फिल्म समीक्षा: अ वॉक टू रिमेम्बर

स्पार्क्स द्वारा 1999 में लिखे गए रोमांटिक उपन्यास ‘अ वॉक टू रिमेम्बर’ का फिल्मी रूपांतर निर्देशक ऐडम शिंकमैंन ने 2002 में किया. शेन वेस्ट और मैंडी मूर के बेहतरीन अभिनय के साथ इस फिल्म में प्यार, सुधार व विश्वास का ये सफ़र वाकई एक यादगार सैर है.

यह कहानी एक रोमांचक तरीके से शुरू होती है जहां लैंडन नामक युवक अपने दोस्तों के साथ धुम्रपान कर आधी रात मौज करते हुए एक दूसरे युवक को ज़ख़्मी कर मौका-ए-वारदात से फरार हो जाता है. और यहीं से उपन्यास एवं फिल्म में अंतर नज़र आने लगता है.

कभी-कभी हमें विश्वास, पूरा विश्वास रखना पड़ता है

निकोलस स्पार्क्स की लव स्टोरी जहां साल 1950 की घटना पर आधारित थी, वहीं ऐडम शैंकमैंन ने युवा दर्शकों का दिल जीतने के लिए कहानी की सेटिंग को कुछ दशक आगे बढ़ा कर कई दृश्यों में कुछ ज्यादा रोमांच भर दिया है.

अ वॉक टू रिमेम्बर

गलती की सज़ा के रूप में लैंडन को स्कूल में होने वाले एक नाटक में भाग लेने को कहा जाता है. अब लैंडन ठहरा एक बागी और लोकप्रिय नवयुवक, और उसे रोल दे दिया जाता है एक सीधी सादी ईसाई जेमी के साथ, जिसका स्कूल में उसके पहनावे को लेकर सभी मज़ाक बनाते हैं.

यह देखना दिलचस्प है कि कैसे नाटक की तैयारियों में जेमी सजा के तौर पर नाटक में भाग ले रहे लैंडन की मदद करती है और देखते ही देखते उनके बीच नजदीकियां बढ़ती जाती हैं.

इस दौरान लैंडन को जेमी की विश लिस्ट के बारे में पता चलता है, और वह धीरे-धीरे उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करने में लग जाता है.

कहानी में मोड़ तब आता है जब लैंडन को जेमी की बीमारी के बारे में पता चलता है, और वह अब उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करता है- उसी चर्च में उससे शादी करने की जहां उसके माता-पिता की शादी हुई.

क्या जेमी लैंडन के इस प्रस्ताव को स्वीकार करती है? क्या वह अपनी बीमारी से लड़ कर बच पाती है? जानने के लिए पढ़ें, और देखें, ‘अ वॉक टू रिमेम्बर’.       


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