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कोरोना के मद्देनजर कांवड़ यात्रा पर रोक

Kavad Kawad Kanwar Yatra Mela cancelled

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और राजधानी दिल्ली में कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra) पर रोक (cancel) लगा दी गई है. कोरोना (Corona) को देखते हुए राज्य सरकारों द्वारा यह फैसला लिया गया है. 25 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ (कांवड) यात्रा से सम्बंधित कोई भी जश्न, जुलूस या गैदरिंग दिल्ली में आयोजित करने की अनुमति नहीं है. उत्तराखंड और यूपी सरकार ने भी कांवड़ यात्रा पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है.

इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लगातार चेतावनी दी जा रही है. कहा जा रहा है कि छोटी लापरवाही भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है. इसी मद्देनज़र कोशिश की जा रही है कि जो गलतियां – खासकर कुम्भ – दूसरी लहर के दौरान हुई थीं, उन्हें अब ना दोहराया जाए. इसी कड़ी में अब इन तीन राज्यों ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है.

हाल ही में कांवड़ यात्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी.

कोरोना संक्रमण की वजह से मथुरा के गोवर्धन में होने वाला मुड़िया पूनो यानी गुरु पूर्णिमा मेला भी निरस्त कर दिया गया है. यूपी (UP) सरकार चाहती थी कि इस बार कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध न लगे, बल्कि कोविड प्रोटोकॉल के तहत यात्रा निकाली जाए. मगर उत्तराखंड सरकार ने बाहर से आने वाले कांवड़ियों के राज्य में प्रवेश पर पहले ही रोक लगा दी थी.

25 जुलाई से 6 अगस्त तक चलने वाली इस कांवर यात्रा में लगभग साढ़े तीन करोड़ श्रद्धालु भाग लेने वाले थे. दिल्ली से सटे प्रदेशों के कई शहरों में भी ऐसी यात्राएं संभावित थीं, जिनमें कई और लाख लोग शामिल हो सकते थे. बिहार में भी सुल्तानगंज से गंगाजल उठाकर कांवरिये लगभग 125 किलोमीटर की दूरी तय करके देवघर (बैधनाथ धाम) पहुंचते हैं ताकि वे शिवलिंग पर जल अर्पित कर सकें.

ऐसी ही यात्रा उत्तराखंड में आयोजित होती है जहां हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री से गंगाजल उठाने की परंपरा रही है. उत्तर प्रदेश में प्रयागराज, अयोध्या और वाराणसी से गंगाजल उठाने की परंपरा है.

देश भर में व्याप्त द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों पर जल अर्पित करने की आस्था हिन्दू-धर्म में खासकर सर्वोच्च स्थान रखती है. सावन के महीने में कांवर पर जल उठाकर लम्बी दूरी की यात्रा कर भगवान शिव पर जल अर्पण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह हिन्दू धर्म की अटूट आस्था से जुड़ा धार्मिक तीर्थ है.

पिछले वर्ष कोरोना महामारी के मद्देनज़र इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया था. प्रश्न यह उठता है कि जब विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र कोरोना महामारी के तीसरे आक्रमण से जूझ रहे हैं तो राज्य सरकारों ने पहले ही क्यों नहीं कांवर यात्रा पर रोक लगाई.

14 जुलाई 2021 को भारत के सर्वोच्च नयायालय ने समाचार पत्रों में छपे समाचार पर स्व-प्रेरित (suo motu) संज्ञान लिया. अदालत ने संज्ञान लेते हुए और ‘जीवन के संवैधानिक मूल अधिकार’ का हवाला देते हुए खासकर उत्तर प्रदेश सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा था.

साथ ही अदालत ने फरमान दिया था कि सरकार शिव-मंदिर के प्रांगण में ही श्रधालुओं के लिए गंगाजल की व्यवस्था करे और उन्हें कोविड महामारी-जनित प्रोटोकॉल का पूर्णतः पालन करते हुए जल अर्पण करने की सुविधा प्रदान करे. विशेष तौर पर सामाजिक दूरी और फेस-मास्क जैसे प्रोटोकाल का पालन कड़ाई से किया जाए.

धार्मिक आस्था व्यक्तिगत है और होनी भी चाहिए. ईश्वर के प्रति श्रद्धा बिना यात्रा किए भी व्यक्त की जा सकती है. वर्तमान परिस्थिति में जनता का तो कर्तव्य बनता है कि वो स्वयं ही ऐसी यात्राओं को कुछ समय के लिए त्याग दे, और अपने एवं अपने सगे संबंधियों और साथ में अन्य सभी लोगों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करें. मानव जीवन एवं प्रक्रति की रक्षा सभी धर्मों के मूल में है.

व्यक्ति स्वार्थवश कांवर यात्रा कर भी ले तो वो मानव जीवन को असुरक्षित कर ईश्वर के समक्ष अपराधी ही साबित होगा. सरकारों का निर्णय तो राजनीतिक सुविधा से प्रेरित होता है. उनके लिए धर्म और आस्था भी राजनीतिक संतुलन और वोट-बैंक का विषय है. आम जनता कोरोना महामारी के पिछले दो वेव को कैसे भूल सकती है कि उनको किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा!


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