मेक इन इंडिया के एम्बेसडर न.1

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क्या आप जानते हैं मेड इन इंडिया सबसे पहले किस देसी प्रोडक्ट पर लिखा जाना शुरू हुआ? यह महत्वपूर्ण है जब पूरे भारत में आज मेक इन इंडिया (Make in India) का नारा दिया जा रहा है, और लोग आत्मनिर्भर भारत की बातें कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने राष्ट्र संबोधनों में लोकल के लिए वोकल बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. भारत बोलेगा की यह स्टोरी अंग्रेजों से रार मोल लेने वाले उस भारतीय की है जिसने भारतीय उत्पाद पर मेड इन इंडिया बड़ी शान से लिखा.


वह पहला मौका था जब ब्रांडिंग की दुनिया में एक ज़बरदस्त प्रयोग किया गया था, रिस्क लिया गया था


यह ब्रांडिंग की ऐसी भारतीय कहानी है जो ब्रांडिंग तकनीक की सबसे पहली और सबसे सफल कहानी है. आपने ऐप्पल कंपनी के फोन के नए मॉडल के लांच पर, स्टोर के आगे लंबी-लंबी लाइनों की कहानियां खूब पढ़ी होंगी. यह कहानी है भारत के एक कारोबारी की जिसने सौ साल पहले एक साबुन के लिए बिना खर्चे के ही बड़ा अभियान छेड़ दिया. एक बड़े प्रचार अभियान छेड़ कर उसने अपने साबुन के लिए गज़ब की उत्सुकता पैदा कर दी. वैसे अभियान की कल्पना इस सूचना क्रांति के दौर में अरबों रुपये के बजट से भी नहीं खड़ी की जा सकती.

गोदरेज नंबर 1 की कहानी

जानें एक ऐसे साबुन ब्रांड के बारे में जो सौ साल बाद भी, गलाकाट मुकाबले वाले भारतीय साबुन बाजार में तीसरे पायदान पर खड़ा है, वह भी नहीं के बराबर प्रचार के बावजूद.

ताले और अलमारी बनाने में अपना सिक्का जमा चुके युवा कारोबारी आर्देशीर गोदरेज हमेशा से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के प्रशंसक थे.

जब तिलक ने उनसे कहा कि क्रांतिकारी लोग भारत की अस्मिता के लिए अंग्रेजों से लड़ रहे हैं, लेकिन यह लड़ाई व्यापारियों को भी अपने स्तर पर लड़नी होगी.


आर्देशीर गोदरेज ने हम भारतीयों की मानसिक दासता पर बड़ी चतुराई से हमला किया. आर्देशीर गोदरेज ने ग़ज़ब अंदाज़ में स्वदेशी अपनाने के क्षेत्र में अनोखी ब्रांडिंग की. आर्देशीर गोदरेज ने विदेशी माल की श्रेष्ठता के संबंध में बैठी हुई धारणा के साथ प्रतिस्पर्धा की.


फिर क्या था, स्वदेसी के इस मंत्र के साथ गोदरेज ने साबुन व्यापार के क्षेत्र में कदम रखा.

अंग्रेजी कंपनियां उस समय जो नहाने का साबुन बनाती थीं उसमें पशु चर्बी का इस्तेमाल होता था. भारतीयों को इस चर्बी से परेशानी थी.

गोदरेज ने चर्बी का विकल्प निकाला वनस्पति तेल, और इसी के साथ भारत को पहला ऐसा साबुन मिल गया जो भारतीय जनमानस की रूचि के अनुरूप था. साथ ही, उसकी स्वदेशी (स्वदेसी) पहचान भी थी.

गोदरेज नंबर 1

आर्देशीर गोदरेज ने ताले के कारोबार से अपनी सशक्त पहचान और साख बनाई थी, और उनका देश प्रेम सबसे पहले साबुन की पुरजोर ब्रांडिंग में दिखा. बाजार में टर्किश बाथ सोप उतारा; नाम दिया- चाबी, हालांकि साबुन पर इसकी स्पेलिंग Chavi रही जो आर्देशीर गोदरेज के पारसी जुबान के कारण हो सकती है.

1918 में आर्देशीर गोदरेज ने बिना चर्बी वाला साबुन (Turkish Bath Soap) लांच किया. दरअसल गोदरेज तो ट्रायल लेना चाहते थे कि बिना चर्बी वाले साबुन को लेकर लोग क्या सोचते हैं, कैसी छवि बनती है.

बिलकुल वैसा ही प्रयोग जैसे फिल्म आने से पहले उसका टीज़र व ट्रेलर रिलीज करके किया जाता है.

साल भर बाद उन्होंने अपना दूसरा साबुन उतारा – नाम था गोदरेज नंबर 2.

आप सोच रहे होंगे कि लिखने में शायद भूल हुई – गोदरेज ने टर्किश बाथ सोप के बाद गोदरेज नंबर 2 लांच किया तो उससे पहले गोदरेज नंबर वन भी तो मार्केट में लाया ही होगा.

यही तो ट्विस्ट है. गोदरेज नंबर 2 के दो साल बाद, 1922 में, आर्देशीर गोदरेज ने उतारा गोदरेज नंबर 1.

यह आज भी भारत का तीसरा सबसे ज्यादा बिकने वाला साबुन है.

गोदरेज नंबर 2 के बाद गोदरेज नंबर वन उतारने के पीछे उनका तर्क था कि हम नंबर 2 साबुन की क्वालिटी इतनी अच्छी रखेंगे कि जब नंबर वन लांच होगा तो लोगों में इस बात का कौतूहल रहेगा कि जब नंबर 2 इतना बढ़िया है तो नंबर वन तो बेमिसाल होगा, और इस तरह हम महंगा साबुन भी बेच ले जाएंगे.

ब्रांडिंग की यह अनूठी ट्रिक जबरदस्त सफल हुई, ऐसी सफल कि आर्देशीर गोदरेज ने ताला और अलमारी बनाने का अपना बेहद सफल कारोबार भाई पिरोजशा गोदरेज को सौंपा और खुद पूरी तरह साबुन का काम देखने लगे.


भारत में लोहे की अलमारी (steel almirah) को ज़्यादातर लोग गोदरेज  (Godrej) की अलमारी ही कहते हैं, ऐसा प्रभाव छोड़ा है गोदरेज प्रोडक्ट्स ने बाज़ार पर 


1918 में आर्दिशर गोदरेज ने बिना चर्बी वाला साबुन लांच किया

साबुन कंपनियां फिल्मी सितारों को आज अपने ब्रांड एम्बेसडर के रूप में उतारती हैं. वहीं आर्देशीर ने रबीन्द्र नाथ टैगोर, सी राजगोपालाचारी और एनी बेसेंट को अपने साबुन का ब्रांड एम्बेसडर बनाया.

आर्देशीर गोदरेज भारत में ब्रांडिंग के पुरोधा तो रहे ही हैं, उन्हें मेक इन इंडिया का पहला एम्बेसडर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

मेड इन इंडिया के जनक

गोदरेज एक ऐसे कारोबारी रहे हैं जिन्होंने अपने पहले कारोबार में ही मेक इन इंडिया ब्रांड के लिए अंग्रेजों से रार मोल ली थी.

उन्होंने सबसे पहला कारोबार सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले ब्लेड बनाने से शुरू किया था, वह भी 3000 रुपये उधार लेकर.

वह एक ब्रिटिश कंपनी के लिए ब्लेड बनाने लगे. उत्पाद अच्छे थे और खूब बिक रहे थे.

गोदरेज ने कंपनी से कहा कि वह अपने प्रोडक्ट्स पर मेड इन इंडिया लिखेंगे.

ब्रिटिश कंपनी ने यह कहते हुए उनकी मांग ठुकरा दी कि मेड इन इंडिया लिखे होने से उत्पादों की विश्वसनीयता कम हो जाएगी और आसानी से नहीं बिकेंगे.

उन्होंने अपने देश के नाम के साथ भेदभाव को सहने से बेहतर समझा धंधा बंद कर देना.

आर्देशीर गोदरेज की कहानी हर उस व्यक्ति को रोमांचित करती है जो लोकल के लिए वोकल होना चाहता है.


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