद्ध-नृत्य करती रहीं, और उसे देखकर मुस्कुराईं.
जब नृत्य समाप्त हुआ, तो सभी ने अति-उत्साह के साथ ताली बजाकर उनके इस स्वागत नृत्य का अभिवादन किया. किसी को भी उनके नृत्य में हुई उस त्रुटि का कोई असर नहीं हुआ.
अब आप सोचेंगे कि मैं यह कहानी आपसे क्यों साझा कर रही हूं? दरअसल इस पूरी घटना में मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहती हूं कि अपनी जिस कमी या कठिनाई को आप स्वयं कमी या कठिनाई नहीं समझते उसे हमारे बाहर की प्रकृति भी कमी या कठिनाई नहीं समझती.
अतः अपने आपको किसी भी कठिनाई से विचलित न होने दें. यदि आप उत्साह से कठिनाईयों का सामना कर जीवन रूपी मंच पर स्वागत नृत्य करते रहेंगे तो यह प्रकृति आपके अभिवादन के लिए हमेशा तालियां बजाएगी.