फिल्म समीक्षा: दिल से

आतंक के साये में धड़कते दिलों की दास्तां है ‘दिल से’

मणि रत्नम की फिल्में सिनेमाई यथार्थबोध की पैरवी करती है. ‘बांबे’, ‘रोजा’ और ‘दिल से’ में मणि रत्नम ने प्रेम को जो ट्रीटमेंट दिया है वह यथार्थ के काफी नजदीक दिखता है. शाहरूख खान और मनीषा कोईराला की इस फिल्म में मणि रत्नम ने आतंकवाद के साये में प्रेम को जवां होते दिखाया है.

शाहरूख खान ने फिल्म में रेडियो जर्नलिस्ट की भूमिका निभाई है. बरसात की एक रात सुनसान से रेलवे स्टेशन पर उसकी मुलाकात एक असमिया लड़की मेघना से होती है. यहीं से शुरू होता है जुनून और इश्क का अंतहीन सिलसिला. रहस्यमयी मेघना (मनीषा) का पीछा अमरकांत (शाहरुख) हाफलोंग, सिलचर से लद्दाख तक करता है.

फिल्म में एक रहस्यमयी महिला से एक पत्रकार प्रेम करता है लेकिन जब बाद में उसे पता चलता है कि वह लड़की तो एक मानव बम है तो उसे यकीन करना मुश्किल हो जाता है. मणि रत्नम की फिल्मों की सबसे बड़ी खूबी है सिनेमेटोग्राफी.

‘बांबे’, ‘रोजा’ और ‘दिल से’ में कल्पना और यथार्थ को इतने बखूबी से पर्दे पर दिखाया गया है कि कुछ भी फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है. मणि रत्नम ने इस फिल्म में प्रेम का अरैबिक रुपांतरण किया है. अरबी कहानियों में जिस तरह इश्क के कई स्टेज होते हैं उसी तरह ‘दिल से’ में भी इश्क के कई स्टेज को फिल्माया गया है – पहले आकर्षण, फिर वासना, फिर प्रेम, फिर पूजा, फिर जुनून और अंत में मौत.

‘दिल से’ फिल्म को हमेशा इश्क के क्लासिक सिनेमाई रुपांतरण के लिए याद किया जाएगा. ‘चल छइयां छइयां’ जैसे गाने इस फिल्म के एवरग्रीन गाने हैं और यह ट्रैक काफी पॉपुलर भी है.


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