करन दुआ: खाने में हेल्थ?

करन दुआ जी भर के खाते हैं. बनना चाहते थे एनीमेशन एक्सपर्ट लेकिन हो गए फूडी. स्वाद के अजूबे शौक ने इन्हें सिर्फ फूडी ही नहीं बल्कि दिल से फूडी बना डाला. हालात ये हैं कि इन साहेब की नज़र वहीं जाकर ठहरती है जहां खाने की खुशबू हो.

आपका परिवार खाने का कितना शौकीन है?

खाना हमेशा मेरे परिवार के हर सदस्य के दिल के सबसे करीब है. जो कुछ आपने सुना होगा पंजाबी खाने के बारे में, वो मेरे और मेरे परिवार पर बखूबी लागू होता है. क्योंकि मैं एक पंजाबी परिवार में जन्मा तो, हमने मक्के की रोटी, सरसों की साग, छोले भठूरे और बटर चिकन जैसे विशिष्ट पंजाबी भोजन का मज़ा जीवन भर उठाया है. असल में, मेरे द्वारा पकाए हुए आटे वाले आलू से मेरा रसोई से संबंध शुरू हुआ, जिसकी प्रेरणा मुझे मेरे पिताजी से मिली थी. मेरे एक फूडी परिवार में पैदा होने के पीछे विशेष प्रयोजन है. इससे मुझमें ऐसा उत्साह पैदा हुआ किया कि मैं नए कुजीन, स्ट्रीट फूड और अनोखे व्यंजन बनाने से पीछे नहीं हटा. मेरे परिवार ने इसमें एक अहम भूमिका निभाई है. हमें खाना बनाना और खाना खूब पसंद है.

क्या दिल से फूडी नाम के पीछे भी कोई कहानी है?

जैसा कि मेरे ब्लॉग का नाम ही दिल से फूडी है, यह समझना आसान है कि दिल से फूडी का मतलब है कि खाना हमारे लिए सबसे ज़रूरी है, ज़रूरी ही नहीं सबसे पहली पसंद भी है. उसके बाद ही हमें किसी अन्य चीज से इतना लगाव है. मेरा मानना है कि हम सभी की अपने पसंदीदा व्यंजनों से जुड़ी कुछ न कुछ यादें और कहानियां ज़रूर हैं. दिल से फूड भोजन के बारे में जरूर है, लेकिन उससे ज़रूरी है वो कहानियां जो आपके बनाए भोजन से जुड़ी हैं. एक शौक से ऊपर उठ कर जब खाना बनाना एक जुनून बन जाए, तो वाकई आप दिल से फूडी हैं. ऐसी जुनून भरी कहानियां और किस्से हमारे ग्रुप को अनोखा बनाती हैं. कोई भी काम जब जुनून और शिद्दत से किया जाए तो वो कभी गलत नहीं होता, ये दिल से फूडी का मूल मंत्र है. 

क्या एनीमेशन में आप नाकाम रहे या फिर… खाने के प्यार ने आपको जीत लिया?

मैं एक प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान में एनीमेशन में एक बेहतरीन पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहा था. स्कूल के बाद मुझसे जो उम्मीदें थीं, वो मैं पूरी कर रहा था. मेरे सामने काफी संभावनाएं भी थीं. लेकिन, अंदर से मैं कुछ अधूरा सा था. मैं अपनी पढ़ाई का आनंद नहीं ले पा रहा था, और मुझे लगा जैसे मैं अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर रहा था. मुझे लगता था कि मेरी ज़िन्दगी किसी के काम नहीं आ रही है. और फिर, बड़ा बदलाव हुआ. मैंने पारंपरिक करियर के नियमों का पालन न करने के फैसला लिया और अपने खाने के प्रेम को मैंने अपना लक्ष्य बनाया. फिर तो पूरे ब्रह्मांड ने मेरे लिए दरवाजे खोल दिए.

आप लोगों के खाने की आदतों को कैसे देखते हैं? मेरा मतलब है, एक शहर से दूसरे शहर तक, ग्रामीण इलाकों से अप-मार्केट, परंपरागत परिवारों से लेकर छोटे परिवारों तक और कॉलेज सिंगल्स तक?

खाद्य न केवल मनुष्य के लिए पोषण का स्रोत है, बल्कि हमारे दैनिक जीवन, विश्वास और सामाजिक-आर्थिक विषयों में भी कई भूमिका निभाता है. इसलिए आज के समय में, भोजन न केवल सामाजिक स्थिति का संकेत देता है, बल्कि इसका इस्तेमाल एक समूह के चरित्र के रूप में भी किया जा सकता है, जिसे क्षेत्रों, परिवारों, जातियों या धर्मों द्वारा विभाजित किया जाता है. खाने का व्यवहार और आदतें जो एक बार बन जाती हैं, वो निरंतर चलती हैं. जब लोग अन्य क्षेत्रों या देशों में जाते हैं, तो उनकी पारंपरिक खाने की आदत, स्वाद और खाना पकाने के तरीके काफी हद तक वैसे ही रहते हैं. कुछ विशेष मामलों को छोड़ कर, इस मामले में कोई भी बड़ा परिवर्तन करना कठिन होता है. अगर मैं अपने दादा दादी के समय से आज के अपने भोजन के रवैया की तुलना करूं तो, अपनी जीवन शैली के अनुसार हम बदल गए हैं. जिस तरह से हम किराने का सामान खरीदते हैं, खाना पकाते हैं और खाते हैं, ऐसा लगता है जैसे सब बदल गया है. अब घंटों खाना पकाना एक इतिहास हो गया है, आजकल झटपट खाना अधिक लोकप्रिय हो गया है. यदि आप बहुत भूखे हैं तो घंटों इंतज़ार नहीं करेंगे, खाने के लिए, ऐसे में झटपट होम डिलीवरी करा लेंगे और ये स्ट्रीट फूड ही आपका एकमात्र सहारा हैं. आज के व्यस्त जीवन में, भोजन ही परिवारों को साथ लाता है. खाने के दौरान चैट और बातचीत करने का अवसर मिलता है. इसीलिए जब आप परिवार के साथ खाना खाने की जगह चुनते हैं तो एक आरामदायक और शांत माहौल को अधिक पसंद करते हैं. दूसरी ओर, युवाओं और कॉलेज जाने वाले छात्रों को कैफे या नुक्कड़ मैगी ज्यादा पसंद है.

अगले कुछ वर्षों में हम किस प्रकार का बदलाव देख सकते हैं, खासकर तब जब खाने का स्वाद बदल रहा है. अब लोग स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो रहे हैं और जैविक वस्तुओं का आकर्षण बढ़ रहा है?

आपको पता है, एक फूडी होने की सबसे बड़ी दुविधा क्या है? आप स्वास्थ्य के बारे में जागरूक इस दुनिया में एक फूडी कैसे हो सकते हैं? और अगर आप फूडी हैं तो जहां तहां जाकर आप अपना वजन घटाने की कोशिश कैसे कर सकते हैं? एक भोजन प्रेमी वास्तव में कैलोरी की संख्या पर कभी ध्यान नहीं देता है, खासकर तब जब उसकी पसंदीदा डिश मेज पर रखी हो. मैं आम तौर पर सोचता हूँ कि क्या हमें तभी खाना चाहिए जब हम भूखे हों या फिर तभी हम खाना बंद कर दें जब पेट भर जाए? ऐसी भावनाओं या उत्तेजनाओं के प्रति अगर आप सचमुच ईमानदार हैं तो आप ठीक हैं. संक्षेप में, मॉडरेशन एक बड़ी कुंजी है. मेरी राय में एक फूडी को खुश करने का ट्रेंडिंग तरीका है, डाइनिंग टेबल पर उन्हें कुछ ताज़ा और सरल देना. लोग उन व्यंजनों को पसंद करते हैं जो सरल हों और स्वाद के साथ प्राकृतिक रूपों को भी जीवित रखें.

खाना, ट्रेवल, लेखन और शूटिंग, यह सब साथ-साथ आप कैसे संभालते हैं?

यह भारत एक खोज जैसा है. मेरे लिए यह खाना-खज़ाना की यात्रा है या फिर यूं कहें कि स्वाद के पीछे कहीं भी कुछ भी कर सकता हूँ. यही काम है, यही आराम और यही छुट्टी. मेरा विश्वास है कि किसी भी संस्कृति का वास्तविक स्वाद वहां के स्ट्रीट फूड में है. जब मैं अपनी यात्रा करता हूँ तो एक सच्चे फूडी की तरह सिर्फ अच्छे रेस्तरां में ही जाने की योजना नहीं बनाता. मुझे तलाश होती है वहां के लोकल फूड की. सबसे बेहतरीन रेस्तरां पाने के लिए सबसे अच्छी जगहों का पता लगाने में जुटा रहता हूँ. फिर एक लंबी लिस्ट तैयार हो जाती है और फिर खाना-खजाना की सैर शुरू हो जाती है. यदि आप मुंबई, दिल्ली या अन्य शहर के स्थानीय भोजन चखना चाहते हैं तो आप निश्चित रूप से स्ट्रीट फूड की खोज में निकल जाते हैं, क्योंकि वे स्थानीय व्यंजन ही हैं जो शहर के असली स्वाद की बेहतरीन झलक दिखाते हैं. दिल्ली 6 की संकीर्ण गलियों में फूड वाक्स, अमृतसर में कुलचा छोले, श्रीनगर में वाज़वान और कोलकाता में बिरयानी जैसी क्षेत्रीय विशिष्टताओं की खोज के साथ परिपक्व हो गया हूँ. मेरी चेकलिस्ट में यह सबसे महत्वपूर्ण होता है अब क्या और कहां खाऊं?

दिल से फूडी से हमारे पाठकों को कैसे फायदा हो सकता है?

आप जो खाना बनाते हैं या जो खाते हैं, उसका स्वाद और अनुभव, इन सब बातों को दिल से फूडी समुदाय के साथ साझा करने के लिए हम एक मंच प्रदान करते हैं. हम एक समूह के रूप में न केवल सिर्फ खाते पीते हैं बल्कि एक दूसरे से जुड़े भी हैं. अब वो बटर चिकन से प्यार हो या स्ट्रीट फूड का दुलार, हम सब कुछ शेयर करते हैं. खाना हम सब को जोड़ता है और साथ लेकर चलता है. अब, बिजनेस साइड देखी जाए तो हम अपने प्रमोशन के लिए फोटोशूट करते हैं, ब्लॉगर कम्युनिटी और विश्लेषकों से मिलते हैं, फूड वाक पर जाते हैं और कंटेंट राइटर को भी साथ रखते हैं. हम हर किसी का स्वागत करते हैं और हर किसी की मदद कर सकते हैं, जो ऑनलाइन और ऑफ लाइन मीडिया के माध्यमों की मदद से प्रचार चाहते हैं. हम खाते-खाते उन्हें ब्रांड बना देते हैं. है न मज़ेदार बात.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी