जानें ‘मुग़ल-ए-आज़म’ हिन्दी सिनेमा का एक नायाब तोहफ़ा क्यों है

aaj phir jeene ki mughal e azam

आज फिर जीने की तमन्ना है (Aaj Phir Jeene Ki Tamanna Hai) के एपिसोड 1 (podcast) में सुनें मुग़ल-ए-आज़म (Mughal-e-Azam) से जुड़ी एक अहम जानकारी.

जैसा कि आप जानते हैं – भारत बोलेगा यानी ‘जानकारी भी, समझदारी भी‘, तो आज फिर जीने की तमन्ना है के पहले एपिसोड में बबलू शैलेन्द्र बता रहे हैं मशहूर फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म का ख़ास क़िस्सा.

हमेशा चुटकी से सिगरेट की राख झाड़ने वाले के. आसिफ़ (K. Asif) इस फ़िल्म के डायरेक्टर थे. उन्होंने कुछ फिल्में ही बनाईं जिनमें मुग़ल-ए-आज़म आज भी सौ बार देखने वाली फिल्मों की लिस्ट में शुमार है.

अपने ज़माने की सबसे महंगी फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म के गानों को लिखने का काम किया शकील बदायूंनी (Shakeel Badayuni) ने तो उन्हें संगीत में ढाला नौशाद (Naushad) ने.

इस पॉडकास्ट में सुनें इसी फ़िल्म से जुड़ा एक बेहतरीन क़िस्सा जो आपको गुदगुदाएगा, और आप गुनगुनाए बिना नहीं रह पाएंगे.

1960 में प्रदर्शित मुग़ल-ए-आज़म हिन्दी सिनेमा का एक नायाब तोहफ़ा है जिसे शानदार निर्देशन, भव्य सेटों, बेहतरीन संगीत के लिए हमेशा याद किया जाता है.

चाहे मधुबाला (Madhubala) की दिलकश अदाएं हों या फिर दिलीप कुमार (Dilip Kumar) की बग़ावती शख़्सियत या फिर हो बादशाह अकबर (Akbar) बने पृथ्वीराज कपूर (Prithiviraj Kapoor) की दमदार आवाज़, फ़िल्म में सब कुछ था नया और बेजोड़.


इस पॉडकास्ट को प्रायोजित किया सहदेव कुमार ने. हमारे पॉडकास्ट प्रायोजित करने के लिए mail@bharatbolega पर मेल भेजें.

 


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी