रेल फाटक पर दुर्घटनाएं

ज्ञान पीठ पुरस्‍कार से सम्‍मानित केरल के विख्‍यात लेखक एस.के.पोट्टीकाट ने अपनी लंदन यात्रा का विवरण देते हुए सड़क पर लगे एक साइन बोर्ड का जिक्र किया था, जिस पर लिखा था – सड़कें पार करने में उतावलेपन से अस्‍पतालों में मरीज बढ़ते हैं.

यह बात चौकीदार रहित रेलवे लाइनों के फाटकों पर भी लागू होती है. तेज रफ्तार से गुजरती रेलगाड़ियों के आने से पहले पटरियों को पार करने में लोग अक्सर जल्‍दबाजी दिखाते हैं, लेकिन वे रेलगाड़ियों के बारे में एक साधारण सी बात भूल जाते हैं कि 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही रेलगा‍ड़ी को 1.7 किलोमीटर की दूरी तय करने में एक मिनट से भी कम का समय लगता है.

इसलिए सिर्फ आधे मिनट से भी कम का फायदा उठाने के प्रयास में हम रेल पटरियों को पार करने का प्रयास करते है, जहां कुछ दूरी पर एक तेज रफ्तार से रेलगाड़ी आ रही होती है.

रेल सेवाओं के इस्‍तेमाल खासकर रेल फाटकों को पार करने में हड़बड़ी से खतरों के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए भारतीय रेल और रेलवे सुरक्षा संगठन संयुक्‍त रूप से अभियान भी चलाते रहते हैं.

हम सब को भी चौकीदार रहित रेलवे फाटकों के विषय में आम जनता को इन्‍हें पार करने में हड़बड़ी से बचने के प्रति जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए. प्रचार कार्यक्रम के जरिए सड़कों पर नाटकों और वीडियो के माध्‍यम से लोगों को जागरूक बनाना चाहिए.

भारतीय रेल की 31,254 लेवल क्रासिंग में से 12,500 फाटक बिना चौकीदार वाले है, जो लगभग 40 फीसदी है. ये बिना चौकीदार वाले रेलवे फाटक लगभग 40 फीसदी रेल दुर्घटनाओं का कारण बनते है, जिनमें से 66 फीसदी में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.

रेल फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाएं बड़े पैमाने पर मानव जनित है और इनसे बचा जा सकता है. हमें यह सुनश्चित करना होगा कि चौकीदार रहित रेलवे फाटकों से 200, 120 और 5 मीटर पहले साइन बोर्डो, सड़क चेतावनी निशानों एवं अन्य ध्यानाकर्षित तस्वीरों को लगाया जाए.

लेवल क्रासिंग पार करते समय अत्‍यधिक सावधानी बरतना ही चाहिए. अधिक आवाज में कार का रेडियो बजाना, रेलगाड़ी को देखने के बावजूद लेवल क्रासिंग पार करने का प्रयास करना और वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना, ये सभी दुर्घटनाओं को सीधा निमंत्रण है, जिनसे जनहानि का जोखिम बना रहता है.

भारतीय रेल यात्रियों से बार-बार इस संदेश के माध्‍यम से अपील करती रहती है कि आपकी जान कीमती है और घर पर आपके परिजन आपका इंतजार कर रहे हैं.

उत्तर पश्चिम रेलवे में कुल ट्रेन दुर्घटना की लगभग 80% दुर्घटना मानवरहित फाटकों पर होती है. ये दुर्घटनाऐं आमतौर पर सडक उपयोगकर्ताओं की लापरवाही के कारण होती है. जीवन समय से अधिक मूल्यवान है, रूकें-देखें-कोई ट्रेन न आ रही हो तभी पार करें.

अगली बार आप जब भी किसी लेवल क्रासिंग के पास से गुजरे तो याद रखिएगा – एक मिनट से भी कम समय का इंतजार आपके लिए जीवन भर फायदेमंद रहेगा और आप स्‍वस्‍थ, आनंदमय तथा प्रफुल्लित जीवन जिएंगे. हैप्पी जर्नी.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी