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चमकी बुखार से बीमार बिहार

बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की मौत हो रही है. बेबस राज्य बस देख रहा है. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 100 से अधिक बच्चे इस बीमारी से मर चुके हैं. इतने ही इलाज करा रहे हैं, और सौ से कुछ ज्यादा किस्मत वाले स्वस्थ होकर अस्पताल से घर लौट चुके हैं.

इस व्यथा को एक बार फिर से अज्ञात बीमारी करार देकर सरकार पल्ला झाड़ रही है. जबकि सच यह है कि हर साल इसी समय यह बीमारी लौट कर आती है और कई बच्चों को हमेशा के लिए अपने साथ ले जाती है. आमतौर पर इसे चमकी बुखार कहा जाता है.

मानसून आने से ठीक पहले ही गर्मियों में एक बेहद जटिल और लाइलाज एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बुखार बच्चों को बेहोश और लाचार कर देता है और मासूम बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं. 

इस साल भी बच्चों की मौत पर सरकार और इसकी स्वास्थ्य व्यवस्था विफल दिख रही है. हां, जिन परिवारों ने अपने बच्चे खोए हैं, उन्हें कुछ लाख रूपये प्रशासन की ओर से दिए जा रहे हैं. लेकिन, बिलखते लोगों को अपने बच्चे चाहिए जिन्हें वे बिहार की सड़कों पर खोज रहे हैं.

नतीजतन, स्थिति का जायज़ा लेने वाले नेताओं को जन मानस का विरोध झेलना पड़ रहा है. बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन दोनों को ही जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा है.

यह बीमारी उत्तर बिहार के लीची उत्पादक ज़िलों के लिए कोई नई नहीं है. इसे सरकार के स्वास्थ्य महकमे की विफलता कही जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. पिछले एक दशक में न तो इस बीमारी का कारण पता चल सका है और ना ही इसकी सही उपचार पद्धति ही विकसित की जा सकी है.

मुजफ्फरपुर में फैली इस बीमारी को ‘चमकी बुखार’, ‘मस्तिष्क ज्वर’ व ‘दिमागी बुखार’ बताया जा रहा है. इस बीमारी में एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (एइस) की वजह से अपनी जान गंवाने वाले बच्चों का आंकड़ा 100 पार कर चुका है.

बिहार का मुजफ्फरपुर जिला इस बीमारी से सबसे ज़्यादा ग्रसित है, जबकि इसका प्रभाव समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण और वैशाली जिलों में भी देखने को मिल रहा है.

मुजफ्फरपुर के सरकारी श्री कृष्ण मेमोरियल कॉलेज एवं अस्पताल तथा केजरीवाल अस्पताल में हाल के दिनों में लगभग 500 बच्चे इस बीमारी के लक्षण के साथ दाखिल हुए. दुर्भाग्यवश 100 से ज्यादा बच्चों ने दम तोड़ दिया जबकि लगभग उतने ही अपना इलाज अभी भी करा रहे हैं.

इस बीच एक शोध में लीची के सेवन को इस बीमारी का मुख्य कारण बताया जा रहा है, जो अंधेरे में तीर मारने जैसा है. कहा जा रहा है कि लीची को खाली पेट खाने से बच्चों के खून में ग्लूकोज़ की मात्रा तेज़ी से घट जाती है, और वे चमकी बुखार के चपेट में आ जाते हैं.

गौरतलब है कि पांच साल पहले अकेले मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 90  बच्चों की मौत हुई थी. तब केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की एक टीम बिहार भेजी थी ताकि इस बीमारी के कारणों का पता लगाया जा सके. हर्षवर्धन उस समय भी केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री ही थे और उन्होंने अपने मुजफ्फरपुर दौरे के दौरान सरकारी अस्पताल में 100 बेड का आईसीयू व एक अत्याधुनिक लेबोरटरी स्थापित करने की बात की थी.

बिहार में जिन बच्चों को चमकी बुखार शिकार बनाता है, उनमें से ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से होते हैं. वे कुपोषण के शिकार तो होते ही हैं, उनके गांव के आसपास चिकित्सा व्यवस्था का कोई नामोनिशान नहीं होता. खुले में शौच से मुक्ति और पीने के लिए शुद्ध जल उन्हें वाकई मिल जाए तो ऐसी बीमारियों से छुटकारा जल्दी मिल सकता है.

मरते बच्चों के सामने बिहार इतना बेबस कभी नहीं दिखा. ताज़ा आंकड़े केंद्र को भी मजबूर करने के लिए काफी हैं. देखना यह है कि कौन पहले उचित कदम उठता है. तब तक मुजफ्फरपुर से बच्चों के मरने का अपडेट समाचार माध्यमों से मिलता रहेगा. यह सिलसिला दो दशकों से जारी है. – मधु मिश्रा


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