एक रु. शहीद के नाम

पुलवामा आतंकी हमले के बाद देशभर में राष्ट्रीयता की लहर फैल गई है. आजाद भारत में सैनिकों पर ऐसा हमला कभी नहीं हुआ. इसलिए, आज हर कोई सैनिकों के लिए बढ़-चढ़कर कुछ करना चाहता है.


देने की संतुष्टि किसे नहीं होती? और यह फीलिंग अधिक शक्तिशाली हो जाती है जब आपसे कोई मांगने आता है.


एक सज्जन ने भारत बोलेगा को बताया कि उनके ऑफिस का हर कामगार अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा उन सैनिकों के परिवार को देना चाहता है जिन्होंने पुलवामा त्रासदी सबसे ज्यादा झेली है.

उनके ड्राईवर ने ऑफिस जाते हुए यहां तक पूछ लिया कि ‘हमने पाकिस्तान को अब तक हराया कि नहीं हराया? बताइए साहेब, हम क्या कर सकते हैं?’

शहीदों के लिए, उनके परिवारों के लिए पूरा देश एकजुट हो गया है. सभी की आंखें नाम हैं, और मस्तक झुका हुआ है लेकिन भारतीयता की भावना से सभी लवरेज हैं.

देशभर से लोग चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं, ताकि उन परिवारों को अतिरिक्त सहायता पहुंचाई जा सके.

ऐसे में बिहार की राजधानी पटना स्थित पद्माजा वेलफेयर सोसाइटी ने सभी देशवासियों से एक रुपया चंदा इकठ्ठा करने का लक्ष्य रखा है.

इस चैरिटेबल संस्था का कहना है कि बढ़-चढ़कर तो सभी सहभागिता करते हैं. जो हर तरह से सक्षम हैं वे बड़ी राशि भी मुहैय्या कराते हैं. लेकिन, उनकी संतुष्टि का क्या जो आम परिवार हैं या बड़ी राशि का योगदान नहीं कर सकते.


पद्माजा वेलफेयर सोसाइटी के कार्यकर्ता रात-दिन इस अभियान में ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को जोड़ने में लगे हैं. इस संस्था का पता है: 303, राघवेन्द्रलोक अपार्टमेंट, पुनाईचक, पटना – 23.


पुराने समय में राजा-महाराजा जब कोई बड़ा कार्य करवाते थे तो वे जनता से चंदा लेते थे. इसके पीछे मकसद यह था कि आम नागरिकों को लगे कि उस कार्य में उनकी भी हिस्सेदारी है.

पुलवामा आतंकी हमले के बाद पद्माजा संस्था का कहना है कि राष्ट्रीयता सिर्फ बड़ी आमदनी या नौकरीपेशा लोगों की ही नहीं होती. राष्ट्रीयता तो हर नागरिक की होती है, चाहे वह किसी भी रोज़गार में शामिल हो.

इसी सिद्धांत पर काम करते हुए पद्माजा संस्था ने ‘वन नेशन, वन रूपी’ (एक राष्ट्र, एक रुपया) नाम से एक अभियान की शुरुआत की है. इसके अंतर्गत हर नागरिक से सिर्फ एक रुपया चंदा मांगा जा रहा है.

संस्था का कहना है कि लोगों को इस अभियान से जुड़कर बहुत संतुष्टि मिल रही है. छोटे-से-छोटे बच्चे और साधारण-से-साधारण इंसान को इस अभियान से जुड़कर एक रुपया सहयोग राशि देने में बराबर की राष्ट्रीयता की भावना का एहसास हो रहा है.

मजदूर हो या किसान, रिक्शा चालक या दुकानदार सभी देश के जवानों के लिए और भी बहुत कुछ करने के लिए कह रहे हैं. सैनिकों के लिए कुछ देने के लिए, उनके परिवारों के लिए कुछ कर गुजरने के लिए वे बहुत उत्साहित हैं.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी