क्या आपके बच्चे को मनोचिकित्सक की जरूरत है?

Child Counselling

आजकल मानसिक स्वास्थ्य (mental health) के बारे में खूब चर्चे हो रहे हैं. इससे जुड़े लक्षणों और सावधानियों के बारे में जागरूकता फैलाई जा रही है. यह उन सभी पीड़ितों के लिए एक सकारात्मक कदम है जो न जाने कब से अपने अंदर बातों को दबाते रहे और ये समझ ही नहीं पाए कि इसका उनपर सिर्फ मानसिक रूप से ही नहीं, शारीरिक रूप से भी गहरा असर पड़ता रहा है.

यह अच्छी बात है कि मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषय के बारे में जागरूकता बढ़ी है परंतु इन चर्चों के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी बढ़ते दिख रहे हैं. डिप्रेशन (depression), एंग्जाइटी (anxiety) आदि बिमारियों से जुड़े कुछ नए ऐप्स और वेबसाइट्स उभर कर आ रही हैं जिनपर पूर्ण रूप से भरोसा करना भारी पड़ सकता है. खैर, यदि मदद चाहें तो अनेक विकल्प उपलब्ध हैं.

बच्चों के मामले में कई बार स्पष्ट रूप से मानसिक समस्याओं के लक्षणों को समझना मुश्किल होता है, परन्तु उन्हें नज़रंदाज़ करने पर दुष्परिणाम हो सकता है. जरूरी नहीं कि हर बार आपके बच्चे को एक काउंसलर (child counsellor) की जरूरत हो और ये भी जरूरी नहीं कि इन लक्षणों का सीधा-सीधा मतलब आपके बच्चे का मानसिक रूप से बीमार होना ही हो. पर अभिभावक होने के नाते, इनका ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी है.

बच्चों के खाने की आदतों में विकार आना, उनके व्यवहार में बदलाव आना (जैसे कि एक बहिरंग गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वाले बच्चे का अचानक ही खेलने जाना बंद कर देना, या विद्यालय जाने से कतराना, या फिर एक शांत एवं अंतर्मुखी बच्चे का अप्रत्याशित रूप से ओवर रियेक्ट करना, या फिर और सहमा हुआ रहना), पढ़ाई में कमजोर होते जाना और नींद की प्रक्रिया में बदलाव आना चेतावनी के संकेत हो सकते हैं.

कई बार माता पिता के बीच मनमुटाव या नए स्कूल में दाखिला होने की वजह से बच्चा कुछ समय के लिए परेशान हो सकता है, पर यदि ये लक्षण हों तो सही समय रहते उन्हें चेक करना जरूरी है.

जरूरी नहीं कि हर बार मामला यौन शोषण या धौंसियाने से जुड़ा हो, रोज़मर्रा के आम किस्से भी उनके निष्कपट मन में दुविधाओं का बीज पिरो कर उन्हें असुविधाजनक महसूस करा सकते हैं. यदि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई फैमली हिस्ट्री रही हो, तब तो इन लक्षणों को बिलकुल भी नज़रंदाज़ ना करें. बच्चों को ऐसे में डांटने या उनसे जबरदस्ती करने की बजाए उनसे प्यार से बात करें, उन्हें महसूस कराएं कि वे कितने खास हैं.

2004 में प्रकाशित हुई ऐलिस मिलर की किताब ‘दी बॉडी नेवर लाइज’ के अनुसार बचपन में लगे मानसिक सदमों को वक्त के साथ भले ही हम भूलने लग जाएं, पर हमारा शरीर उन्हें कभी नहीं भूलता. हमारा शरीर फिर किन रूपों में और कितने वक्त के बाद परस्पर प्रतिक्रिया शुरू कर दे उसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है.

पहले, जानकारी के साथ विकल्पों की कमी थी. आज वक्त बदल रहा है. विद्यालयों में एक काउंसलर का होना एक अनिवार्यता बन चुकी है. अगर कोई बच्चा लंबे समय तक असामान्य रूप से चिंतित (tensed) या उदास (sad) या चिड़चिड़ा (irritated) महसूस करता है और यह उसकी उम्र के बच्चों के लिए उपयुक्त चीजें करने की उनकी क्षमता के साथ दखल दे रहा है, तो इससे पहले कि वह अपने व्यवहार को एक हानिकारक आकार दे, एक मनोचिकित्सक की मदद लेना एक अच्छा विचार है.


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