जर्मन, फ्रेंच छोड़ो चीनी सीखो

चीन एशिया महाद्वीप में ही नहीं बल्कि विश्व में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहा है. चीन विश्व शक्ति बनने की दौड़ में अब ज्यादा पीछे नहीं है. और हो भी क्यों न जब चीन विश्व शक्ति बनने के लिए साम दाम दंड भेद नीति और अपनी मानसिक योग्यता का प्रयोग कर प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने की कवायद में है. वो समय अब दूर नहीं जब चीन अमेरिका, रूस और अन्य विश्व के शक्तिशाली देशों को पीछे छोड़ देगा.

चीन शिक्षा के स्तर पर, मानव विकास के स्तर पर, सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक तीनों स्तरों पर अपने आप को मजबूत कर रहा है. अगर भारत और चीन के संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रहती है तो भारत के विकास की संभावनाएं और प्रबल होगी अब इसमें कोई संदेह नहीं है. चुकि भारत और चीन एशिया महाद्वीप में सबसे शक्तिशाली देश हैं इसलिए भारत ने हमेशा कोशिश की है कि भारत और चीन के सम्बन्ध हमेशा मधुर बने रहे. इसलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा भी था कि हिंद-चीनी भाई-भाई.

चीन विश्व में जनसंख्या दृष्टि से सबसे आगे है तो वह सबसे पहले मानव विकास पर जोर दे रहा है और इसके लिए वह रोज़गार में बढ़ोतरी कर रहा है. रोज़गार में वृद्धि के लिए वह सिर्फ चीन में नहीं बल्कि बाहरी अन्य देशों में भी पैर फैला रहा है. हालांकि यह भारत की नीति भी है और इसमें वृद्धि के लिए वह चीन से सबक ले सकता है. भारत को एशिया से बाहर तो विकास करना ही चाहिए लेकिन उससे पहले वह अपने घर यानि एशिया महाद्वीप में नजरें दौड़ाए जैसा चीन कर रहा है. अगर चीन को टक्कर देनी है तो जनाब अब जर्मन फ्रेंच भाषाओँ को छोड़ चीनी भाषा सीखिए.

चीनी भाषा सभी विदेशी भाषाओँ में थोड़ी मुश्किल है लेकिन अगर भारत असल में समावेशी विकास करना चाहता है जिसके लिए रोज़गार होना बहुत जरूरी है उसकी पूर्ति इससे हो सकती है. आधुनिक समय में रिटेल में रोज़गार की सम्भावना ज्यादा है और यह तो आप जानते ही होंगे कि आज पूरे विश्व में प्रत्येक घर में बेडरूम से लेकर रसोई तक चीन ही चीन होता है क्योंकि चीन अब विश्व के आर्थिक रूप और लोगों की मानसिकता को भांप चुका है और अपने परों को फैला रहा है जिसके लिए चीनी भाषा भारतीयों को मददगार साबित हो सकती है.

आर्थिक मंदी के दौर से पूरा विश्व गुजर रहा है लेकिन चीन इन हालातों में भी अपने को मजबूत बना कर रखे हुए है. विश्व आर्थिक संस्था ‘आई. एम. एफ.’ ने स्वीकारा है कि चीन के पुनरुत्थान का क्षेत्रीय और विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है. चीन ने 2 खरब के विदेशी मुद्रा आरक्षण के साथ अमेरिकी वित्तीय संकट का पूरा फायदा उठाया और अपने आप के लिए विश्व समीकरण में अपना स्थान बनाया है. पाश्चात्य देश अब चीन को अपनी ढ़लती हुई अर्थव्यवस्था को रोकने वाले रूप में देख रहें है. यूरोप और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के जो हालात हैं वो आप भली प्रकार जानते है और जिसे यहां बयां करने की आवश्यकता नहीं है.

चीन के विकास ने उसके विदेशी सम्बन्धों को भी सुधारा है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण भारत ही है. भारत के साथ चीन का युद्ध, जॉर्ज़ फर्नाडिस का कथन कि ‘चीन भारत का दुश्मन नम्बर 1 है’ और चीन में भारत के पूर्व दूत सलमान हैदर की टिप्पणी कि ‘हम एक निरथर्क मार्ग में फंस गये है’ – लेकिन आज के समय में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि भारत और चीन बहुत अच्छे मित्र हैं और दोनों देशों के सम्बन्ध प्रगति के मार्ग पर है. ऎसी परिस्थितयां इसलिए बदल रही है क्योंकि भारत को ज्ञात हो रहा है कि चीन तेजी से विकास कर रहा है.

हालांकि वास्तविकता को भारत नहीं समझ पा रहा है जो यह है कि भारत ने अपने पड़ोसी देशों के लिए दरवाज़े बंद कर दिए है और इन देशों में अपनी सक्रियता को खत्म कर रहा है और इसी का फायदा चीन उठा रहा है. पाकिस्तान, नेपाल, म्यंमार, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश में चीन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. वहां पर विकास के नाम पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है. जिससे दक्षिण एशिया में भारत का प्रथम स्थान डगमगा रहा है. ख़ैर यह तो चीन की नीति का हिस्सा है जिसे भारत भूल रहा है लेकिन आने वाले समय में चीन कैसे तरक्की कर रहा है और इसमें विश्व के क्या बेहतर अवसर है वह देखना चाहिए.

चीन अपने विकास की रफ्तार बढ़ाता जा रहा है. भारत में बुलेट ट्रेन की बात चल ही रही थी इतने में चीन ने बुलेट ट्रेन की शुरुआत कर दी. विश्व में सबसे लम्बा समुद्री पुल चीन ने बनाया. सामरिक शक्ति बनने के लिए चीन पाकिस्तान के साथ के-8 हवाई जहाज और जे. एफ.-17 लड़ाकू हवाई जहाज़ बना रहा है. म्यंमार और नेपाल में ढांचागत विकास कर रहा है जिससे तिब्बत और बंगाल की खाड़ी में अपना अधिपत्य जमा सके. नेपाल में रेल लाइन बिछाने की परियोजना और भारत की ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल बनाने  की बात इत्यादि. चीन के इन कदमों को भारत भी नहीं रोक पा रहा है और सम्पूर्ण विश्व भी इसका विरोध नहीं कर पा रहा है. यहां तक कि चीन के खिलाफ एंटी-डम्पिंग का मामला जो WTO में कई वर्षों से पड़ा हुआ है उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी. आसियान देशों पर चीन बहुत पहले ही अपना प्रभुत्व बना चुका है.

भारत ने चीन के साथ के लिए अपने सभी पर्यटन शिक्षण संस्थाओं में चीनी भाषा को अनिवार्य कर दिया. विश्वविद्यालयों में भी चीनी भाषा को पढ़ाने की सुविधा दी जा रही है. भारत की नीति दिन-प्रतिदिन चीन के लिए बदलती जा रही है यानि रिश्तों में साकारत्मक रूप आ रहा है. चूंकि हर विदेश नीति का यह मूल मंत्र होता है “लाभ और शान्ति” जो भविष्य में चीन के साथ होने की सम्भावना है क्योंकि चीन विश्व शक्ति बनने की दरकार रखता है. इसका पता हमे इससे भी चलता है कि वहां पर सभी राजनेता उच्च शिक्षा ग्रहण किये हुए हैं और देश के लिए नये नये प्रयोग कर रहें हैं. इससे यह साबित होता है कि चीन का भविष्य सुरक्षित हाथों में है जो भारत के लिए लाभदायक साबित होगा.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी