बच्चे भी इमोशनल एब्यूज से गुज़रते हैं

जब बात एब्यूज की आती है तो अक्सर लोग उसे शारीरिक रूप से की गई हिंसा से ही जोड़ते हैं. यदि इमोशनल एब्यूज का ख्याल आता भी है तो उसे पति-पत्नी के रिश्तों से जोड़ा जाता है.

पर रिश्ता चाहे पति पत्नी का हो, दो प्रेमियों का, बच्चों से अभिभावकों का या फिर भाई बहन के बीच का, यह समझने की जरूरत है कि यह खेल पावर डिफरेंस का है, जहां एक पार्टनर दूसरे को खुद से अवर समझने लगता है और हावी होने लगता है.

बात बच्चों के इमोशनल एब्यूज की हो तो बच्चे से जुड़े हर व्यक्ति के उसके प्रति व्यवहार की कोई न कोई भूमिका होती है. अभिभावकों द्वारा बच्चों के बीच भेद भाव करना भी इसका एक बहुत बड़ा कारक हो सकता है.

स्कूल या कॉलेज में बुलींग (bullying) के किस्से अक्सर सुनने को आते हैं, परंतु यदि एक बच्चा अपने घर में ही बुली हो रहा हो, तो उसका बच कर निकल पाना मुश्किल होता है, क्योंकि वह चाह कर भी अपने घर एवं घरवालों से दूर नहीं जा पाता.

Child Counsellor Shipra Tiwari

बच्चा यदि अपने घर में हो रही किसी मानसिक या शारीरिक हिंसा का विटनेस बनता है, तो वह उसकी मानसिक स्थिति को भी ठेस पहुंचाता है.

गौरतलब है कि किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए गंभीर, दोहराए गए और जानबूझकर किए गए प्रयास, बुलींग की स्थिति पैदा करते हैं, जो कि बच्चों के केस में इमोशनल एब्यूज (emotional abuse) का सबसे आम रूप हो सकता है.

इमोशनल एब्यूज के लक्षण  

कई दफा स्थितियां ऐसी भी हो सकती हैं जहां किसी घटना को सामान्यीकृत कर दिया जाए और एब्यूज का शिकार बच्चा व उसे एब्यूज करने वाला, दोनों ही इसकी गंभीरता को ना समझ पाए.

इस तरह का एक नमूना फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ में देखने को मिला था, जहां बच्चे पर कितना मानसिक दबाव पड़ रहा था, इसका अंदाजा उसके अभिभावकों को भी नहीं लग पाया था.

मुश्किलें बढ़ें, इससे बेहतर है सही समय पर परिस्थितियों का विश्लेषण कर लेना और जरूरत के अनुसार सुधार लाने की कोशिश करना.

ध्यान देने की जरूरत है कि आप अपने बच्चे के बर्ताव को भली भांति पहचानें. माता पिता से हमेशा डरना, या बच्चे का यह कहना कि वे माता पिता से नफरत करते हैं, खुद के बारे में बुरी तरह बात करना (जैसे, ‘मैं तो बेवकूफ हूं’), दोस्तों की तुलना में भावनात्मक रूप से अपरिपक्व लगना, भाषा या व्यवहार में अचानक परिवर्तन आना यह सभी बच्चे के साथ हो रहे भावनात्मक दुर्व्यवहार के लक्षण हो सकते हैं.

क्यों करें बच्चे भरोसा

अपने बच्चों को उनके कम अंक लाने या किसी गलती करने पर उनसे बात करें, समझाएं, और उनका हौसला बढाएं, बाहर वालों के सामने शर्मिंदा तो कतई न करें.

उन्हें बताएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं. खुद से सवाल करें कि आखिरी बार अपने बच्चे को ‘आई लव यू’ आपने कब कहा था. उन्हें गले लगाएं. उन्हें यकीन दिलाएं कि आप उनके भरोसे के काबिल हैं. दूसरों से उनकी बुराई या शिकायत ना करें.

जितना ज़रूरी इन लक्षणों और कारकों पर ध्यान देना है, उतना ही ज़रूरी है इनको मिसइन्टरप्रेट करने, यानी इनके बारे में गलत अनुमान लगाने, से बचना. अच्छे से अच्छे अभिभावकों ने भी अपने बच्चों को डांट लगाईं होगी. हो सकता है कि तनाव के समय कुछ ऐसी बातें भी कहीं हों जो वह कहना नहीं चाहते.

Child Counselling by Shipra Tiwari

अगर आप अपने व्यवहार के बारे में चिंतित हैं तो एक काउंसलर की सलाह लें. पेरेंटिंग सबसे कठिन और सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है, जहां हर छोटा से छोटा कदम बच्चे की ज़िन्दगी को बहुत बड़े रूप में प्रभावित कर सकता है.

इमोशनल एब्यूज का सीधा असर बच्चे की पढ़ाई पर होता है और उसका परफॉरमेंस खराब होने लगता है. उसके आत्मविश्वास में तो कमी आती ही है, साथ ही उसके अंदर बुरे विचार भी आने लगते हैं. जानबूझकर बच्चे को घर में अकेला छोड़ देना, बात-बात में इग्नोर करना, डराना-धमकाना और अनावश्यक परेशान करना भी इमोशनल एब्यूज के दायरे में आता है.


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