सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा है कि राजनीतिक दलों को चंदा देने से संबंधित चुनावी बांड्स पर फिलहाल रोक नहीं लगेगी, लेकिन सभी दलों को बांड का ब्यौरा देना होगा.
कोर्ट ने कहा कि सभी दल जिन्हें चुनावी बांड्स के जरिये चंदा मिला है वो सील कवर में चुनाव आयोग को इस संबंध में ब्यौरा देंगे.
इस आदेश के बाद सभी राजनीतिक दलों को दानदाताओं की पहचान और उनके खातों में मौजूद धनराशि का ब्यौरा 30 मई तक चुनाव आयोग को सौंपना होगा.
उच्चतम न्यायालय के अगले आदेश तक चुनाव आयोग भी चुनावी बांड्स से एकत्रित की गई धनराशि का ब्यौरा सील बंद लिफाफे में ही रखेगा.
उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बांड्स को चुनौती देने वाली याचिका पर अप्रैल 11 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने सभी सम्बद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षा रखा था.
चुनावी बांड्स के मसले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और चुनाव आयोग आमने-सामने नजर आए.
केंद्र सरकार की ओर से पेश एटर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष दलील दी थी कि चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए बांड की व्यवस्था की गई है, क्योंकि चुनाव में सरकारी फंडिंग की व्यवस्था नहीं है.
वेणुगोपाल ने न्यायालय को सूचित किया कि अनेक कंपनियां चुनावी चंदा देते वक्त विभिन्न कारणों से अपना नाम गुप्त रखना चाहती हैं.
उन्होंने कहा कि चुनावी बांड के जरिये दिया गया चंदा सफेद धन होता है, क्योंकि जांच एजेंसियां यदि चाहें तो वे बैंकिंग चैनलों के जरिये इसकी जांच कर सकती हैं.
निर्वाचन आयोग ने, हालांकि स्पष्ट किया कि वह राजनीतिक दलों को धन देने के लिए चुनावी बांड जारी करने के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह दानदाताओं के नाम छिपाने के खिलाफ जरूर है.
आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील थी कि चुनावी बांड योजना में पारदर्शिता होनी चाहिए.
चुनावी बांड जारी किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर न्यायालय द्वारा सुनवाई के दौरान द्विवेदी ने कहा, “हम उस चंदे का विरोध नहीं कर रहे हैं जो वैध हैं, हम तो केवल इस योजना में पारदर्शिता चाहते हैं. हम दानदाताओं के नाम छिपाने के खिलाफ हैं.”
इससे पहले पीठ ने चुनावी बांड पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर लंबी सुनवाई की जरूरत बताई थी.
एक याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में चुनावी बांड्स का ज्यादातर फायदा एक ही दल को मिलने का आरोप लगाया था.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह कानून में किए गए बदलावों का विस्तार से परीक्षण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संतुलन किसी दल के पक्ष में न झुका हो.