फिल्म समीक्षा: मेरा नाम जोकर

विश्व सिनेमा जगत में हिंदी सिनेमा को एक अहम स्थान दिलाने में कपूर खानदान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

इस कड़ी में शो मैन राज कपूर ने बखूबी अपना किरदार निभाया है. इन्होंने लगभग पांच दशकों तक निर्माता, निर्देशक, कहानीकार और अभिनेता के रूप में अपनी छाप छोड़ी.

तीन राष्ट्रीय पुरस्कार और 11 फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित राज कपूर को भारत का क्लार्क गेबल और चार्ली चैपलिन कहा जाता था. 

संगम जैसी सुपरहिट फिल्म के बाद जब उनकी छह साल की मेहनत मेरा नाम जोकर 1970 में रिलीज़ होने जा रही थी तो लोगों में बेहद उत्सुकता थी.

यह माना जा रहा था कि यह फिल्म राज कपूर की अर्ध आत्मकथा है. फिल्म के निर्माण की अवधि लंबी हो गई थी और इसके निर्माण के लिए राज कपूर ने काफी कर्ज़ भी लिया व अपनी प्रॉपर्टी भी गिरवी रख दी थी.

फिल्म कहानी थी राजू की जिसे अपनी अध्यापिका से किशोरावस्था में प्यार हो जाता है. राजू का दिल टूटता है और फिर जुड़ता है रूस की सेनिया रियाबिनकिना द्वारा, परंतु जल्द ही राजू अपना सब कुछ खो बैठता है.

सब कुछ खो देने के बाद किस्मत फिर से द्वार खटखटाती तो है पर फिर से सब कुछ छीनकर ले जाती है.

अपने पिता जी का दिया हुआ गुड्डा वह हर उस महिला को देता है जिससे वह प्यार करता है, और हर वह महिला उसे वह गुड्डा वापस कर देती है.

असल में वह गुड्डा प्रतीक था राजू के प्यार भरे दिल के लिए, जो उसने उन महिलाओं को देना तो चाहा पर उन महिलाओं ने स्वीकार नहीं किया.

असल में, मेरा नाम जोकर एक अत्यंत दार्शनिक फिल्म थी और शायद यही कारण था कि दर्शकों और समीक्षकों ने उसे पसंद नहीं किया.

फिल्म का लंबा होना भी इसका एक नकारात्मक पक्ष था, जिस कारण फिल्म में दो इंटरवल रखने पड़े थे. समीक्षकों का मानना था कि फिल्म के तीन भाग थे जो अपने आप में एक स्वतंत्र फिल्म की तरह पेश किए जा सकते थे.

इस फिल्म की रिलीज़ के बाद राज कपूर की आर्थिक हालत खराब हो गई थी जो उनकी अगली फिल्म बॉबी के बाद ही सुधरी.

बरहाल अपने समय की यह डिजास्टर आज मिसअंडरस्टुड मास्टरपीस मानी जाती है. कास्ट: राज कपूर, सिमी गरेवाल, मनोज कुमार, ऋषि कपूर, धर्मेन्द्र, दारा सिंह, सेनिया रियाबिनकिना, पद्मिनी और राजेंद्र कुमार.


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