कहां दफ़न है रज़िया?

ख्वाब बन कर कोई आएगा … तो नींद आएगी … अब वही आ के सुलाएगा … तो नींद आएगी. जी हां. शाहजहांनाबाद यानी पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में तुर्कमान गेट की तंग गलियों में मैं जैसे ही घुसी, मेरे नथूनों से सड़ांध की बू टकराने लगी. मेरे लिए वांछित लक्ष्य तक पहुंचना काफी मुश्किल हो गया था, फिर भी मैं जैसे-तैसे अपने लक्ष्य तक पहुंची.

मैं जिस जगह जाना चाहती थी, वहां पहुंचने के लिए गलियां इतनी तंग और बदहाल थी, मानो हम किसी भयावह सुरंग में घुसे जा रहे हों. मेरी जगह कोई सैलानी यहां पहुंचा होता तो इसकी जर्जर हालत देखकर यह भरोसा नहीं कर सकता कि दक्षिण एशिया की पहली मुस्लिम महिला शासक रजिया सुल्ताना का मकबरा है. दरअसल इतिहास में विशेष रुचि होने की वजह से मेरा लक्ष्य रजिया सुल्ताना का मकबरा था.

मकबरे तक पहुंचने के बाद मुझे वहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से लगाया गया सूचना-पट्ट दिखा. यह बात दीगर है कि उस सूचना पट्ट में प्रमाणिक जानकारियां उपलब्ध नहीं कराई गई हैं. प्रवेश द्वार बहुत छोटा था, मैंने घुसते ही सामने देखा कि रानी साजी की दरगाह नाम से प्रसिद्ध इस जगह के अहाते के मध्य में एक चबूतरे पर दो कब्र हैं. इनमें से दूसरी कब्र अज्ञात है.

ऐसा माना जाता है कि यह कब्र रजिया की बहन शजिया बेगम की है. इन दोनों कब्रों में रजिया के कब्र को लेकर भी इतिहास में असमंजस की स्थिति है. इस कब्र का गुबंद पैंतीस वर्ग फुट रहा होगा, लेकिन अतिक्रमण के कारण अब यह सिमट गया है. अब यहां मात्र आठ फुट ऊंचाई से घिरी कब्र है, जिसकी चारों दीवारों से सटाकर ऊंचे-ऊंचे मकान बनाये जा चुके हैं. उन मकानों में एयर कंडीशन भी लगे हैं. तीन फुट पांच इंच चौड़ी और लगभग आठ फुट लंबी दो कब्र ही इस जगह को थोड़ा बहुत खास बनाती हैं.

मैं जब वहां पहुंची तब चारों तरफ से अतिक्रमण का शिकार बने इस कब्र की देखरेख के लिए कोई भी नहीं था. मुझे दो घंटे बीत गये, लेकिन तब तक वहां कोई नहीं आया. मैं खड़ी हुई थी तभी मुझे लगा कि किसी ने मुझे छुआ हो. मैने पीछे मुड़कर देखा तो एक लंबे और चमकदार काले कपड़ों में लिपटी एक महिला खड़ी थी. मैं उसे देखकर सहम-सी गयी, लेकिन अगले ही पल उसने मुझसे कहा – डरो मत. मैंने उनका परिचय पूछा. उन्होंने कहा, ‘‘मैं रजिया सुल्ताना.’’ मैं एक दम चौंक गई. फिर उनसे मेरी आत्मीय बातचीत हुई: 

… आप इस तरह से?

– हां, मैं यहां हमेशा तन्हा रहती हूँ. साल 1240 ई. में बनी मेरी इस मजार को इतने सुनसान और तंगहाल जगह पर बनाया गया, जहां कोई आता-जाता नहीं. एक समय था जब मेरी यह पसंदीदा जगह थी. मैं यहां शिकार करने आती थी. यहां घने जंगल होते थे और यहीं से यमुना नदी भी बहती थी. बड़ा ही मनमोहक दृश्य होता था, लेकिन आज यह जगह क्या से क्या बन गई, यह तो तुम्हें भी देखने से ही पता चल रहा है. इसे शब्दों में बयां करने की शायद जरूरत नहीं.

The-notings-at-the-tomb-of-Razia-Sultan.-Photo-by-C.-Rahul.
फोटो: राहुल नायर

सभी ऐतिहासिक स्थलों से दूर एक कोने में आपकी मजार बनाने का कारण …

– यह तो मैं भी नहीं जानती कि यहां मेरी मजार बनाने का क्या कारण रहा? मेरे भाईजान बहराम शाह को मेरे महिला शासक होने से आपत्ति थी, जिस कारण उन्होंने मुझे अपना दुश्मन समझा.

आपकी मजार इतनी जर्जर हालत में ? क्या कभी इसके सुधार के लिए कुछ नहीं किया गया ?

– मजार की मरम्मत के लिए सैकड़ों बार घोषणाएं हुई, लेकिन यह कहकर टाल दिया गया कि इतनी तंग गलियों में कोई मरम्मत का सामान नहीं आ सकता है. यहां साफ़ सफाई की भी कोई सुविधा नहीं है.

रजिया सुल्ताना से हमारी बातचीत हो ही रही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. एक लड़का वहां आया. मैने वापस मुड़कर देखा तो रजिया सुल्ताना वहां से गायब हो चुकी थीं. मैंने उनसे उनके बारे में जानने की कोशिश की तो उस लड़के — मो. शफदर — ने बताया कि वह वहां की खुद से देखभाल करता है. अपनी मर्जी से नमाज़ भी पढ़ता है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी