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आशुतोष राणा को सलाम

बॉलीवुड में कैसा खेल चलता है इसका एक उदाहरण इससे समझा जा सकता है कि वहां ज्यादा टैलेंट की वजह से आपकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं. सवाल यह है कि क्या टैलेंट छिपा रह सकता है, और हां तो कब तक?

हाल ही में मैंने करीब दो दशक पुरानी दो फिल्में देखी. उसके बाद बॉलीवुड में होने वाले अन्याय के प्रति मेरा गुस्सा और बढ़ गया. गुस्से की असली वजह है फिल्म इंडस्ट्री के अंदर चलने वाली लॉबिंग और खुराफात.

बड़ी वजह ये है कि बॉलीवुड (Bollywood) हमेशा टैलेंट को तरजीह नहीं देता. यहां और फैक्टर भी चलते हैं. संघर्ष और दुश्मन फिल्में देखकर मुझे लगा कि ये अद्भुत फिल्में दर्शकों को देखनी चाहिए.

संघर्ष और दुश्मन देखने के बाद हर कोई यही कहेगा, वाह क्या कमाल की अदाकारी है. ऐसी कि इन फिल्मों को देखने के बाद कम से कम 24 से 48 घंटे तक आपको सिहरन और डर महसूस होगा.

1998 में दुश्मन और 1999 में संघर्ष – एक के बाद एक इन फिल्मों से आशुतोष राणा (Ashutosh Rana) नाम के इस अदाकार ने इंडस्ट्री के अंदर और बाहर, दोनों जगह खलबली मचा दी.

पहले संजय दत्त और फिर अक्षय कुमार दोनो के दोनों की सिहरन आप दुश्मन और संघर्ष के हर उस सीन में महसूस कर सकते हैं जिसमें ये राणा के साथ दिखते हैं.

आज भी इन फिल्मों के बारे में चर्चा होती है तो सिर्फ राणा याद आते हैं, संजय दत्त, अक्षय कुमार, काजोल और प्रिटी जिंटा नहीं. राणा ने नाम खूब कमाया इसमें कोई शक नहीं, लेकिन अफसोस बॉलीवुड ने एक बेहद प्रतिभाशाली अदाकार का वैसा इस्तेमाल नहीं किया जिसका वो हकदार है.

बहुत टैलेंटेड अदाकार से सुपरस्टार कैसे डरते हैं, ये बॉलीवुड में देखने को मिलता है. ये बिलकुल अतिश्योक्ति नहीं है कि बहुत से बॉलीवुड सुपरस्टार राणा के साथ काम करने से इसलिए घबराते हैं क्योंकि वो हर सीन में अगले को चकित कर देते हैं. वे छा जाते हैं.

बोलो चालो, बको मत. देखो भालो, तको मत.
खाओ पीओ, छको मत. खेलो कूदो, थको मत.
– आशुतोष राणा –

अच्छी एक्टिंग करने वाले बहुत हैं, अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह, नवाजुद्दीन, इरफान खान, लेकिन इनमें से कोई भी अपनी एक्टिंग से सामने वाले अदाकार के लिए खतरे का अहसास नहीं कराता, ये गुडी गुडी एक्टर हैं. लेकिन राणा की एनर्जी उन्हें अलग बनाती है.

आशुतोष राणा मध्य प्रदेश में पैदा हुए. गदरवारा, नरसिंहपुर जिले में. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली में एक्टिंग पढ़ी. फिर मुंबई जाकर रम गए. वे कहते हैं, “जो सचमुच प्रतिभावान होते हैं वे अपने साथ-साथ अपने प्रतिद्वंदी के अस्तित्व को भी बरक़रार रखते हैं ताकि वे अपनी प्रतिभा का सदुपयोग कर सकें.”

यकीनन, वक्त के साथ राणा परिपक्व हो गए हैं, लेकिन अदाकारी की जिजीविषा अभी भी वैसी ही नजर आती है. राणा को शायद कोई अफसोस ना हो पर बॉलीवुड जिस तरह से भेदभाव करता है उससे मुझे जरूर नाराजगी है.


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