माता-पिता की तस्वीरें कम दिखती हैं

इनके फ्लडलाइट स्टूडियो में अर्थशास्त्री अमर्त्या सेन हों या मुख्यमंत्री ज्योति बसु, राजनीतिज्ञ सोमनाथ चटर्जी हों या गायिका आशा भोंसले, सभी अपनी फोटो ‘निकलवाने’ आया करते थे. अल्पोना बनर्जी कहती हैं, “सब बड़े-बड़े आदमी यहां आकर अपनी फोटो उठाते थे. कुछ लोग फोटो लेकर उसे डेवलप कराने भी आते थे, सभी हमारे पिताजी को बहुत मानते थे. उन्होंने काफी लोगों को ट्रेनिंग भी दिया.” भारत बोलेगा ने इनसे जानना चाहा कि क्या कुछ बदला है नए कोलकाता में.

फ्लडलाईट स्टूडियो कोलकाता में बालीगंज की सबसे पुरानी दुकान है

फ्लडलाइट स्टूडियो क्या है? इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई?

पहले के ज़माने में फोटो खींचते वक्त बहुत ज्यादा रौशनी एक साथ चमकती थी. उसे फ्लडलाईट कहते थे. फ्लडलाईट स्टूडियो कोलकाता में बालीगंज की सबसे पुरानी दुकान है. यह 90 वर्ष पुरानी है, और दक्षिण कोलकाता का पहला स्टूडियो भी. इसकी बागडोर अभी तक पिछली चार पीढ़ियों ने संभाली है, और मैं यहां पिछले 45 साल से काम कर रही हूँ. हमारा नाम है अल्पोना बनर्जी, पिताजी का नाम है नंदलाल बनर्जी, और भाई है सौमित्रू बनर्जी.

तब और अब में कितना फर्क आ गया है?

उस समय जिसका भी फोटोग्राफी का काम होता था, सब यहीं हमारी दुकान में ही हुआ करता था. अभी नया ज़माना आ गया. सब कुछ डिजिटल हो गया, तो अब हम डिजिटल भी करने लगे हैं. लेकिन, हमारे यहां पुराने ज़माने की सभी चीजें पड़ी हुई हैं, जैसे कि कैमरा.

पहले का ज़माना बेहतर था या अब अच्छा लग रहा है?

पहले परिवार आया करते थे. अब सबके पास फोन में ही कैमरा आ गया है. अभी देखा जाए तो हमारे फोन ने सब खराब कर दिया है. लगता है, सब कुछ ही बदल गया है. पर, सब ठीक है, चल रहा है. पहले के लोग भी अलग थे, अच्छा लगता था. लोग शौकीन होते थे. तब फोटो बनाने में थोड़ा समय लगना कोई बड़ी बात नहीं थी. लेकिन, अभी के लोग बहुत फास्ट (तेज) हो गए हैं. उन्हें सभी कुछ जल्दी चाहिए. पहले तो लोग इस बात से ही खुश हो जाते थे कि कागज़ पर उनकी तस्वीर आ जा रही है. अब आपके पास कम्प्यूटर, फोटोकॉपी मशीन और कई बेहतरीन उपकरण है. हमारी ही दुकान को देखिए, यह बड़ी हो गई है लेकिन कस्टमर कम हो गए हैं. अब बिजनेस भी कम हो गया है.

क्या आने वाली पीढ़ी इस स्टूडियो को आगे बढ़ाएगी?

अगली पीढ़ी को कुछ मालूम हो, तो करेगी ना. उन्हें जो आएगा, वही करेंगे. हमलोगों को जो करना था, वो कर रहे हैं. चूंकि हमारी दुकान पुरानी है तो कोशिश कर रहे हैं और यह ख़ुशी की बात है कि हमारी चौथी पीढ़ी यह काम कर रही है.

आपके स्टूडियो की कुछ खास यादें बताएं?

यहां जितना भी फोटो लगा है, सब इसी स्टूडियो में खींचा गया है. महान कलाकार उत्तम कुमार हों या सुचित्रा सेन उनकी तस्वीरें हमारे पिताजी नंदलाल बनर्जी ही निकाला करते थे. वे सिनेमा का काम भी करते थे. एक बार आशा भोंसले जी की रिकॉर्डिंग 12 घंटे तक चली. उस वक्त हमने दिन भर उनकी फोटो खींची. मुझे याद है आशा जी ने मुझे अपने पास बिठाया था और मेरी दीदी को हमारी फोटो लेने के लिए उन्होंने कहा था. ऐसे ही यादें बनती गईं. बहुत लोगों की फोटो हमने खींची हैं, और सभी के साथ कुछ न कुछ यादें हैं.

तब के कलकत्ता और आज के कोलकाता में कितना फर्क आ गया है?

कलकत्ता बहुत सुंदर हुआ करता था. बहुत स्वीट था सब कुछ. आदमी लोग बहुत स्वीट थे.

ऐसे क्यों लगता है कि पहले सब लोग स्वीट थे, अब नहीं?

पहले का सब कुछ याद है, और सब कुछ बहुत याद आता भी है. पहले के लोग फोटोग्राफी की बहुत इज्ज़त करते थे. माता-पिता और अन्य बुजुर्गों की तस्वीरें हर घर में लगी होती थीं. अब पुराने लोगों की फोटो कम ही घरों में दिखती हैं. सब घर नए-नए तरीकों से सजे होते हैं. मकान बड़े-बड़े बन गए, पर अपनों की तस्वीरें लगना कम हो गया.  

फोटोग्राफी सर्विस पहले की अपेक्षा अब कैसी है?

पहले हम फोटो बनाते थे. डेवेलपिंग, प्रिंटिंग, एन्लार्जिंग, और पुराने फोटो को नया करने जैसे काम होते थे. अब भी वो सब काम होते हैं, पर अब सब कुछ डिजिटल हो गया है. कम लोगों से ही काम निकल जा रहा है, कई बेरोजगार भी हो गए हैं.

कोलकाता से बाहर भी आपकी शाखाएं हैं?

हमारी दूसरी शाखा हावड़ा में है. हमारे रिश्तेदारों ने चार पांच दुकानें और बना ली हैं. हमारे यहां से काम सीखकर भी बहुत लोगों ने अपनी-अपनी दुकानें खोल ली.

चार पीढ़ियों के काम करने के तरीकों में कितना बदलाव महसूस होता है?

हम सब कोई ऐसे बदले नहीं हैं. हम जैसे थे, वैसे ही रहे हैं. कस्टमर्स बदल गए. आधे पुराने लोग गुज़र गए या फिर कलकत्ता छोड़ कर चले गए.

आज भी ऐसे लोग हैं जो फोटोग्राफी के शौक़ीन हैं. उनके बारे में आपकी क्या राय है?

कैमरे की इज्जत में फर्क आ गया है. आजकल लोग बदल गए हैं. वे फोन में 500 फोटो लेंगे और दो देखेंगे. पहले ऐसे नहीं था. एक फिल्म के अनुसार ही फोटो लेते थे. 

क्या अब भी स्टूडियो में लोग आते हैं?

अब जब ज़रूरत होती है तो आते हैं. ज्यादातर पासपोर्ट साइज फोटो के काम से ही आते हैं. पर हम बाकी सब काम आज भी करते हैं. आज जब पुराने स्टूडियो बंद हो रहे हैं, तो नए ज़माने से उम्मीद है कि वे नई चीज़ों के साथ सभी को जोड़ कर चलें. बाकी सब बढ़िया है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी