इमरान और पाक !

भारत और पाकिस्तान दोनों ही युद्ध नहीं चाहते, यह सत्य है. परंतु दोनों ही देश आपसी संवाद नहीं होने से घुट रहे हैं, यह भी सत्य है. तो क्या दोनों एक-दूसरे को यूं ही हानि पहुंचाते रहेंगे? क्या भारत-पाकिस्तान के बीच कभी संवाद होगा?

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की टिपण्णी कि नरेन्द्र मोदी अगर चुनाव जीत जाते हैं तो भारत-पाकिस्तान शांति वार्ता आरंभ हो सकती है, से नई चर्चा शुरू हो गई है.

इमरान खान ने यह भी कहा कि वार्ता से दोनों देशों के बीच की तल्खी समाप्त की जा सकती है, तथा कश्मीर मुद्दे के हल होने की संभावनाएं अधिक होंगी.

इमरान खान

ऐसे में विपक्ष का उबलना लाजिमी था क्योंकि देश में लोक सभा का चुनाव चरम पर है. अतः इमरान खान के बयान को भारत की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप बताया गया.

समझदारी तो यह कहती है कि पाकिस्तान पहले आंतकवाद की जड़ों को समाप्त करे तो वार्ता संभव हो. साल-दर-साल गहराती जा रही समस्या को पाकिस्तान की एक नई सरकार आसानी से समाप्त तो कर नहीं सकती.

गौर करने की बात यह है कि पाकिस्तान दरअसल भारत की भौगोलिक मज़बूरी है. भारत सरकार इसे कभी बदल नहीं सकती लेकिन कूटनीति में ऐसा कहा जाता है कि प्रयास से सब कुछ संभव हो सकता है.

अत: सवांद समय की जरुरत तो है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. साथ ही यह भी समझना होगा कि इमरान खान की सरकार एक ‘नए पाकिस्तान’ बनाने के नारे के साथ सत्ता में आई है.

यहां देश में हम सभी आज ‘नया भारत’ बनाने का संकल्प ले रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस सभी नव भारत के निर्माण की बात कर रहे हैं.

ऐसे में जहां पूर्व में भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के साथ शांति कायम करने के प्रयास किए गए तो आज क्यों नहीं इमरान खान सरकार को भी एक अवसर दिया जाए.

हो सकता है इमरान खान अपनी राजनीतिक मज़बूरी के कारण कुछ वादा करने में सक्षम नहीं दिख रहे लेकिन उनका मानस अवश्य है कि आतंकवादियों को पाकिस्तान की सरजमी से ख़त्म कर दिया जाए.

इमरान खान ने एक साक्षात्कार में बताया है कि पाकिस्तान अपनी धरती पर चल रहे आतंकी अड्डों को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद सहित अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ काम कर रहा है.

यह भारत के लिए बड़ी विजय है कि पहली बार किसी वजीरे आजम ने प्रत्यक्ष रूप में स्वीकार किया है कि पाकिस्तान में आतंकी संगठन कार्यरत हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है.

अगर इमरान अपने नेक इरादे से कुछ नया कर पाने में सक्षम हो जाते हैं तो पूरे दक्षिण एशिया के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम होगा, और फिर उनके लिए सेना के ऊपर नियंत्रण करना आसान हो जाएगा. इससे पाकिस्तानी लोकतंत्र भी मजबूत होगा.

संवाद्विहीन रिश्ते से भारत को कुछ हासिल नहीं हुआ है और ना होगा. कश्मीर में भी ज्यादा ही उथल-पुथल मची है और भारतीय सेना के जावन ‘रुटीन’ रूप से शहीद हो रहे हैं.

वार्ता कायम रहने से पाकिस्तान के ऊपर एक नैतिक दबाव तो बना रहेगा. इस बाबत पाकिस्तान के साथ वार्ता भारतीय सैन्य बलों के लिए भी लाभकारी है, और इससे उनकी सुरक्षा अधिक पुख्ता होगी.

अगर दोनों देशों के बीच वार्ता जारी रहे तो पाकिस्तान-चीन संबंधों पर भी कड़ी नज़र रखी जा सकती है और भारत ‘चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर’ पर भी पाकिस्तान को नियंत्रित कर सकेगा. वर्ना संवाद-शुन्यता का बड़ा फायदा चीन को मिलता रहेगा जो भारत के लिए ज्यादा नुकसानदेह है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी