क्या आप भी कहते हैं ‘बच्चे तो शरारत करेंगे ही’

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आपने कितनी दफा यह बात सुनी होगी या खुद कही भी होगी कि बच्चे (children) तो शरारत किया ही करते हैं. ऐसा कह कर आप ना केवल अपने बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालते हैं, बल्कि साथ ही उन्हें एक ऐसे कम्फर्ट ज़ोन में भी घेर देते हैं जिसमें उन्हें खुद को हर स्थिति में महफूज समझने की आदत पड़ जाती है. इस कारण, मौका आने पर वे चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते.

यह प्रवृत्ति अधिकतर माओं की अपने इकलौते बेटे के प्रति देखने को मिलती है, जहां वे हर बात में अपने बच्चे की तरफदारी कर पहले तो उसे बचाती रहती हैं, फिर जब बेटा हाथ से निकल जाता है तो बिगड़ती स्थितियों को काबू नहीं कर पातीं. ना उनका बेटा उनकी सुनता है, ना खुद कोई सही फैसले ले पाता है. ऐसे में, मां बचपन से किए गए कुछ ज्यादा ही लाड़ प्यार पर अफ़सोस भी करती हैं, और साथ ही उन लम्हों के बीत जाने के गम में भी लीन हो जाती हैं.

अभिभावक (parents) होने के नाते सबसे पहली ज़रूरत है अपने बच्चे को समझने की और उसकी ज़रूरत अनुसार ही उसकी परवरिश करने की. आपकी पहली कोशिश होनी चाहिए बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाने की, वे जहां गलतियां करें उन्हें रोकने की, ज़रूरत पड़ने पर थोड़ा सख्त होने की एवं उन्हें लिंग, जाति, उम्र आदि से परे हर व्यक्ति का आदर करने की शिक्षा देने की. यदि आप इस अध्याय में सफल हो जाते हैं, तो अपने बच्चे का जीवन असल मायने में खूबसूरत बना पाएंगे.

यह बिलकुल जरूरी नहीं है कि आप अपने बच्चे की हर ज़िद पूरी करें. इससे पहले कि उनके ज़िद करने की नौबात आए, उन्हें यह अहसास दिलाएं कि उनके रोने या लोगों के बीच चीखने चिल्लाने से उन्हें चॉकलेट, खिलौने, या कोई भी अन्य चीज नहीं मिल जाएगी. अक्सर बच्चों को ज़िद करने की आदत तभी पड़ती है जब भीड़ में बच्चे को शांत करने के लिए, या फिर एकांत में कुछ समय बिता पाने के लिए अभिभावक बच्चे के हाथ में उनकी मनपसंद वस्तु पकड़ा दिया करते हैं.

छोटी उम्र में यदि उनकी कुछ गलत बात बोलने या कुछ गलत हरकत करने पर आप हंस देते हैं, और अन्य लोगों के बीच भी उनके ऐसे किस्से सुना कर ठहाके लगाते हैं, तो उन्हें और बढ़ावा ही मिलेगा. बाद में डांटने में कोई बुद्धिमानी नहीं होगी.


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