भूत तो कभी मरते ही नहीं

बचपन में सभी मुझे डराते थे कि नीम के पेड़ पर भूत रहता है और मारे डर के मैं शाम के बाद घर से निकलता ही नहीं था.

अगर किसी दिन खेल कर लौटने में शाम हो जाती थी तो मैं मोहल्ले के किसी बड़े आदमी को अपने साथ जाने की जिद करता था कि वो मुझे घर पहुंचा दे.

नीम के पेड़ के पास आते ही मेरी धड़कन बढ़ने लगती थी और मैं तेजी से दौड़ लगा देता था.

वो बचपन के किस्से भले ही हो मगर अभी जब सुन रहा हूँ कि केदारनाथ के पुननिर्माण कार्य में भूत के डर से मजदूर काम छोड़-छोड़ कर भाग जाते हैं तो काफी अचरज होता है.

सच में भूत होता है कि नहीं ये तो नहीं पता मगर अब यह यकीन हो गया है कि भूत कभी मरते नहीं. वो हर काल में मौजूद रहते हैं.

चाहे वह दानवों का युग हो या फिर दैविक काल, या फिर 21वीं शताब्दी. तरह तरह का भूत हर काल में कहानियों के माध्यम से जिंदा हो होकर लोगों के इर्द गिर्द रहा है.

वह अमेरिका के व्हाइट हाउस में कभी जॉन एफ कैनेडी का भूत बन कर डराता है तो कभी पटना के बेली रोड पर देर रात लोगों के खून का प्यासा हो जाता है.  

भूत-प्रेत-पिशाच भले अलग-अलग नाम हों मगर इनका स्वभाव एक होता है और ये लोगों को डराते हैं और मारते हैं.

देश-काल भले अलग-अलग हो मगर भूत हर जगह एक जैसे ही होते हैं. ये धरती पर पूर्व जन्म का बदला लेने आते हैं और अपने दुश्मनों को मारने आते हैं.

देश-काल भले अलग-अलग हो मगर भूत हर जगह एक जैसे ही होते हैं. ये धरती पर पूर्व जन्म का बदला लेने आते हैं और अपने दुश्मनों को मारने आते हैं.

चीन में पाए जाने वाले भूत जियांगशी हो या हंगरी में इजकैकस, संस्कृति भले दोनों देश की अलग है मगर हर जगह लोगों का रिश्ता भूत के साथ वही है. दुश्मनी और बदले की खूनी कहानी.

भूत को अजर-अमर का वरदान मिला है शायद. देव-दानव के काल से लेकर डिजिटल युग में भी भूत हमें डरा रहा है. आजकल डिप्रेशन का भूत ड्रैकुला की तरह ही हमारा खून अंदर ही अंदर चूस रहा है.

1897 में ब्राम स्ट्राकर का नॉवेल ड्रैकुला काफी पापुलर हुआ था. ड्रैकुला की कहानी हर डायरी में अलग-अलग होती थी. ड्रैकुला का खौफ न सिर्फ पूरे यूरोप और अमेरिका में था बल्कि एशियाई मुल्कों में भी ड्रैकुला लोगों को डराता था.

ड्रैकुला पर कई हिट फिल्में भी बनी. 100 साल पहले हॉरर फिल्मों में भूत जिस तरह का होता था वो आज की फिल्मों में नहीं दिखता है. पहले भूत कॉफिन से, कब्र से निकल कर अपने दुश्मनों का खून चूसने आते थे.

भूत अक्सर प्रेम संबध में धोखा खाने या पूर्व जन्म में सेक्स की चाहत पूरा नहीं होने का रिवेंज लेता था. लेकिन अब भूत नए रुप में आ रहा है. बच्चे भूत बन रहे हैं, कोई पुराना साथी अचानक भूत बनकर आपके सामने आ जाता है.

हाइवे पर भूत आपके बगल में खुद से कार की गेट खोल कर बैठ जा रहा है और अपने गंतव्य पर पहुंच रहा है. कई भूत तो ऐसे हैं जो आपको बिना नुकसान पहुंचाए अपनी दबी इच्छा आपसे पूरी करवा लेते हैं और आपको पता भी नहीं चलता.

लेकिन इन सबसे इतर जिस भूत की बात मैं कर रहा हूँ वह बाहर घूम रहा कोई खून चूसने वाला शैतान नहीं है. क्योंकि भूत भी पहले मानव थे इसलिए भूत तो हमारे अंदर ही बैठा शैतान है जो हमें हमेशा डराते रहता है.

इन दिनों भारत, अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में कई ऐसे नौजवान हैं जिनकी नौकरी चली गई है और वो डिप्रेशन के भूत से लड़ रहे हैं.

कई ऐसे ग्रेजुएट हैं जो इस हद तक साइबर एडिक्ट हो गए हैं कि उन्हें अब अकेलेपन का भूत सता रहा है और कई कपल ऐसे हैं जो खुद के भूत से लड़ रहे हैं.

डिप्रेशन का भूत इन दिनों ड्रैकुला से ज्यादा भयावह और डरावना है जो अंदर ही अंदर हमें चूस कर खोखला बना रहा है.


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