ओनली विमल से कैसे बना अंबानी का एम्पायर

ओनली विमल (Only VImal) – आपने क्या ये स्लोगन सुना है?

आपसे पूछा जाए कि आपने अंबानी परिवार के किस उत्पाद या सर्विसेज का इस्तेमाल किया है, तो आज आपके पास गिनाने को जियो का मोबाइल नेटवर्क या रिलायंस फ्रेश या रिलायंस के पेट्रोल पंप हो सकते हैं.

लेकिन रिलांयस के इन सारे उत्पादों के साथ आपका जुड़ाव तो 2000 के दशक के बाद का है. रिलायंस तो इन सबके आने से पहले ही देश की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी.

Only Vimal Saaree

तो क्या रिलायंस इतने बड़े उपभोक्ता बाजार में लोगों के साथ बिना कोई सीधा जुड़ाव रखे इतनी बड़ी बन गई! जी नहीं.

आबादी के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देश में ऐसा सोचना भी फिजूल है. तो फिर रिलायंस ने भारत के आम उपभोक्ताओं से अपना सीधा रिश्ता कैसे बनाया?

जवाब है- ओनली विमल.

दूरदर्शन पर या बड़े शहरों के बिलबोर्ड्स पर दिखने वाला सबसे बड़ा विज्ञापन होता था रिलायंस के पॉलिएस्टर कपड़े के ब्रांड विमल का- ओनली विमल.

‘ओनली विमल’ जानी-मानी विज्ञापन एजेंसी मुद्रा की परिकल्पना थी और शायद यह पहला ब्रांड था जिसमें क्रिकेट के खिलाड़ियों को ब्रांड एम्बेसडर के रूप में लिया गया था.

सर विवियन रिचर्डस और एलेन बॉर्डर जैसे दिग्गज क्रिकेटर ओनली विमल बोलते नजर आते थे

आज जबकि कपड़े के बड़े-बड़े ब्रांड हैं फिर भी हम विमल की बात क्यों कर रहे हैं?

इसलिए कि यह ब्रांड एक ऐसे दूरदर्शी कारोबारी के दिमाग की उपज था जिसका बेटा आज भारत का सबसे बड़ा और दुनिया के 10 सबसे अमीर शख्स की लिस्ट में शुमार है. नाम है मुकेश अंबानी, पुत्र स्व. धीरजलाल हीरालाल अंबानी जिन्हें धीरूभाई अंबानी के नाम से जाना जाता है.

आज अंबानी जहां हैं वहां पहुंचने की पहली सीढ़ी तैयार करने वाला ब्रांड था विमल. पॉलिएस्टर और कपड़े का व्यापार धीरुभाई के लिए कितना मायने रखता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि धीरूभाई के इस संघर्ष और सफलता पर एक सुपरहिट फिल्म ‘गुरु’ बन चुकी है.

Dhirubhai-Ambani-reliance-founder-chairman-vimal

धीरुभाई अंबानी यमन में नौकरी करते थे लेकिन वहां आजादी का संघर्ष तेज हुआ तो विदेशी लोगों के लिए दिक्कतें शुरू हो गईं. धीरूभाई भारत लौटे एक व्यापारी बनने के सपने के साथ. उन्होंने भारत के व्यापार परिदृश्य पर बारीकी से रिसर्च किया तो पाया कि यहां कपड़े के कारोबार में अच्छा भविष्य है.

अंबानी की यह सोच वाकई दूरदर्शी साबित हुई. भारत में पॉलिएस्टर के कपड़े की बड़ी मांग थी क्योंकि इतनी बड़ी आबादी की जरूरत के कपड़े सिर्फ कपास से पूरे नहीं हो सकते थे. इसलिए मुंबई के कपड़ा बाज़ार में चमक के नाम से जाने जाने वाले पॉलिएस्टर में धीरुभाई को अपनी किस्मत चमकाने की क्षमता दिखी और विमल की नींव पड़ी.

विमल नाम क्यों रखा गया

धीरूभाई जब नौकरी के लिए यमन गए तो वहां उनके बड़े भाई रमणीकलाल अंबानी पहले से ही कुछ काम-धंधा करते थे. उन्होंने धीरुभाई का पूरा ख्याल रखा जिसकी वजह से धीरूभाई नौकरी के दौरान भी बहुत से रिस्क ले पाए थे.

मसलन, जिस कंपनी के लिए वह काम करते थे वहां 25 पैसे की चाय आती थी लेकिन धीरूभाई पास के एक रेस्त्रां में एक रूपए वाली चाय पीने सिर्फ इसलिए जाया करते थे क्योंकि व्यापारी आते थे और उनकी बातें सुनकर वह कारोबार के टिप्स लेते थे. तब धीरूभाई की तनख्वाह मात्र 25 रुपए थी पर बड़े भाई का साथ होने के कारण वह ऐसा कर पाते थे.

1996 में अहमदाबाद के नरौदा में रमणीकभाई के साथ मिलकर धीरुभाई ने रिलायंस इंडस्ट्री का पहला कपड़ा ब्रांड शुरू किया तो उसका नाम रमणीकभाई के बेटे विमल के नाम पर रखा- विमल सूटिंग्स और शर्टिंग्स.

धीरुभाई ही ब्रांड बन गए

इधर धीरुभाई अपने विमल ब्रांड को बाजार में उतारने की तैयारियों में जुटे थे तो उधर प्रतिस्पर्धी कंपनियां उन्हें झटका देने को कमर कस रही थीं.

तब बाजार का लीडर हुआ करती थी- नुस्ली वाडिया की बॉम्बे डाइंग. बॉम्बे डाइंग के पूरे देश में बड़े-बड़े स्थापित डीलर्स और स्टोर थे.

वाडिया ने अन्य टेक्सटाइल कंपनियों के साथ मिलकर सभी रिटेलर्स को खबर भिजवा दी कि अगर वे विमल का स्टॉक रखना शुरू करते हैं तो उन्हें बॉम्बे डाइंग और दूसरी कंपनियों का माल नहीं मिलेगा.

यह अंबानी के लिए बड़ा झटका था क्योंकि अगर माल बिकता नहीं है तो सारा सपना चूर हो जाएगा क्योंकि उन्होंने सारी पूंजी इस धंधे में लगा दी थी.

धीरूभाई पूरे देश में गए और कपड़े के वितरकों को भरोसा दिलाया कि वह जो कपड़ा बाजार में ला रहे हैं वह अब तक का सबसे शानदार होगा. इसलिए दूसरी कंपनियों की धौंस से डरे नहीं, उनसे माल ख़रीदें.

उन्होंने रिटेलर्स से वादा किया था कि अगर धंधे में उनका नुकसान हुआ तो वह उसकी भरपाई करेंगे और अगर मुनाफ़ा हुआ तो विक्रेता से उस मुनाफे से कुछ भी नहीं मांगेगे.

यह एक ऐसा भरोसा था जो धीरुभाई ही दे सकते थे. यह एक ऐसा कारोबारी जोखिम था जो आने वाले समय में भारत का सबसे बड़ा उद्योगपति ही उठा सकता था.

Only Vimal ads featuring cricketers

ब्रांडिंग की इस तकनीक के बाद धीरुबाई खुद एक ब्रांड बन गए. एक ऐसा ब्रांड जिस पर भारत के छोटे-छोटे कारोबारी बहुत भरोसा करने लगे थे, उसके भरोसे पर अपना दांव खेलने लगे थे.

धीरूभाई की ये बात थोक व्यापारियों को भा गई और उन्होंने जमकर उनसे कपड़ा ख़रीदा. जैसा धीरुभाई का दावा था उनका पॉलिएस्टर उस पर खरा उतरा. विमल के कपड़े की डिमांड मार्केट में तेज़ी से बढ़ने लगी.

एक मौका ऐसा भी आया, जब एक ही दिन में देशभर में विमल के 100 शोरूम्स का उद्घाटन किया गया.

पॉलिएस्टर की बादशाहत

1975 में, विश्व बैंक की एक तकनीकी टीम ने प्रमाणित किया कि रिलायंस का कपड़ा संयंत्र विकसित देशों के कपड़ा संयत्रों के मानकों से भी उत्कृष्ट था. इस प्रमाण के बाद रिलायंस के लिए बहुत सी चीजें सरल हो गईं.

बाजार में विमल की धाक जम चुकी थी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिल चुकी थी तो 1977 में, धीरुभाई ने रिलायंस को पब्लिक कंपनी बनाने की घोषणा कर दी. उसके शेयर जारी किए गए.

विदेशों से बड़े ऑर्डर मिलने लगे. धीरुभाई लाइसेंस राज के दौर में भारत की नौकरशाही और राजनीति की नब्ज पकड़ चुके थे. 1980 के दशक में धीरूभाई अंबानी ने पॉलिस्टर फिलामेंट यार्न निर्माण का लाइसेंस सरकार द्वारा ले लिया और उसके बाद धीरूभाई की सफलता का सूरज चढ़ता गया और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

रिलायंस विश्वकप ने बनाया घर-घर का नाम

1987 में पहली बार क्रिकेट विश्वकप मुकाबला इंग्लैंड से बाहर हुआ, जिसकी मेजबानी भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से की. आयोजन का प्रायोजक रिलायंस इंडस्ट्रीज बनी और उसे रिलायंस वर्ल्ड कप नाम दिया गया. इसके बाद रिलायंस तो देश-दुनिया का एक जाना-पहचान नाम था.

कारोबारी रिश्ते बनाने के अपने हुनर का भरपूर लाभ लेते हुए धीरूभाई ने पांव फैलाने शुरू किए. रिलायंस ने पेट्रोकेमिकल्स में कदम रखा और उसके बाद दूरसंचार, आईटी, ऊर्जा, खुदरा, बुनियादी ढांचा सेवाओं, पूंजी बाजार और लॉजिस्टिक जैसे क्षेत्रों में रिलायंस की पैठ बनती गई.

Only Vimal textiles by Reliance

2002 में धीरुभाई की मौत से पहले रिलायंस देश की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी.

90 के दशक में धीरूभाई अपनी कंपनी के शेयरहोल्डर्स को विमल का डिस्काउंट कूपन भी देते थे जो डिविडेंड के चेक के साथ जाता था. विमल के कुछ खास शोरूम से इस कूपन का इस्तेमाल किया जा सकता था.

विरासत बन गई बोझ

जिस विमल ने एक मामूली नौकरीपेशा धीरुभाई अंबानी को भारत का सबसे बड़ा कारोबारी और रिलायंस को रिलायंस बनाया उसे, उस विमल ब्रांड को मुकेश अंबानी ने 2012 में बिक्री के लिए रख दिया.

इसके लिए कंसल्टेंट भी काम पर लगाए गए लेकिन विमल बिक न सका. कहा जाता है कि इसकी वह कीमत नहीं मिली जिसकी उम्मीद मुकेश अंबानी को थी.

ऐसा नहीं है कि विमल ब्रांड उस समय रिलायंस के लिए सफेद हाथी बन चुका था. विमल ब्रांड कंपनी के राजस्व में 20 से 22 अरब रुपए के बीच का योगदान करता था लेकिन यह कंपनी के कुल कारोबार का मात्र 1 फीसदी ही था.

हालांकि बाद में कंपनी ने पूरा हिस्सा बेचने की बजाय सिर्फ 49 फीसदी हिस्सेदारी चीनी कंपनी रुयि ग्रुप को बेच दी.

लगभग आठ साल तक बाजार में प्रचार से खुद को अलग रखने के बाद विमल फिर से बाजार में अपनी पुरानी हैसियत पाने की कोशिश कर रहा है. ब्रांडिंग के नए प्रयोग हो रहे हैं.

रिलायंस के अपने जियो मार्ट से उम्मीद की जा सकती है कि इसकी पुरानी रौनक लौट आए क्योंकि भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी के लिए भरोसे का नाम है- ओनली विमल.

कह सकते हैं – कुछ ब्रांड्स को बने रहने की जरूरत है क्योंकि वे इतिहास का प्रतिनिधित्व करते हैं.


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