खुश बच्चे ज्यादा सीखते हैं

बैग, बोतल, पेंसिल बॉक्स, लंच बॉक्स और ढेर सारी कापी-किताबें लेकर बच्चा स्कूल तो पहुंच जाता है. पापा-मम्मी अपनी जिम्मेदारियां भी पूरी कर देते हैं.

लेकिन, स्कूल के गेट पर खड़े चौकीदार भैया से लेकर, कक्षा के बच्चे, अध्यापक, बिल्डिंग, सब कुछ एक बच्चे को रोज़ चुनौतियां देते हैं. बाल मन कई चिंताओं से घिरा होता है, और चुनौतियां लेकर आगे बढ़ता है.

एक काउंसेलर होने के नाते आप सब से मैं कुछ सुझाव व कुछ स्कूल की केस स्टडीज़ शेयर करना चाहूंगी. सबसे पहले हमें ध्यान रखना है कि नेगेटिव पेरेंटिंग नहीं करनी है.

एक छोटा सा बच्चा गतिक और प्यारी सी बच्ची मिताली जब अपने स्कूल ओरिएंटेशन के लिए पहुंचे तो गतिक बेहद खुश दिख रहा था. उधर, मिताली रोते हुए अपनी मां के गोद में घुसी जा रही थी.

गतिक अपनी मां से पूछ रहा था – मुझे झूले के पास जाना है, दोस्तों से मिलना है, खिलौने देखने हैं. वहीं मिताली घर जाने की जिद करती जा रही थी.

दोनों बच्चों के अभिभावक से बातचीत के दौरान पता किया कि गतिक की मां उसे रोज सुबह उठने पर कहती थी- ऐसा करोगे तो मैम को बता दूंगी, वैसा करोगे तो मैम को फोन कर दूंगी.

मिताली की मां ने बताया कि मिताली बेहद नटखट है और उसे सिर्फ एक ही बात से डर लगता है- मैम. जैसे ही “मैं कहती हूं तुम्हारी मैम को फोन करती हूं, वो शांत हो जाती है.

अब एक बच्चा अपने स्कूल टीचर से क्यों डरे भला? हम टीचर को समझदारी दिखाते हुए बच्चों को पहले से ही मानसिक स्तर पर किसी भी बदलाव के लिए तैयार रखना चाहिए.

स्कूल में हमारी यह कोशिश होती है कि हर बच्चे के पास जाएं, उन्हें जानें, प्यार दें और बच्चे के मन में स्कूल के लिए एक आदर भाव जगाएं. सवाल बच्चे के भविष्य का ही है. बच्चों के लिए इस सूत्र वाक्य को हमेशा याद रखें – “ए हैप्पी माइंड ऑलवेज लर्न्स मोर.”


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी