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ग्रीन स्मार्ट सिटी?

Smart Green City future

हमारे देश में बहुत से शहर हैं जहां लोगों के लिए उपयुक्त संख्या में मूलभूत सुविधा जैसे घर, रोजगार उपलब्ध नहीं है. इसे दूर करने के लिए सरकार ने 100 स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम 18 प्रस्तावित स्मार्ट सिटी की सूची जारी की गई. स्मार्ट सिटी के अंदर हर तरह की मूलभूत सुविधा जैसे गरीबों के लिए सस्ते घर, 24 घंटे बिजली, पानी, अच्छे स्कूल, रोजगार आदि प्रदान किए जाएंगे. इसी कड़ी में गत वर्ष सरकार ने 20 और शहर जैसे ग्रेटर मुंबई, सोलापुर, गांधीनगर को स्मार्ट सिटी का टैग दे दिया.

लेकिन, हमें केवल स्मार्ट सिटी तक अपनी सोच को सीमित नहीं रखकर, स्मार्ट ग्रीन सिटी कैसे बने इस पर विचार करना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले बिजली के उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, टाइडल एनर्जी का इस्तेमाल करना होगा जिससे हम कोयले के द्वारा होने वाले प्रदूषण से बचाव कर सकते हैं.


सरकार सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिए सब्सिडी भी दे रही है लेकिन आम आदमी को अपना नजरिया बदलना होगा. आजकल ऐसी बहुत सी जगह है जो सौर ऊर्जा पर निर्धारित है. इन जगहों से निकटवर्ती इलाकों में भी ऊर्जा प्रदान की जा रही है. आगरा का दयालबाग़ शिक्षण संस्थान तो भारत का पहला विश्वविद्यालय है जो पूरी तरह सौर ऊर्जा पर आधारित है.


इसी प्रकार पवन ऊर्जा भी एक नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है जिसका इस्तेमाल कई जगहों पर किया जा रहा है परंतु इसका स्तर बढ़ाना होगा. मुप्पंदल विंडफॉर्म इसका एक उदाहरण है. स्मार्ट सिटी में उचित मात्रा में पेड़ भी लगाने होंगे जिससे वाहनों से होने वाले प्रदूषण का स्तर कम हो सके.

बारिश के समय में जलभराव से बचने के लिए ‘पर्वियस  कंक्रीट’ का इस्तेमाल करना उचित रहेगा. साइकिल ट्रैक एवं फुटपाथ पर ‘पर्वियस कंक्रीट’ का इस्तेमाल करने से जो बारिश का पानी नालियों में जाता है वह इनके सहारे ज़मीन का जल स्तर बढ़ाने का काम करेगा जिससे हम भूमिगत जल का इस्तेमाल अधिक से अधिक कर सकते हैं.

बहुमंजिला इमारतों पर इकट्ठे होने वाले बारिश के पानी को विभिन्न माध्यमों के द्वारा इस्तेमाल में लाना चाहिए अथवा उस जल को भूमि के नीचे भेजने के साधन होने चाहिए जिससे भूमिगत जल का स्तर सामन्य रहे. इन सभी कारकों को जोड़ने से स्मार्ट सिटी परियोजना को आत्मनिर्भर एवं स्मार्ट ग्रीन सिटी बनाने की ओर एक कदम हम भी उठा सकते हैं जिससे विकास के साथ-साथ वातावरण पर कम से कम दुष्प्रभाव पड़े.


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