फिल्म समीक्षा: महल

ऑल इंडिया रेडियो में घंटियों का सिलसिला शुरू हो चुका था, आज़ाद भारत का हर नागरिक जानना चाहता था गाने में उस आवाज़ का नाम जिसकी मधुरता ने उनका मन मोह लिया था. वह नाम था स्वर कोकिला लता मंगेशकर का और गाना था ‘आएगा, आएगा आने वाला’. आज हम जिस सिनेमा की बात करने जा रहे हैं उसके जिक्र के बिना शायद ही हिन्दी सिनेमा अपना इतिहास बता पाए.

हम बात कर रहे हैं 1949  में कमाल अमरोही द्वारा निर्देशित फिल्म महल की, जो अपनी नायाब कहानी एवं सुरीले गानों के लिए आज तक जानी जाती है. कमल अमरोही की यह फिल्म पूरी तरह से एक सस्पेंस थ्रिलर थी और हॉरर फिल्म में जो कुछ होना चाहिए वो सारे तत्व इसमें मौजूद थे.

अशोक कुमार, मधुबाला, विजयलक्ष्मी द्वारा अभिनीत यह सिनेमा कहानी है हरीशंकर की जो इलाहाबाद में ख़रीदे अपने महल में रहने आता है, जिसके साथ एक भूतिया कहानी जुड़ी हुई है.

Madhubala in Mahalकहानी के अनुसार महल में अपने अधूरे प्यार की तलाश में कामनी (मधुबाला) नामक एक आत्मा आती है जिसका प्रेमी नदी में डूब कर मर जाता है. ‘आएगा, आएगा आने वाला’ गाना गाते हुए देख हरीशंकर को इस आत्मा की खूबसूरती से प्यार हो जाता है, जिससे उसका मित्र श्रीनाथ (कन्नू रॉय) बहुत चिंतित होता है.

कहानी में मोड़ तब आता है जब हरिशंकर का विवाह रंजना (विजयलक्ष्मी) से हो जाता है और कामिनी की याद से बचने के लिए वह शहर से दूर रहने चला जाता है. शादी के दो साल बाद भी अपने पति के विचित्र व्यवहार से तंग आकर रंजना हरिशंकर को दोषी बताने वाला पत्र भाई के नाम लिख कर आत्महत्या कर लेती है. आगे क्या होता है जानने के लिए जरूर देखिएगा महल.

जोसेफ वीरचिंग के छायांकन से पिरोये इस सिनेमा का मुख्य आकर्षण है इसके दृश्य जिसका तथ्य है ‘आएगा, आएगा’ गाने का अलग-अलग अंदाज़ में चित्रण. परदे पर झलकती चांद की रौशनी में मधुबाला की खूबसूरती, प्यार की यादों से जूझते हरिशंकर की चिंता और पति के प्यार को तड़पती रंजना का दर्द इस ब्लैक एंड वाइट सिनेमा के रंगीन सफर में शामिल होने के लिए आपको मजबूर कर देगा.


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