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आतंकवाद क्या निंदा से ख़त्म होगा?

Britain and India condemn terror

गत माह ब्रिटेन के मैनचेस्टर में विस्फोट हुए तो पूरी दुनिया ने कड़ी निंदा की.

मैनचेस्टर विस्फोट के बारे में सुन-सुनकर राष्ट्राध्यक्षों ने मृतक परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करनी शुरू कर दी.

घायल लोगों के जल्द स्वस्थ्य होने की कामना भी की गई.

ब्रिटेन को भेजे संदेशों में कई देशों ने कहा कि संकट की इस घड़ी में उनकी सरकार ब्रिटेन के लोगों के साथ खड़ी है.

मैनचेस्टर विस्फोट विश्व का कोई पहला आतंकवादी हमला नहीं था और ना ही यह सालों बाद किसी देश में होने वाली कोई आतंकवादी हरकत थी. पर देखा गया है कि ऐसे मामले जब होते हैं तो पीड़ित राष्ट्र के साथ पूरा विश्व खड़ा हो जाता है. प्रभावित लोगों के परिजनों के साथ वहां की सरकार भी एकजुट रहती है.

मैनचेस्टर में तो एक संगीत समारोह में विस्‍फोट हुआ था जिसमें निहत्थे और निर्दोष नागरिक मारे गए. ऐसी घटना से किसे दुख नहीं पहुंचेगा? हर किसी की भावना और प्रार्थना ऐसी दुर्घटना में मारे गए और घायल हुए लोगों के परिजनों के साथ होती ही है.

लेकिन, सवाल उठता है कि क्या इन घटनाओं की निंदा मात्र कर देने से हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है? ज्ञात हो कि आतंकवादी हमले किसी देश की जनता के खिलाफ नहीं होते बल्कि मानवता और जीवन मूल्यों के खिलाफ होते हैं. ये गंभीर मामले होते हैं. और बार-बार होने वाले ये आतंकवादी हमले हमें गंभीरतापूर्वक यह याद दिलाते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को तेज किए जाने की आवश्यकता है.

ब्रिटेन के मैनचेस्टर में हुए हमले के बाद वहां की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने इस हमले के शिकार लोगों के प्रति गहरी संवेदना तो व्‍यक्‍त की परंतु ऐसा आगे ना हो इसके लिए ठोस कदम नहीं उठाए, जबकि ब्रिटेन में नए आतंकी हमलों की आशंका थमी नहीं थी क्योंकि मैनचेस्टर ब्लास्ट के बाद ब्रिटेन में ख़तरे का स्तर बढ़ाकर अत्यंत गंभीर कर दिया गया था.

फिर भी, स्थानीय समयानुसार तीन जून की रात को ब्रिटेन में लंदन ब्रिज सहित तीन स्थानों पर आतंकवादी घटनाएं हुईं जिनसे पता चलता है कि सरकारें अपने नागरिकों के प्रति कितनी गैरजिम्मेदाराना तरीके से काम करती हैं. इन हमलों में तीन आतंकियों समेत 10 लोग मारे गए जबकि 50  लोग घायल हुए.

इस आलोक में यह आवश्यक है कि सरकारों की कथनी और करनी में फर्क ना हो, और वह भी तब जब मामला आतंकवाद से जुड़ा हो. नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार का प्रथम दायित्व है. इसके लिए कानून-व्यवस्था इतनी बेहतर सुनिश्चित करनी चाहिए कि आतंक और आतंकवादी क्या अपराध और अपराधी भी ख़त्म हों.


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