कोरोना की दुकान और राजनीति

कोरोना अपना कहर समस्त दुनिया पर बरपा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि हमें वो हर संभव प्रयास करने चाहिए जिससे इसके फैलाव को हर कीमत पर रोका जा सके.

तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. व्हाट्सऐप पर कोरोना सम्बंधित ज्ञान की बाढ़ आ गई है.

इंसान को अचानक से कोरोना के विषय में इतना ज्ञान प्राप्त हो गया है कि शायद इतना खुद कोरोना वायरस को भी पता नहीं होगा.

कुछ अच्छे, कुछ कच्चे, कुछ अध-पके तो कुछ सड़े ज्ञान तमाम फोटो, लेख, मीम और ग्राफ़िक्स के माध्यम से हमारे दिमाग को विभिन्न दिशाओं में घुमा रहे हैं.

अमीर बनने की ख्वाहिश

इन सबके बीच इस भयानक मुश्किल की घड़ी में भी व्यापारी अपने आदत से बाज नहीं आ रहे. और तो और व्यापारियों वाला रोग समाज के अन्य वर्गों को भी लग रहा है.

यह रोग कोरोना से भी तेज गति से फ़ैल रहा है. प्रत्येक व्यक्ति अपनी काबिलियत के हिसाब से ‘कोरोना की दुकान’ खोल कर चंद मिनटों में ही अमीर बनने की फ़िराक में है.

कालाबाजारी चरम पर है. गली-मोहल्ले से लेकर छोटे-मोटे मॉल भी अनाज से लेकर सब्जी-फल-दवा की कीमत अपने हिसाब से बढ़ा रहे हैं.

इस बाबत लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अपना गुबार निकाल रहे हैं. नेता, सेलिब्रिटी, समाजसेवी, सभी अपनी-अपनी दुकान सजाने में लगे हैं.  

मार्च 24 की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21 दिन तक देश की जनता को घर में क़ैद रहकर कोरोना वायरस (कोविड-19) बीमारी को हराने का फ़ैसला सुनाया, तो लोग हरबरा गए.

सरकार ने जहां एक ओर लॉकडाउन और कर्फ्यू जैसे कड़े कदम उठाकर कोरोना के फैलाव को रोकने का कार्य किया वहीं दूसरी ओर इसने राहत पैकेज के नाम पर अपने दल के छुटभैये नेताओं यानि कार्यकर्ताओं का पूरा ख्याल रखने की भी व्यवस्था की.  

कोरोना वायरस
कोरोना वायरस ना फैले इसलिए लॉकडाउन. फोटो: पार्थो प्रोतिम सरकार

कोरोना वायरस संकट के कारण देश में लगाए गए 21 दिनों के लॉकडाउन को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 26 मार्च को विशेष आर्थिक पैकेज का एलान किया.

1.70 लाख करोड़ रुपये के इस पैकेज का एलान करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि ग़रीबों के लिए खाने का इंतज़ाम किया जाएगा.

सरकारी 1.7 लाख रुपये के राहत पैकेज से गरीबों का भला हो न हो, उन तक ये सभी सुविधाएं पहुंचते-पहुंचते गरीबों की एक बड़ी संख्या दूसरी दुनिया में ज़रूर चली जाएगी.

क्या इस पैकेज के संबंध में गारंटी दी जा सकती है कि इसमें घोषित राशि का कोई भी हिस्सा भ्रष्ट्राचार की बलि नहीं चढ़ेगा?

भारतीय परिप्रेक्ष्य में अक्सर ऐसी घोषणाओं से सप्लायर और व्यापारियों की चांदी हो जाती है और उनकी बांछे खिल उठती हैं.

प्रत्येक राष्ट्रीय आपदा की स्थिति में ऐसा देखा गया है. भारतीय परिस्थति में सरकारी कामकाज की गति सरकार से अच्छा और कौन समझ सकता है.

कायदे से तो सरकार को पहले उन गरीबों और देहारी मजदूरों की सोच लेनी चाहिए थी तब लॉकडाउन की घोषणा करनी थी.

अगर समस्या इतनी गंभीर थी तो दोनों घोषणाएं साथ-साथ होनी चाहिए थी, और व्यवस्थाएं भी प्रशासन को बड़ी तेज गति से लागू करनी चाहिए थी.

क्या सरकार को पता नहीं कि बड़े शहरों में छोटे-छोटे कस्बे से गरीब मजदूर आते हैं, छात्र आते हैं जो सभी ‘हैंड टू माउथ’ जैसी परिस्थिति में जीवन यापन करते हैं.

ऐसे लोग अगर भीड़ में सफ़र करने लगें तो कोरोना और भी जंगल की आग की तरह दूसरे राज्यों में तथा गावों में स्वत: पहुंच जाएगा.

लॉकडाउन में शहर से भागना उनकी मज़बूरी बन जाएगी. शहर में भूखे मरने से अच्छा उनके लिए पैदल या फिर खुद के रिक्शे पर अपने परिवार को लेकर गावों की तरफ चलायमान हो जाना भी मौत से कम बदतर नहीं होगा.

सरकार में दूरदर्शिता की कमी

एक सशक्त सरकार गंभीर परिस्तिथियों में भी ऐसे असंगठित निर्णय कैसे ले सकती है? यह निर्णय ज़रूरी हो सकता था लेकिन निर्णय योजनाबद्ध तरीके से होना चाहिए थी जिसके लिए सरकार के पास पर्याप्त समय था.  

लॉकडाउन के साथ-साथ सभी हमें कोरोना वायरस की सही तरह से टेस्टिंग भी करनी होगी. लेकिन सरकार यह आश्वासन दिलाने में कामयाब नहीं हुई है कि इसके लिए वह कितनी तैयार है.  

लगातार टेस्टिंग और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को बढ़ाने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं, यह उसे बताना ही चाहिए. अन्यथा कोरोना वायरस का खतरा कम होते ही कोरोना राजनीति शुरू होगी, इसमें कोई शक नहीं.     

बहरहाल भारत में कोरोना वायरस संक्रमितों का आंकड़ा 500 के पार पहुंच चुका है. साथ ही इससे मरने वालों की संख्या भी 10 हो चुकी है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी