आपने मम्मा जैसी मैम देखी है?

मेरी कक्षा की गुड़िया और विद्यालय की सबसे खूबसूरत, प्यारी, मासूम बच्ची — मेरी अनोखी परी ‘अपूर्वा’ — चेहरे पे मुस्कान और खूब सारी खुशी लिए रोज सुबह बस्ता टांगे स्कूल पहुंच जाती. बस्ता जो उससे काफी बड़ा और भारी दिखता.

हर कोई उसे कहता: “अप्पू, मम्मा से बोलो छोटा बैग खरीद दें.” और उसका जवाब होता: “मैम, बैग तो बड़ा नहीं है, मैं ही छोटी हूँ.”

बेहद प्यारी, चुस्त और शरारती अपूर्वा.

एक दिन मैंने देखा, अप्पू चुपचाप बैठी है. ना किसी से बात करना, ना कोई मुस्कान. मैं उसकी तरफ लपकी और उसे छूते ही महसूस किया उसे तेज बुखार था.

मैंने उसे तुरंत अपनी शाल में लपेटा और उसके घर फोन किया. जितनी देर में उसके पिताजी आते, मैंने उसे जोर से अपने में चिपकाए रखा और उसका सर दबाती रही. उसके पिताजी आये और उसे लेकर चले गए.

वर्षों बाद मुझे एक दिन अपूर्वा मिली. मैंने उसे यू हीं चिढाते हुए कहा: “मेरा अप्पू राजा मुझे भूल गया क्या?”

मेरा इतना कहना था कि वह दौड़ कर आई और मेरे गले से चिपककर कहने लगी: “मैं आपको कैसे भूल सकती हूँ मैम! एक बार जब मैं बीमार हुई थी, तब आपने मुझे अपने मैरून शाल में लपेटकर मेरा सर दबाया था और मुझे समझाया था कि मैम भी मम्मा जैसी होती है. तो भला मैं अपनी इतनी अच्छी मम्मा-मैम को कैसे भुला सकती हूँ!”

अपूर्वा का इतना कहना था कि मेरा मन खुशी से गदगद हो उठा और अपने कर्त्तव्य को निष्ठापूर्वक करने का मीठा-मीठा सा अनुभव भी.

ना जाने ऐसे कितने ही नन्हे मुन्नों को मैं किस-किस रूप में याद हूँ और वे मुझे किस तरह स्नेह करते हैं.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी