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कोविड-19 वैक्सीन इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

Importance of covid 19 vaccine

कोविड-19 वैक्सीन (Covid-19 vaccine) की सुलभता में गहराती विषमता से करोड़ों लोगों पर जोखिम के काले बादल मंडरा रहे हैं. वर्ष 2020 की शुरुआत में विश्व को अपनी चपेट में लेने वाले कोरोनावायरस संकट के कारण अब तक 46 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के बग़ैर दुनिया तब तक सम्भव नहीं है जब तक हर किसी के लिए टीकों की समान सुलभता ना हो. किसी भी देश के लोग दुनिया में चाहे जहां भी हों, उनके पास कोविड-19 संक्रमण से रक्षा प्रदान करने वाली वैक्सीन की समान सुलभता होनी चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2022 के मध्य तक, सभी देशों में 70 फ़ीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य रखा है, मगर इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु, टीकों की ज़्यादा न्यायसंगत ढंग से उपलब्धता व सुलभता की दरकार होगी.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस के अनुसार वैक्सीन समता, ना रॉकेट विज्ञान है और ना ही ख़ैरात है. यह एक स्मार्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय है और हर किसी के सर्वोत्तम हित में है.

वैक्सीन समता हमारे समय की चुनौती है, और हम इसमें विफल हो रहे हैं. शोध के अनुसार, वर्ष 2021 में वैक्सीनों का कुल उत्पादन, सात अरब 80 करोड़ की विश्व आबादी के 70 फ़ीसदी हिस्से को रक्षा कवच प्रदान करने के लिए पर्याप्त होगा. मगर, अधिकांश टीके धनी देशों के लिए आरक्षित किए जा रह हैं, जबकि अन्य वैक्सीन-उत्पादक देश टीकों की ख़ुराकों के निर्यात पर सख़्ती लागू कर रही हैं, ताकि पहले उनके देशों के नागरिकों का टीकाकरण किया जा सके.

चाहे कोई कितना भी धनी या निर्धन हो, कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारी वैश्विक स्तर पर तब तक एक ख़तरा बनी रहेगी, जब तक यह दुनिया में कहीं भी मौजूद रहेगी.

विषमतापूर्ण वैक्सीन वितरण से ना सिर्फ़ करोड़ों या अरबों लोगों पर इस घातक वायरस से संक्रमित होने का जोखिम है, बल्कि इससे वायरस के अन्य जानलेवा रूपों व प्रकारों (variants) के उभरने और दुनिया भर में फैलने का ख़तरा भी है.

इसके अलावा, वैक्सीनों को असमान ढंग से वितरित किए जाने से, विषमताएं गहराएंगी और धनी व निर्धन के बीच की खाई और भी गहरी होगी. इससे मानव विकास के क्षेत्र में कड़ी मेहनत से दर्ज की गई दशकों की प्रगति की दिशा के उलट जाने का ख़तरा है.

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वैक्सीन विषमता का निम्न और निम्नतर-मध्य आय वाले देशों में सामाजिक-आर्थिक पुनर्बहाली पर लंबे समय तक जारी रहने वाला असर होगा. साथ ही इससे टिकाऊ विकास लक्ष्यों में प्रगति पर भी जोखिम दिख रहा है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का कहना है कि वैश्विक महामारी के कारण निर्धनता के गर्त में धंसने वाले हर 10 में से आठ व्यक्तियों के, वर्ष 2030 में दुनिया के निर्धनतम देशों में रहने की आशंका है.

अनुमान बताते हैं कि कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव, निम्न-आय वाले देशों में वर्ष 2024 तक जारी रह सकते हैं, जबकि उच्च-आय वाले देश, कोविड-19 से पहले की प्रति-व्यक्ति जीडीपी वृद्धि दर को इस वर्ष के अंत तक पा सकते हैं.


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