बच्चे मन के सच्चे

छोटी उम्र में बच्चे (children) हमारी किस बात को कितनी गंभीरता से ले लेते हैं, उसका हमें अंदाज़ भी नहीं होता. खेलकूद या हंसी-मजाक में कही बातें भी उनके दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं.

वे उन बातों को ज़िन्दगी भर कहीं न कहीं याद रखते हैं, और जाने अनजाने में उन बातों का प्रभाव आपके बच्चे के आत्मविश्वास, समझ और बर्ताव में, तुरंत या फिर कभी बाद में, देखने को मिलता ही है.

अपने बच्चे से बात करते समय ध्यान दें कि इस तरह की बातें उनसे या उनके सामने उनके बारे में न बोलीं जाएं.

don't scold child

अरे, तुम तो अपने मम्मी पापा जैसे बिलकुल नहीं दिखते

अधिकतर बच्चे अपने माता-पिता की तरह दिखना, बनना चाहते हैं. उन्हें गर्व महसूस होता है जब उनकी तुलना सकारात्मक तरीके से उनके अभिभावकों से की जाए. लेकिन, उनसे ऐसा कहना कि तुम अपने मम्मी-पापा जैसे नहीं, उनके आत्मविश्वास को कम करता है. ऐसी बातें जब वे कम उम्र में सुनते हैं, तो उनपर इसका गहरा असर होता है.

ओहो, बिलकुल अपने मां-बाप पर गया है

वहीं अभिभावकों से तुलना करना एक नकारात्मक तरीका है. बच्चे अपने मां-बाप को बहुत ऊंचे दर्जे से देखते हैं. इस तरह की गई तुलना ना ही केवल बच्चे को खुद के बारे में बुरा महसूस कराती है, बल्कि उनके माता-पिता का किया गया अपमान उन्हें और ज्यादा ठेस पहुंचाता है.

हाय, इसके हाथ में कितने रोएं हैं, बड़े होकर कितनी दिक्कत होगी इसे

दुःख की बात है कि जब बच्चों को उनके रूप की समझ तक नहीं होती है, तब से उन्हें भारतीय समाज में इस तरह की नकारात्मक टिप्पणी सुननी पड़ती है. वे बच्चे खुद की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, और खुद में कमियां ढूंढ खुद को दूसरों से कम समझने लगते हैं.

अगर खाना नहीं खाया तो डॉक्टर अंकल सुई लगा देंगे

ऐसा कहना कि खाना नहीं खाया तो डॉक्टर अंकल सुई लगा देंगे या फिर यह कह कर डराना कि यदि बात नहीं मानी तो मैडम से पिटाई लगवा दूंगी या फिर धमकाना कि यदि ऐसा किया तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी, बच्चे की बेगुनाही के साथ छेड़-छाड़ के समान है. बच्चों को यह बात समझानी ज़रूरी है कि पुलिस, डाक्टर, टीचर – यह सभी उसकी सहायता करने के लिए हैं, उन्हें सज़ा देने के लिए नहीं. मुसीबत से बचाने वाले लोगों की ही छवि जब भयानक होगी, तो बच्चा आखिर किस पर विश्वास करेगा? ऐसी धमकियां देना एक बुरे अभिभावक की पहचान है.

आने दो आज पापा को, फिर बताती हूं

बच्चा भला जाए तो कहां जाए, जब घरवाले ही आपस में उसे डरा-धमका रहे हों. बच्चे की गलती पर उसे समझने एवं समझाने की ज़रूरत है, डराने-धमकाने की नहीं.

जल्दी-जल्दी फिनिश करो, वर्ना रोहन फर्स्ट हो जाएगा

बच्चों के मन में प्रतिस्पर्धा की भावना होना कुछ हद तक सही है, लेकिन इस तरह नहीं. ऐसे में बच्चा अपने हर साथी को एक प्रतिद्वंदी के रूप में देखने लगता है, और दूसरे की जीत उसे अच्छी नहीं लगती. ऐसे में मन ही मन, उसके दोस्त कम, दुश्मन ज्यादा बनने लगते हैं.

एक ही चीज़ को बार-बार क्यों समझाना पड़ता है तुम्हें

बच्चे को अगर कुछ समझ ना आए, तो इस बात पर उसकी सराहना कीजिए कि वह आपसे बार-बार पूछ पा रहा है. डांटने से या इस तरह कुछ कहने से, उस पर झुंझलाने से खराब असर पड़ेगा. फिर, उसे कितनी ही परेशानियां क्यों न आ जाए, वह कुछ भी कहने या पूछने से कतराएगा.

अच्छे बच्चे कभी रोते नहीं

अच्छे और बुरे बच्चों में भेद बताना असफल पेरेंटिंग हैं. यह ना ही सिर्फ गलत है कि आप उन्हें बुरा होने का एहसास दिला रहें हैं, बल्कि यह भी लाजमी नहीं कि आप उन्हें खुद को व्यक्त करने से रोकें. यह समझने कि आवश्यकता है कि हर बच्चा एक समान नहीं होता, और कुछ बच्चे (और व्यस्क भी) रो कर अपने आप को बेहतर व्यक्त कर पाते हैं. यदि कोई दुःख है, तो उसे छिपाने कि नहीं, बल्कि उसका सामना करने की शिक्षा दें.  

शेम शेम पप्पी शेम

शेम शेम पप्पी शेम जैसी तुकबंदियां एक बच्चे के आत्मविश्वास एवं मनोबल को गहरा ठेस पहुंचा सकती हैं. उन्हें ऐसी बाते कह कर शर्मिंदा न करें.

पागल हो क्या?

यह वाक्य तो जैसे हर दूसरे व्यक्ति का तकियाकलाम है. पागल होना किसी के वश में नहीं होता. बिना सोचे समझे कही गई ऐसी बातों से ना केवल आप बच्चे के क्रिएटिविटी पर रोक लगा रहें हैं, बल्कि साथ ही उसके मन में दिव्यांगों के प्रति एक ख़ास विचार व निरादर भर रहे हैं.

जब भी महसूस हो कि आपको या आपके बच्चे को काउंसलिंग की ज़रुरत है, तो संकोच नहीं करें. आपके बच्चे के स्कूल में या फिर आस-पास चाइल्ड काउंसलर से मिलें.

एकदम सड़क-छाप बच्चों की तरह बर्ताव कर रहे हो तुम

ऐसी कोई भी गैरजिम्मेदार हरकत करने से पहले खुद से सवाल करें, कौन होते हैं ये सड़क-छाप बच्चे, और उनकी कौन सी बातें हैं जो आपके बच्चे को उनसे अलग बनाती हैं. बच्चों के मन में हर दूसरे बच्चे के लिए सद्भाव की भावना होनी चाहिए. ऐसी बातें उनके निश्चल मन में वर्ग, जाति इत्यादि को ले कर भेद भाव की कड़वाहट घोल देती हैं.

वो तो गंदा बच्चा है, तू मेरा राजा बेटा है

आपका बेटा यदि आपका राजा बेटा है, तो दूसरे किसी का बेटा भी उनका राजा बेटा होगा. ऐसे कथन से भले ही आपकी कोशिश अपने बच्चे को अच्छा महसूस कराने की होगी, पर किसी और की निंदा का सहारा लेना बिलकुल गलत है.

तुम ऐसी शैतानी करोगे तो तुम्हारे भाई बहन तुमसे क्या सीखेंगे?

या फिर ऐसा कहना कि सीखो कुछ अपने बड़े भाई बहन से, नकारात्मक रवैय्या है. भाई बहनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. उनके बीच की गई तुलना उनके रिश्ते को कमज़ोर बना सकती है. ऐसी बातें बच्चों पर आकांक्षाओं का भारी बोझ रख देती हैं, जिसे ढोना उनके लिए बहुत भारी पड़ सकता है. ऐसे में आपसी नफरत, आक्रोश, निराशा होना ज़ाहिर है.

तुम्हे ये करना है, क्योंकि मैंने कहा है

बच्चे को यह महसूस होना बहुत ज़रुरी है कि वह कितना खास है और उसकी कितनी अहमियत है. उनकी बातों को सुनें, समझें, और यह यकीन दिलाएं कि उनकी बातों को तवज्जो दिया जा रहा है. ऐसा कोई भी कथन कहने से बचें जिससे उन्हें लगे कि उनके साथ ज़बरदस्ती की जा रही है.


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