तलाक के बाद कहां जाएं बच्चे

तलाक (divorce) शब्द का अर्थ चाहे कितनी अच्छी तरह से कोई आपको समझा पाए, इसका दुष्परिणाम तो बच्चों (children) को ही झेलना पड़ता है.

बतौर काउंसलर एक वाक्या में आपसे शेयर करना चाहूंगी – आमिर खान, अमृता सिंह, बिल गेट्स या जेफ़ बेज़ोस के तलाक का नहीं, मगर हां, बनते बिगड़ते रिश्तों की एक सच्ची दास्तां.

मैं एक दिन शिवांगी (बदला हुआ नाम) के घर गई. मम्मी पापा के साथ बिताए अच्छे पलों को याद कर शिवांगी मुस्कुरा रही थी.

एक ओर ढेर सारी फोटो और दूसरी ओर किताबों, कपड़ों और उपहारों का बिखरा हुआ ढेर. अचानक ही उसकी मुस्कराहट उदासी में बदल गई, आंखों से आंसुओं का सैलाब बह उठा, मन के तार टूट से गए.

वह समझ नहीं पाई कि मैं कैसे वहीं उसके पास आ गई.

मेरा शिवांगी के घर जाना कोई इत्तेफाक नहीं था बल्कि स्कूल में उसका बदलता व्यवहार व आचरण था. मैंने उसके पापा से बात की और काउंसलर होने के नाते उन्होंने मुझे घर आने का मौका दिया ताकि मैं शिवांगी से घर पर बात कर सकूं.

पता चला कि गत तीन चार सालों से उसके मम्मी पापा के बीच अनबन चल रही थी, वे अक्सर लड़ते झगड़ते.


यदि कोई पति-पत्नी शादी में खुश नहीं हैं और वे तलाक लेना चाहते है, तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लेने के बाद अलग होने का अधिकार मिल जाता है. लेकिन, क्या वे दम्पति जिनके बच्चे हों, तलाक ले सकते हैं? उन्हें अपनों बच्चों के प्रति कितना संवेदनशील होना चाहिए?


शिवांगी – जो मात्र नौ वर्ष की बच्ची थी- इन सबसे डर गई थी. वह सहमी-सहमी रहने लगी थी, और उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है. ‘तलाक’ शब्द का अर्थ चाहे कोई समझा पाए, पर उसका दुष्परिणाम बच्चों को ही झेलना पड़ता है.

अक्सर ऐसे बच्चे चिंता, तनाव व कम आत्मसम्मान का शिकार हो जाते हैं. समाज में वे खुद को अलग-थलग एवं हीन पाते हैं. इन बच्चों का पढ़ाई लिखाई से ध्यान हट जाता है. और फिर धीरे-धीरे ये हीनभावना के शिकार हो जाते हैं. शिवांगी के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था.

पति पत्नी के बीच तलाक एक किसी ख़ास परेशानी का अंत हो सकता है जिससे उनके असंतुलित जीवन व्यवस्थित हो सके लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस लंबी प्रक्रिया का तनाव उनके साथ उनके बच्चे भी अनुभव करते हैं.

शिवांगी जैसे कई बच्चों के लिए यह प्रक्रिया भावनात्मक रूप से दर्दनाक हो सकती है. अतः ऐसी स्थिति में आयु के उपयुक्त स्पष्टीकरण और परामर्श महत्वपूर्ण है, जिससे कि बच्चे ये समझ पाएं कि ना ही वे अपने माता पिता के तलाक की वजह हैं, और ना ही उसका समाधान.

इन परिस्थितियों में भावनात्मक तनाव को कम करना बहुत आवश्यक है. अपने बच्चों से खुल कर बात करें, और उन्हें पूर्ण स्पष्टता प्रदान करें. बच्चों को भी मौका दें ताकि वे बता सकें कि वे क्या सोच रहें हैं और इस तरह खुल के बात करके उनकी उलझनें दूर कर के उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं. उन्हें बताएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं.

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अपनी किताब द गुड इनफ टीन में डॉ. ब्रैड साक्स चेतावनी देते हैं कि जो पति-पत्नी तलाक का फैसला करते हैं वे इस कदर अपने ख्वाबों-खयालों में खो जाते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि इससे एकदम से सारी समस्याओं का हल हो जाएगा, रोज़-रोज़ की खिच-खिच से हमेशा की छुट्टी मिल जाएगी, उनके रिश्ते से खटास चली जाएगी और ज़िन्दगी में चैन-सुकून आ जाएगा.

लेकिन यह उतना ही नामुमकिन है जितना नामुमकिन एक ऐसी शादीशुदा ज़िन्दगी जीना जिसमें खुशियां ही खुशियां हो. इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि तलाक लेने के क्या-क्या नतीजे हो सकते हैं और उन्हें ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहिए, खासकर अगर आपके बच्चे हों तब.


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