भारत-पाक युद्ध निकट

सरकारें अपनी आक्रामकता के लिए भी प्रसिद्ध होती हैं. और अब तो भारत सरकार का रुख भी ठोस और बुलंद दिख रहा है. तो क्या राष्ट्रहित को सर्वोपरी रखने हेतु और जनता में अपनी छवि को बनाए रखने के लिए भारत सरकार युद्ध का रास्ता अपनाएगी?

हाल के दिनों में पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ा रुख या फिर ऐसे प्रतीकों का इस्तेमाल जो देशवासियों के अंदर राष्ट्रप्रेम की भावना को मजबूत करे, देखने को मिल रहा है. पाकिस्तान एक दुश्मन राष्ट्र के रूप में उभर रहा है. जनमानस में भी इस पड़ोसी देश की छवि दुश्मन की तरह अंकित हो रही है.

युद्ध का रास्ता भारत के लिए सुगम और फायदे वाला हो सकता है क्योंकि दलगत राजनीति में सत्ता के लिए संघर्ष रोजमर्रा की बात हो गई है. ऐसे में दुश्मन राष्ट्र के साथ युद्ध सत्तारूढ़ बीजेपी की छवि को दीर्घकालीन वोट-बैंक बनाने में मदद कर सकता है.

लेकिन, कुल मिलाकर यह न तो राष्ट्रहित में होगा न ही देशवासियों के हित में. अत: युद्ध को टालने के लिए कुटनीति का ही मार्ग अपनाना लाभकारी होगा.

भारतवासियों के लिए चिंताजनक राजनीतिक व्यवस्था

युद्ध की स्थिति राजनीतिक प्रक्रिया के फेल होने पर पैदा होती है. जब कूटनीतिक मार्ग बंद हो जाते हैं या एक डेड-एंड पर आकर अवरुद्ध हो जाते हैं तो युद्ध ही एक मार्ग बचता है.

भारत और पाकिस्तान के संबंध में कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है. वर्तमान सरकार के कार्यकाल के घटनाक्रम इसी ओर इंगित कर रहे हैं.

विगत दो महीनों के अंदर दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं जो भारत-पाकिस्तान के संबंध के भविष्य के लिए चिंताजनक है. इन घटनाओं के विषय में कहा जा सकता है कि युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं.

सर्वप्रथम, जैसा सभी जानते हैं कि कश्मीर घाटी में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा 8 जुलाई को बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद वहां बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी है. इसी बीच भारतीय फौज़ और सरकार दोनों को पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकार हनन का अपराधी करार देने के प्रयास किया जा रहा है.

दूसरी बड़ी घटना हुई जब अगस्त के प्रथम सप्ताह में पाकिस्तान में सार्क देशों के गृह यानी आंतरिक मामलों के मंत्रियों की बैठक हुई और भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह वहां से नाराज़ होकर लौटे.

चिंताजनक बात यह है कि पाकिस्तान से वापस लौटकर गृह मंत्री ने अपने और भारत के हुए अपमान का जिक्र करते हुए अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों की भारत-पाक रिश्ते के संदर्भ में भूमिका की सराहना की और यह बताने का प्रयास किया कि कैसे सारे प्रयास फेल हो चुके हैं.

राजनाथ सिंह के बयान से भारत सरकार की खीझ और निराशा झलकती है. ऐसा लगता है हमारे कूटनीतिक संसाधन ने सरेंडर कर दिया है और अब हमारे हतोत्साहित नेताओं को आगे का रास्ता बंद नज़र आ रहा है.

जब सरकार के अंदर ही विफलता घर कर जाए और हताशा का माहौल बन जाए तो यह युद्ध का आगाज होता है. फिलहाल, केंद्रीय मंत्री स्‍मृति ईरानी ने सियाचीन बेस कैंप में ‘रक्षा बंधन’ के अवसर पर जवानों की कलाई पर राखी बांधकर उनका हौसला बढ़ाया है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी