कुपोषण-मुक्त भारत कब?

कुपोषण से जुड़ी इन बातों पर जरा गौर करें – ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2016 की रैंकिंग के मुताबिक भारत में स्थिति काफ़ी गंभीर है; भूख का जहां तक सवाल है तो आंकड़े बताते हैं कि एशियाई देशों में सबसे ज़्यादा बुरी हालत पाकिस्तान और भारत की है; भारत में 39 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं जबकि आबादी का 15.2 प्रतिशत हिस्सा कुपोषण का शिकार है; समाजिक सेवा के क्षेत्र में जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जन-कल्याण के कार्य, सुरक्षा, बिजली, सड़क और शुद्ध पेय जल की व्यवस्था के साथ-साथ रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरतें पूरी करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए; स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील सेवाओं के क्षेत्र में सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि वह इसे व्यापार बनने से रोके.

फिलहाल ऐसा संदेश जा रहा है कि राजनेताओं में सेवा-भाव का संचार नहीं के बराबर है और वे स्व-हित की भावना से बंधे हुए हैं. उनमें देशप्रेम कम दिखावे का देश प्रेम ज्यादा दिखता है. अगर उनमें सचमुच का देशप्रेम होता तो भूखमरी कब की मिट गई होती. बच्चे तो देश और समाज का भविष्य हैं, उनके लिए उचित शिक्षा, पोषित भोजन, उचित स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा देना कितनी बड़ी चुनती है? यह शर्म की बात है कि वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) 2016 के अनुसार भूखमरी में भारत 118 देशों की सूची में 97 वें पायदान पर है. शर्मनाक तथ्य यह है कि नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे राष्ट्र इस समस्या के निदान में भारत के मुकाबले बेहतर स्थति में हैं.

मुंबई के उच्च अदालत में दायर एक केस में जिरह किया गया कि सिर्फ 2015 में लगभग 17,000 बच्चे कुपोषण के कारण अकेले महाराष्ट्र में मृत्यु को प्राप्त हुए. जबकि महाराष्ट्र देश का सबसे ज्यादा आर्थिक रूप से संपन्न राज्य और मुंबई की आर्थिक राजधानी माना जाता है. देश भर में कुपोषण के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 48% बच्चे आज भी अस्वस्थ और लंबाई की दृष्टि से अल्प-विकसित है. अतः राजनेताओं से इस दिशा में संवेदनशील होकर कार्य करने की अपेक्षा है. हर नेता को भारत को कुपोषण-मुक्त बनाने का संकल्प लेना ही चाहिए.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी