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गंगा नहाने लायक भी नहीं

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, जीवन के निरंतर उंचे होते हुए मानकों तथा औद्योगीकरण और शहरीकरण के हुए अत्यधिक विकास के फलस्वरुप सामान्यत: जल संसाधन तथा विशेषत: नदियों का जल अपक्षरण के विभिन्न स्वरुपों के संपर्क में आकर प्रदूषित हुआ है. विशाल गंगा नदी भी इसका अपवाद नहीं रही है.

अपने कुछ क्षेत्रों में गंगा नदी, विशेषकर, कम पानी वाले मौसम के दौरान, नहाने के लिए तक उपयोग में नहीं रह गई है. इसके प्रदूषण के लिए प्रमुख योगदानकर्ता हैं – चर्मशोधन कारखाने, कागज मिलें तथा चीनी मिलें.

नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल ने इसी साल की शुरुआत में कहा था कि “गंगा नदी का एक बूंद भी अब तक साफ नहीं हो सका है.” एनजीटी ने साथ ही गंगा की सफाई के लिए परियोजना के नाम पर ‘जनता के धन की बर्बादी’ को लेकर सरकारी एजेंसियों की आलोचना की. अधिकरण ने सरकारी एजेंसियों से पूछा कि वे किस प्रकार से प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे परियोजना’ को लागू कर रहे हैं.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो कहते हैं कि गंगा में जल परिवहन फिर से शुरू किया जाएगा. भारतीय संसद को उन्होंने बताया हुआ है कि उन्होंने पूरी तैयारी कर ली है, देखिएगा गंगा में कैसे सरपट जहाज दौड़ाएंगे. केंद्रीय मंत्री उमा भारती संकल्प भी ले चुकी हैं कि गंगा को साफ करके ही रहेंगी और नदियों को जोड़कर भी दिखाएंगी. 1985 से, जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान जैसी महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की, तब से तो खैर गंगा प्रयोगशाला ही बनी हुई है.

घाटों की सफाई समस्या का समाधान नहीं. जिन घाटों को चकाचक किया जा रहा है, वही खतरनाक मुहाने पर पहुंच चुके हैं. अंदर ही अंदर खंडहर हो चुके हैं और किसी भी दिन ध्वस्त हो जाएंगे. गंगा में वेग रहेगा तभी वह जीवंत बनी रहेगी. लेकिन हद है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में गंगा को सालों से ऐसे दुहा जाता है, जैसे वह इन्हीं दो प्रदेशों के लिए निकलती हो.

गंगा पर शोध कर चुके और सरकार को अपनी राय से अवगत करा चुके प्रो. यू.के. चौधरी का कहना है कि पूरे विश्व में ऐसी नदी नहीं है, न इतनी बड़ी घाटी. सरकार को अगर गंगा से पैसा ही चाहिए तो गंगोत्री के पास के जल का वैज्ञानिक अध्ययन करवाया जा सकता है. वहां ग़ज़ब का मिनरल वाटर है, उसे दुनिया को बेच कर अरबों-खरबों कमाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए गंगा को बहने देना होगा.


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