अच्छे दिन 2022 में

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहां तख़्त-नशीं था, उसको भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था.

जब आपने 2009 में दोबारा भारतीय लोकतंत्र की बागडोर कांग्रेस नेतृत्व वाले यू.पी.ए. यानी यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस को सौंपी थी तब शायद कांग्रेस के नेताओं ने भी यही सोचा था कि अब उन्हें कुर्सी से कोई अलग नहीं कर सकता.

और अब बीजेपी उस अहम का शिकार बन चुकी है और उन्हीं हथकंडों का सहारा ले रही है जिसने कांग्रेस रूपी खुदा को सत्ताच्युत कर उसे जीवन का सबसे बड़ा सबक दिया कि लोकतंत्र में जनता ही खुदा है.

भारतीय राजनीति में एक समय ऐसा आया जब विश्लेषकों ने साझा सरकार जिसे कोएलिशन गवर्नमेंट कहते हैं, को भारत की नियति मान लिया और ऐसा बताया कि भारतीय राजनीति एक संक्रमण काल से गुजर रही है.

शायद वर्तमान सरकार के विजय के आगाज के साथ संक्रमण का दौर तो ख़त्म होता नज़र आ रहा है क्योंकि बीजेपी को अकेले ही केंद्र में बहुमत हासिल है. लेकिन, भारतीय राजनीति फिर से एक दूसरे संक्रमण के दौर में प्रवेश कर चुकी है जहां शक्ति यानी कुर्सी के लिए हमारे राजनेता किसी भी हद तक जा सकते हैं.

राजनीति से जनसेवा विलुप्त हो गई है और प्रशासन संबंधित सब कुछ सत्ता और शक्ति के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया है. जनता के वोट को लोक-लुभावन वादों द्वारा अपने पक्ष में कर सत्ता पर काबिज होने की कला ही सर्वोत्तम राजनीति का पैमाना बन चुकी है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो कभी मीडिया के समक्ष मान भी लिया था कि सत्ता हथियाने हेतु चुनावी जुमले अलग होते हैं. इसका सीधा अर्थ है प्रत्येक चुनाव के लिए जुमले का ईजाद करना ही भारतीय राजनीतिक दलों का मुख्य कार्य बन चुका है.

जो दल जितना लुभावना जुमला बना कर जनता को बरगला सकता हो सफलता उसके उतनी नज़दीक होगी. यानी जनता के लिए लोक-कल्याणकारी नीतियां सिर्फ झूठ का व्यापार बन चुकी हैं.

तभी तो स्वतंत्रता के पश्चात हर वर्ष गरीबी दूर करने और गरीबों के लिए कार्यक्रमों की घोषणा होती आई है, लेकिन उनके परिणामों पर नज़र डालें तो आप पाएंगे कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की.

गरीबी हटाने के लिए कार्यक्रम बने तो अमीर की झोली भरती गई और गरीब आशाओं के बोझ तले दब-दब कर मरते रहे. या यों कहें चुनावी जुमलों का शिकार होते रहे.

बीजेपी टाइमलाइन

Bharat Bolega watch2014 के बाद से जो बीजेपी का चरित्र सामने आया है वो यह कि चुनाव जीतना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है न कि विकास.

 

Bharat Bolega watchईमानदारी पर सबक देने वाले प्रधानमंत्री की ये ईमानदारी शायद हलक से नीचे नहीं उतरती.

 

Bharat Bolega watchराष्ट्रीयता पर पूरे देश में एक बहस छिड़ गई है जो महज ‘पॉपुलिस्ट नेशनलिज्म’ है; क्या इसी के बलबूते एक नए भारत का निर्माण होगा?

 

Bharat Bolega watchपूरे राष्ट्र को इस नई सरकार से बड़ी-बड़ी उम्मीदें थीं परंतु उन उम्मीदों पर पानी फिरता सा नज़र आ रहा है.

 

Bharat Bolega watchजनता के समक्ष बीजेपी एक नई कांग्रेस के अलावा कुछ नहीं.

 

Bharat Bolega watchभारतीय जनता पार्टी को विपक्षी अब भारतीय जुमला पार्टी बता रहे हैं.

 

एक बार फिर से और बहुत प्रभावी ढंग से नए जुमले का सहारा लिया जा रहा है जिसकी मार्केटिंग पिछले कुछ दिनों से आरंभ हो चुकी है. वर्तमान सरकार अब गरीबों और देशवासियों को नए सब्ज-बाग़ दिखाने में मशगुल हो चुकी है, और कह रही है कि 2019 तक न सही परंतु 2022 तक भारतवासियों के ‘अच्छे दिन’ तो अवश्य आ जाएंगे.

प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी अध्यक्ष सभी एक स्वर में 2022 तक भारत का काया पलट कर देने का अलाप लेने लगे हैं. किसानों की आत्महत्याएं भी अब 2022 तक ही थम पाएंगी.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कभी बीजेपी ने ही ‘शाइनिंग इंडिया’ का कैंपेन चलाया था. तब भारत उनकी नज़र में चमक रहा था और आज मोदी के नेतृत्व में भारत के ‘अच्छे दिन’ आ गए हैं, लेकिन ‘न्यू इंडिया’ यानी एक नए भारत के निर्माण के लिए देशवासियों को कई तरह के बलिदान देने होंगे.

‘न्यू इंडिया’ का नया जुमला इस बार प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के केंद्र में था. 2022 तक भारत को विकसित बनाने का मोदी सरकार का वादा एक सुनियोजित और संगठित तरीके से जनता के बीच पेश किया जा रहा है.

न्यू इंडिया 2022 तक साकार

नए भारत में सभी गरीबों के लिए पक्के घर की व्यवस्था की जाएगी. उनके घर को बिजली प्रदान कर उजाले से सराबोर कर दिया जाएगा. जीवन की नौ बुनियादी जरूरतों में लगभग सभी उम्दा गुणवत्ता सहित गरीबों को उपलब्ध हो जाएगी.

ये नौ बुनियादी जरूरते हैं रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य और बिजली, सड़क एवं पानी. आने वाले वर्षों में युवा और महिलाओं के लिए अवसर ही अवसर होंगे. भारत सांप्रदायिकता, जातिवाद, एवं आतंकवाद से मुक्त भारत बन जाएगा. लेकिन शर्त यह है कि यह सब 2022 तक ही संभव हो पाएगा.

वर्ष 2022 को अमित शाह और मोदी द्वारा इतने ढंग से इतनी बार दोहराया जा रहा है कि एक तरह से जनता के मानस-पटल पर यह छा जाए. अर्थात जनता अब 2019 के चुनाव में बीजेपी को ही सत्ता सौंपे, क्योंकि तभी 2022 में उन्हें एक ‘न्यू इंडिया’ मिलेगा और अच्छे दिन आएंगे.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी