प्रियंका का रोड शो

प्रियंका गांधी अब खुल कर राजनीति में आ गईं  हैं. वैसे तो प्रियंका 2004 से ही चुनावी रणनीति का हिस्सा रहीं जब उनके भाई राहुल गांधी ने अपना पहला चुनाव लड़ा. 

इन 15 वर्षों में तीन लोक सभा चुनाव हुए. उन सभी चुनावों में प्रियंका ने भाई राहुल और मां सोनिया गांधी की जीत सुनिश्चित की.

चाहे 2004 का चुनाव हो या 2009 का या फिर 2014 का, राहुल के लिए अमेठी और सोनिया के लिए राय बरेली सीट से जीतना महत्वपूर्ण था. 

अब 2019 में जब पुनः लोक सभा चुनाव होने वाले हैं, कांग्रेस ने प्रियंका को जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) का पद दिया है.

प्रियंका के पद संभालने के मायने

कांग्रेस संदेश साफ़ है कि प्रियंका अब सिर्फ रणनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि कांग्रेस की राजनीति में अहम् भूमिका निभाने आ गई हैं. 

गत 10 वर्षों में खासकर पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाया जाता रहा है कि प्रियंका को पार्टी में शीर्ष पद दिया जाए.

सीधे तौर पर खुद प्रियंका गांधी के ऊपर अत्यधिक दबाव रहा है कि वे पार्टी में उच्च पद ग्रहण करें. 

पार्टी के लगभग सभी स्तर से हमेशा मांग की जाती रही है कि प्रियंका गांधी कांग्रेस की कमान संभालें और पार्टी को नई दिशा दें.

कांग्रेस में जो पार्टी ढांचा है उसमें पार्टी में सर्वोच्च पद अध्यक्ष का है, जिसके बाद कोषाध्यक्ष और कई जनरल सेक्रेटरी, इंचार्ज, सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी होते हैं. 

प्रियंका को जनरल सेक्रेटरी का पद दिया गया है, जिसमें उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी गई है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश संभाल रहे हैं, जबकि पार्टी में अंबिका सोनी, गुलाम नबी आज़ाद, हरीश रावत, मोतीलाल वोहरा, मुकुल वासनिक व मलिकार्जुन खार्गे सहित कई अन्य जनरल सेक्रेटरी हैं. 

क्या प्रियंका कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र हैं

प्रियंका ऐसे समय में खुल कर सामने आईं हैं जब पार्टी को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत है. गांधी परिवार के लोग बताते हैं कि प्रियंका एक बेहद समझदार इंसान हैं. उनकी सबसे बड़ी खूबी है कि वे दबाव में घबराती नहीं हैं.

जनवरी के अंतिम सप्ताह में जब प्रियंका को जनरल सेक्रेटरी बनाया गया तब से लेकर आज तक उन्होंने इस संबंध में एक शब्द नहीं कहा है.

पद पर बहाल किए जाने के 15 दिनों के बाद जब प्रियंका जनता के सामने घंटों  रहीं, तब भी उन्होंने एक शब्द नहीं कहा. 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 11 फरवरी को पांच घंटे से अधिक चले रोड शो में प्रियंका लोगों से मिलती रहीं. तब भी उन्होंने कुछ नहीं कहा.

रोड शो के उपरांत जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ प्रियंका मंच पर आसीन हुईं, तब भी उन्होंने मुंह नहीं खोला. 

ज़ाहिर है, प्रियंका का राजनीति में खुलकर आना, जनरल सेक्रेटरी पद पर मनोनीत होना और रोड शो के दौरान घंटों लखनऊ की जनता से रू-ब-रू होना, सहज या आसान नहीं हो सकता.  

कितनी शक्तिशाली हैं प्रियंका

गांधी परिवार के सदस्य यह मानते रहे हैं कि जिस घर ने देश को जवाहरलाल नेहरु के रूप में पहला प्रधानमंत्री दिया; जिस घर ने देश को इंदिरा गांधी के रूप में पहला महिला प्रधानमंत्री दिया, और जिस घर ने देश को राजीव गांधी के रूप में सबसे युवा प्रधानमंत्री भी दिया, उस घर ने बहुत त्रासदी झेली है.

इसी कारण पहले सोनिया, फिर राहुल और प्रियंका सीधे तौर पर राजनीति में आने से परहेज करते रहे.

इसलिए 2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद लेने से इनकार किया. मनमोहन सिंह ने 2004 से लेकर 2014 तक दो बार प्रधानमंत्री बने रहने के दौरान बार-बार राहुल गांधी से अनुरोध किया कि वे प्रधानमंत्री का पद लें, फिर भी राहुल ने उच्च पद से दूरी बनाए रखी. 

गत लोक सभा चुनाव 2014 में हुए, जब कांग्रेस को बहुत नुकसान हुआ. सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी द्वारा कांग्रेस पार्टी व गांधी परिवार पर बारंबार लगातार इतने प्रहार होते रहे जिसका सामना करने और जवाब देने प्रियंका गांधी खुलकर राजनीति में आईं हैं. 

यह सामान्य नहीं है कि प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र वह इलाका है जहां से भारतीय जनता पार्टी के दो सबसे प्रखर नेता कांग्रेस व गांधी परिवार पर हमला कर रहे हैं. 

वाराणसी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन महंत योगीनाथ को ख़ास तौर से प्रियंका गांधी रुपी कांग्रेस आंधी का सामना करना पड़ेगा. मोदी और योगी दोनों के लिए ही अब मुश्किलें पैदा होंगी, चूंकि प्रियंका अब बोलेंगी.   


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